
खाल्ली फसक.......
(पीडी'की गोहत'नै पुन्तुरि)
लेखक - ज्ञान पंत
पीडी मतलब पद्यमादत्त, लखनौ बाद में पुजौ और भट् गौहत 'नै बास पैलीं ऐ गे। उ हरदोई वा्ल गुन्दिका 'लि फोन करि बेरि टंडन कैं बतै दे कि पद्मादत्त चार मई को आ जाएगा ..... । नै, ध्वे, संदि करी बाद वीलि गोहत' नै पुन्तुरि टंडन कैं दि बेरि कौ कि ये आमा ने आपको भिजाए हैं और बालमिट्ठै ले दे ..... हमारे पहाड़ की सौगात है। टंडन' लि, स्यैंणि कैं धाल लगै और एक टुकुड़ बालमिट्ठै चाखौ .....। 'वाह, पीडी .... ' कै बेरि कूँण ला्ग कि तुम्हारी शादी में हम सब पहाड़ चलेंगे। पद्दी के कूँछी पैं .... मनै मन गुड़मुड़ी जै रौ। गनज्याड़ जस, न अघिल जै सकौ न पछिल, फिर ले उकैं भल लागौ कि टंडन सैप ले भल सोचौं कैं। नान्तिन ले कूँण ला्ग ..... पापा, ये होम्योपैथी दवाई की गोलियाँ क्यों चिपकी हैं पीडी भय्या की मिठाई में? तब पद्दी बला्ंण कि ये बाल मिठाई है फेमस ..... बीस दिन तक खराब नहीं होती।
दस बाजी पीडी ले तैयार है ग्यो। वील एक झ्वालुन लै बाल मिट्ठै डा्ब धरौ और वी दगा्ड़ एक ना्न डा्ब ले धर कि मौक लागलो त खुरूक्क पाड़ि शैली कैं दि दियूँन। सबना सामुणिं दिंण में एक डर यो छी कि फिर और लोग ले मांगण बै जा्ल कि हमारे लिए क्यों नहीं लाये करके? पीडी'ल भौत सोच त यो सब ले समायी जा्न कि कै दिन्यूँ ..... तुम लोगों ने कहाँ मंगाई थी? इतना सारा लादना सरल जो क्या है वहाँ से ..... और लोग मानि ले जा्न कि तुम सबनां लिजी अघिला फ्यार लियूँन मगर असल डर उकैं सक्सेना'की छी। सामुणिं में भले के नि कूँन मगर पछिल त उ क्याप'क क्याप कै दिन। उसी ले शैली में शक करों कि पीडी कैं फसूँणां चक्कर में छ जब कि पीडी तरफ बटी तस के नि भै। खा्ंण, पिंण के नै लासण में जोर जस हैयी भै जिन्दगी त यो सब कां उनेर भै मन में ! ऐल त मरि - मरि बेरि कसी कै द्वि र् 'वाटनौ जुगाड़ हैयी भै ..... !
सिद सा्द मैंस भै पद्दी। मन लगै बेरि काम सिकौं, करों त जल्दी तरक्की मिलि गे। तनखा है बाहिक ले उकैं टंडन आपण तरफ बटी दिनेर भये। एक हिसाबैलि सोचौ त उ द्वि-तीन मैंसनौ काम एकलै करनेर भै। दफ्तर में भये, टंडना दगा्ड़ त दिन-रात समझौ और वी बाद कोठि में मन्दिरै देखभाल, पुज -पाति ले भै .....। पुज-पाती बदा्व में उकैं एक त रूँणीं ड्यार मिली भै और दुहौर घरा क' काम बटी छुट्टी .....। यै वीलि ले पद्दी खुशि भै। जै हिसाबैलि वीलि इंटर करौ त दफ्तर वा्ल ले समझि गियीं कि यो कम्पनी में भौत तरक्की करौल। प्राइवेट में मालिक दगा्ड़ ठीक बणैं त यो भलि बात मानी जनेर भै और पीडी ले भलिकै समझनेर भयै। ...... सक्सैना शा्ल आपण यारन थैं लंच टैम में बत्यूँनेर भै कि सरयू पारींण पंडितों में दहेज बहुत चलता है और शैली का बाप एक मामूली मिस्त्री है। पीडी पट गया तो मिश्राइन की दसो उँगलियाँ घी में समझो ...... वईसे भी ठस है पीडी! पिघलने में देर ना लगे इसे।
