->गतांक भाग-२० बै अघिल:-
अंक ४५--
नरैणैल भितेर देखौ कि पद्माल सब लुकुड़ फैलै राखीं तो कूणलागौ- "आज तौ दोकान जै कै लगै राखी त्वील, के हरै गो कि!"
पद्मा - "नै नै यो इतु लुकुड़ हैगयीं, आब नानतिन यो सब पैरन न्हातिन, समझ नि ऊंणौय कि के करूं!"
नरैण - "पहाड़ पुजै द्यूंल क्वे जालौ तो।"
पद्मा - "वां लै को छु सब देसपन ऐगेयीं, ककं दिण चैं समझ नि ऊंणौय, तबै मैं कुनु जरवत भरी खरिदौ एक तो बढ़नी नानतिन भाय आज पैरौ भोल छोट।"
नरैण - "क्वे अनाथालय में दिण चैं, मैं पत्त करुंल, जो दिणी लुकुड़ छन तु उनन कं अलग कर दिए।"
पद्मा - "हम पैल्ली कपाड़- लत्त, धिंगाड़नाक लिजि हैरान रुंछिंयां,आब देखौ!"
नरैण - " एक तो अज्यान हर जागा लिजि अलग लुकुड़ उतुकै किस्माक ज्वात। एक दुसराक देखा देखी लै होसिक में हम अनाप शनाप खरिद ल्हिनु।"
पद्मा - हम आपण आदतन में सुधार करबेर इतु में एक गरीब कं सहार दिसकनूं कम से कम एक दिन एक गरीब परिवार कं पेटभर खाण खवै सकनूं।"
नरैण - "हमार नानतिनन कं आपण खुटन में ठाड़ हुण दे, के न के कसिकै गरीबनैक मदद करणौक बिचार छु म्योर मैंल मन में सोच राख छी पर तुथैं कूण में संकोचभौ। आब जब त्वील हरी झंडी देखै हाली तो हम मिल बेर भलाइक काम करुंल।"
मौलिक
अरुण प्रभा पंत
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