
उत्तराखंडी भाषाओंक मानकीकरण करणैकि जरवत
संपादकीय, कुमगढ़, मई-जून 2020
उत्तराखंडैकि चंद भाषाओंकि राजभाषा रई कुमाउनी और पवार राजाओंकि राजभाषा रई गढ़वालि कें हालांकि संविधानैकि अठूं अनुसूचि में शामिल करणैकि मांग संसद में करि हाली गे। यो द्वियै हिंदीकि सहोदरी भै-बैंणी जा कुमाउनी-गढ़वाली हिंदीक अस्तित्व में ऊंण है पैली बै न केवल प्रचलित बल्कि राजभाषा तक रई छन। भाषाविद् डा. तारा चंद्र त्रिपाठी ज्यू और इतिहासकार मदन चंद्र भट्ट ज्यूकि पुस्तक ‘कुमाऊं की जागर कथायें’ क अनुसार कुमाउनीक शाके 911 यानी सन् 989 और गढवालीक शाके 1377 यानी सन् 1455 तकाक दान पत्र मिलनी। अघिल कै 12वीं-13वीं शताब्दी बटी 18वीं शताब्दी तक चंद राजवंश और उनार पछिलैकि नानि-नानि ठकुराइयोंक दानपत्र व ताम्रपत्र कुमाउनी भाषा में‘ई लेखी मिलनीं। वांई प्रो. शेर सिंह बिष्ट ज्यूकि पुस्तक ‘कुमाउनी भाषा का उद्भव और विकास’ में डा. महेश्वर प्रसाद जोशीक हवालैल बताई जैरौ कि सन् 1728 में रामभद्र त्रिपाठी ज्यूल संस्कृत में लेखी ‘चाणक्य नीति’ क कुमाउनी भाषा में गद्यानुवाद करौ, यानी तब बटी कुमाउनी में साहित्य लेखणैकि शुरुआत है गेछी। दगड़ै यो लै बताई जैरौ कि चंद राजोंल कुमाउनी कें राजभाषाक रूप में अपणाई गो।
यैक अलावा 13वीं शताब्दी में सहारनपुर बटी हिमांचल तक फैली गढ़वाल राज्यक राजकाज गढ़वाली भाषा में ही हुंछी। देवप्रयाग मंदिर में मिली महाराजा जगतपालाक सन तेर सौ पैंतीसक दानपात्र पारि लेखी, देवलगढ़ में अजयपालाक 15वीं शताब्दीक लेख व बदरीनाथ एवं मालद्यूल आदि अनेक स्थानों में मिली ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण लेखोंक अनुसार गढ़वाली भाषाक देशैकि प्राचीनतम भाषाओं में बटी एक हुंणाक प्रमाण लै मिलनीं। वाईं डा. हरिदत्त भट्ट ‘शैलेश’ ज्यूक अनुसार तो गढ़वाली भाषा में 10वीं शताब्दीक साहित्य लै मिलूं।
पर यो दुर्भाग्य छू कि आज लै यो भाषा, भाषा नैं बोलि‘ई कई जानीं। और कई लै किलै नि जाओ, यो भाषाओंक बुलांणी तो छोड़ो, इनार रचनाकार, स्वनामधन्य झंडाबरदार लै आजि यों भाषाओं में नैं, बल्कि इनैरि उपभाषाओं में ई ‘अल्झी’ रईं। उं आपंण इलाकैकि स्थानीय उप भाषाओंक मोह न छोड़ि सकनाय। सांचि बात यो लै छू कि आज जब कुमाउनी-गढ़वाली में भरपूर लेखी जांणौ, गीत गाई जांणई, वीडियो-फिल्म बणंणई। आधुनिक दौर में यो भाषाओंक दर्जनों फेसबुक-ह्वाट्सएप ग्रुप, यूट्यूब चैनल लै चलणईं, और इन भाषाओं में यूट्यूब चैनल चलूणियोंक लाखों सबस्क्राइबर लै है ग्येईं। यानी यो भाषाओं में भौत काम हूंणौ, लोग यों भाषाओंक बल पारि कमाइ लै करंण फै ग्येईं, पर सबूं है ठुल जो काम करणैकि जरूरत छू, उ नि हुणंय। उ काम छू, यो भाषाओंक मानकीकरण करणंक। किलैकि जब यो भाषाओंक मानकीकरण ह्वल, तबै यो भाषाओंक स्तर मिलि सकौल। तबै इनूंकैं संविधानैकि अठूं अनुसूचि में शामिल करणक बाट लै खुलल।
याद धरंण पड़ल कि हिंदी लै तबै भाषाक रूप में स्थापित है सकी, जब वीक साहित्यकारोंल वीक खड़ी बोली, अवधी, ब्रज, देसी, अपभ्रंश, प्राकृत और हिंदुस्तानी हिंदी जास अनेकानेक रूपों कें छोड़ि बेर एक मानक रूप कें स्वीकार करौ। यसै एकजुट प्रयास कुमाउनी और गढ़वाली भाषाओं में लै करी जांणैकि जरवत छू।
संपादकीय
उत्तराखण्डी मासिक: कुमगढ़ 5 वर्ष 07 अंक 01-02 मई - जून 2020
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