दुहैरि तरफ शैली मन में कि छी यो वीलि ऐल जांणें त जगजाहिर नि करि राख्छी। उसी ले उ बीए पास स्टेनो भै और पद्दी अर्दली कम पटल सहायक जस त मेल कयीं बटि ले नि खानेर भै मगर लोगनै मानसिकता कि कयी जाऔ ...... सक्सैना दगड़ू ना्न बाबू कुनेर भै कि प्यार अंधा होता है! पीडी त के नि समच्छी मगर टाईप मसीन में ठ्याक्क - ठ्याक्क करण में लागि रयी शैली'ल सुणों त मसीन थ्वा्ड़ देरा लिजी रुकी। वीलि यादव उज्यांण चै बेरि मसीन में टाईप आजि शुरु करौ त कागज अल्जी ग्यो। जोरैलि खैंचौ त फाटि पड़ौ ..... तबै यादव कूँण ला्ग "क्या हुआ, फस गया मैडम?" शैली ले कां चुप रूँछी ...... वील कागज फाड़ि बेरि टुकुड़-टुकुड़ करीं और डस्टबिन में खिति बेरि कौ "यादव जी फसने वाले की यही गत होती है"। औरना दगा्ड़ सक्सेना'लि ले सुणों ..... आज पाये हैं यादव बाबू जवाब ! अभी मिठाई खाए थे पीडी की ...... स्यैंड़िनैं तरफ बटी ले हँसणें बहार है गेछी।
टंडन' लि घंटी बजै त शैली'ल भतेर जै बेरि बतै दे कि सर पाँच मिनट में टाईप हो जाएगा। मसीन गड़बड़ कर रही है। शैली आजि काम में लागि गेछी मगर दफ्तर वा्ल बाल मिट्ठै मैयी मगन रया। कागजै प्लेट में द्वि टुकुड़ मिट्ठे आजि उसी धरी भै जब कि और सबनै नजर खै बेरि सक्सैना मेज में धरी डा्ब में छी..... के पत्त आजि मिलौ कै। थ्वाड़ देर बाद पीडी आ और टाईप कागज ल्ही जानै रौ। भतेर जै बेरि वीलि टंडन कैं दि दे। शैली ले फ्री है गेछी। वीलि मिट्ठै खै त उमै ले पीडी स्वाद जस किलै लागौ .... यो समझ नि ऐ ! आज मिठाई ले गा्व लागी त पाँणि पी बेरि गाऊँन छिरै ..... दफ्तर वा्ल ले समझि रौछी कि बेई जांणें "मा्त" (जोग्यांणि) जसि बणीं शैली आज सायराबानो जसि तुरतुरि-फुरफुरि किलै है रै कै, मगर क्वे के नि कै सकछी। टंडन छाड़ौ पीडी कैंई पत्त चलौन् कि सक्सैना, यादव यौस् सोचनन् कैं त उयी टंडन थै कै बेरि इनन हरदोई, शाहजहांपुर खेद् दिन।
लंच टैम में टंडन ग्यो त पद्दी कैं ले दगाड़ै ल्ही गो। चलो, आराम करना घर पर। आज ही तो आये हो सफर से ...... सबनले देखौ कि पीडी रंग पैलियै है ज्यादे साफ है रौ। ज्वानन जस शरीर ले ज्यादे भरि गोछी आज। यादव, सक्सैना और शैली ले के जा्णनीं कि पहाड़ै हा्व-पाणीं यसि छ कि मनखी आफि है गोर फनार है जा्ंछ।
टंडना दगा्ड़ ऐल पीडी न्है त गोछी मगर ब्याव जांणें उकैं एक चक्कर आजि ऊँण पड़ौल्। यै वील घर पुजनै कै ले दे कि सर मुझे आफिस जाना पड़ेगा, कुछ काम है ...... तुम्हारी मर्जी , कै बेरि टंडन भतेर न्है जानै रौ। यो त भल भौ कि टंडनैलि पुछ न्हाँ! कयीं पुछ बैठन कि अचानक के काम ऐ पड़ौ या के इमरजेंसी छ त पीडी के बतूँन? कसिकै बतूँन ......... शैली लिजी जो बाल मिट्ठै लै रौछियूँ, उ तुमारै दराज में धरी रै गे। आ्ब पीडी दफ्तर ग्यो नि ग्यो और ग्यो त बाल मिठै डा्ब, शैली कै दे नि दे या दे त कसिक दे ...... यो सब पछा सोचि जा्ल। ऐल त फिलहाल यतुकै छ .....।
ज्ञान पंत, 23-05-2020

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