
लॉकडाउन स्पेशल! सास ब्वारिक संवाद!
लेखक: श्री त्रिभुवन चन्द्र मठपाल
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(पहाड़ वापसी की आस)
ब्वारि :- हैलो ! हैल्लो ! सासू ! हैल्लो !
कम्मर टूटि जालि य कोनारो वाल खाँसणीं बुडैकि! और ह्य फोन नि उठाणीं बुड़ियैकि!
हैल्ल ! हैल्लो मम्मी जी कहा !
सासु :- हाँ! के कौंण छै! कआन लै जै य टावर पारि एक्क सिंग्नल निआँन ! दोहर य बज्जर पड़ी जौस फोन! तिहौर म्यार फूटी कान!
हैलो ! कैकणि हुतम छै ? रात्ति रात्ति पारि गाई !
और त्वील फोन कैहणि लगा ! आपुणिं माँ हैं ! या मैं हैं ? मैल तै मम्मी जी जौस सुणौ ?
ब्वारि :- हैल्लो ! तुमको ही लगाया कहा इजा ! इनकी मम्मी मेरी मम्मी एक्कै बात ठैरी ! तुमको क्यों दूँगी कहा इजा गाली ! ये कौलर ट्यून में खाँसणीं बुड़ै को दे री थी गाई ! जब भी फोन मिलाओ ख्वाँक ख्वाँक कर देता है पहले ही !
तुम सुणाओ सब ठीक ठाक हो रहा है !
सासु :- तू बीचम बीचम हिन्दी किलै झाड़ि दिनेर हई या हिन्दी में बुला या पहाड़ी में ! सब राईमेसि जौस करि दिछै ! मकैं हिन्दी में लै समझ ऐ जाँ !
तू य बता ! कास हाल है रयीं तुमार दिल्ली में ? म्यौर चनुवै कै तनख्वाह मिलछौ ! या नि मिलि ? और नौकरिक के है रौ उवीक ? आद्युक गौंक लोग दिल्ली बै घर ऐ गयीं ! भाजाभाज पडि रै बल हेति !
तुम सब तै ठीकै हनला ?
ब्वारि :- गाव गाव ऐ रे मम्मी जी येति हमरि ! बस भत्तेरै गोठी रयूँ ! आई इनरि नौकरिक लै के भरौस नहैं ! हमरि पुरि कलोनी पट्ट बन्द करि रै !
डबल टकाँक हाल लै ठीक नहैं ! यौं तै हमेशा पहाड़ी गीत लगैबेर उदासी जौस रनीं ! हर बखत एक्कै गीत " तू ऐ जा वे पहाड़ा " सुणनी ! अब हमार समझ है बे भ्यार है गे य दिल्ली !
सासु :- उ तै अब ऐ रैन्हलि ! लकडौनाक शुरु शुरु मजी तू क्याप क्याप पकैंबेर भटसप में दिखैबेर खामछियै बल ! पुर गौं कै खबर हई ! बस मकणीं खबर नि हई !
छोड़ ह्य बातु कैं !
तू पैली य बता चुनु पेटीम डबल धरछौ ? उ फोन वालम ! जमैं फोन नम्बरैल डबल ऐ जानी !
ब्वारि :- वहै पेटीएम कनी ईजा ! होई धरनी किलै ?
सासू :- उ तलबाखईक घनुवाँ घर ऐ रौ ! उपारि छैं ! इपन उनुकैं क्वे नि ल्यून ! उ म्हैं कौंण छी कि मैं उनुकैं चनु दा हैं भेजी दिनु और तू मकैं आद्युक डबल भो दिदियै ! और बाँकि घ्यों ! दै दूदम तारि दिये ! तू चिन्ता नि कर आज कै द्यूल में घनुवै हैं ! और कान खोलि बै सुणीं लै जब तक भली भाँ ह्य लकडौन नि खुलुँन भतेरै रया ! मैल त्यार ममीसौर हैं बात करि रयीं ! उ पधानुँक ट्रक ली बै आल बादम सब समान उमैं धरिबेर घर ए जया ! ट्रकौक किरायैकि चिन्ता झन करिया ! म्यार समायी डबल कम पड़ला जबता एक बाकौर बेची द्यूल ! म्यार ज्यौन छनैं तुम एक डबलैकि चिन्ता झन करिया हाँ !
और उ चनुवाँक पेटीम डबल पुजि जाला तो मकै बतै दियै !
ब्वारि :- ठीक्क कौअ मम्मी जी ! तुम जौस कौला हम उस्सै करुल ! डबल पुजते ही मैं बतै द्यूल !
और हमुकैं वापस आपुँण घर के शरम न्हैं !
सासु :- होई पै अब क्यैकि शरम ? तहीं फरफरानैं गेई तू ! कौन मरेगा इन पहाड़ो में कनै !
आज यौं पहाड़ जान बचाणाँक काम आँ रयी !
सब बखत ! बखतैकि बात हई !
आओ अब पहाडै आओ !
याँ सब राजि खुशि रओ !
ब्वारि :- पैलाग ! होई इजा ! अब तै जरूर औल!
खेतिम् जतुक लै हौलौ ! मिलि बाँटि खौल!
:-लेख त्रिचम लेख!
"त्रिचमा लेख"!
"त्रिचम" (२१-०५-२०२०)


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