कोरोना रे-कुमाऊँनी क्वीड़

कुमाऊँनी व्यंग्य-कोरोना रे, satire in kumaoni language regarding covid-19 pandemic, kumaoni bhasha mein vyangya, covid-19 ka jivan par prabhaav

कोरोना रे!

(कुमाऊँनी क्वीड़)
लेखक: शेखर जोशी

मैं सन्ध्यि पुज करि बेर, पाखि कानि में खिति बेर बजार हुं बाट लाग्यू तो पछिल बै द्विय नाति-नातिणी धात लगूण लागी, बड़बाज्यू मास्क ल्हि जाऔं मास्क!

नानि बारिल तुलिब्बारिथें कै हुनल बुडज्यू आई बिना मास्क लगइयै भैर जाणई।  द्विय नानतिनाक हाथ में एक-एक मास्क छी। जाणि कैक जुठ-पिठ छी। मैल द्वियै मास्क नानतिनन थें ल्हि ल्हीं।  नातिणिल औडर दे-पैरि ल्हियौ, नन्तर पुलिस पकड़ि ल्हेलि। उछ साल कि हुनलि. दात बुद्धि आमनै जस करं।  मैल मास्क पैरणक नाटक करौ, उ घर हं जाने रई।  पुलिस वाल देखियलो तो पाखिल नाक-मुख ढकि ल्यूंल।  भैरवक दुकान में पुज्यू उ घाम तापणौं छी।  उ बखतै द्विमेम सैप दुकान में ऐ पुजीं।  लम्बि वालि बलाणी, आपके पास रंगीन मास्क होंगे?  एक परपल कलर का दे दीजिए।

मैंल समझौ 'पपटॉल कलर' कूणे।  भैरव लै के नि समझ हुनल।  बील पुरै डाब खोलि बेर उनार सामणि धरि दे।  मेम सैपल एक बैगनी रंगीक मास्क ल्हे डबल दी और आपणि दगडु थे कौ 'म्यार पास परपल कलरै साड़ी दगै मैच करणि नि छी नन्तर आज म्यार मन की साड़ि के पैरणक है रौ छी।

उसिक त म्यार कान पट्ट है गेई पै स्यणिनै कि बात सुणन बखत जसिक चैतन्य है जान हुनाल।

अखबार वाल अखबार दि गो।  वें घाम में बैठि बेर म्वाट-बाट शीर्शक देखीं।  सारि दुनियांक वैज्ञानिक चीन देश 'वुहान शहर में जैबेर पत्त लगूण चानी कि यां बै यो महामारी पुरि दुनि में कसिक पुजी।  लेकिन चीन देशक शासक लोग उनकें आपण देश में नि ऊण दि णें।  यों रनकार में थे नि पुछणे मैं उनके बतून्यू यैक के कारण छ।  मैं के बेली रात स्वैण में सब रहस्य मालूम है गो। तुमन के बतै।

हमार गाडन में जब ग्यूंकि फसल पाकि जांछि तो वीक बलाइन के द्विबालिस्त डण्ठल समेत काटि बेर उनर आँठ बणै दी छी, फिर उननके घरा सामणि बाड़ में थुपुड़ लगै बेर धरि दि छीं।  फिर ठुल आंगण कें गोबर और माटैल लिपि बेर सुखण दि छी।  जब आंगण सुखि गयो तब उन आँठन कें खोलि बेर आंगण में छितरै दिं छी।  फिर द्विबल्दन कें उ बालिना मल्लि गोलाई में घुमई जांछी।  हम नानतिन हाथ में एक सिकड़ थामि बेर उन बल्दना पछिल-पछिल गीत जस गैं बेर जांछिया। उ गीत छी
हौले बल्दा हौले हौले 
कानि कैल्यालै बल्दा 
पुठि मैल्यालै बल्दा
हौले हौले................ 
बल्दनाक खुर ग्यूक दाणन कें. बलाड़ बटि अलग करि दीछि। फिर सुप में भरि बेर उ दाण गुद और भुस के हौ में फटिक बेर ग्यूंक थुपड़ लगई जांछी। यो काम के दैलगूण कई जांछी।  हमन के बल्दन के रिंगण में भौत आनंद ऊंछी।

बेलि रात यस्सै 4 लगूणाक स्वैण देखौ।  मैं काम खतम करि वेर आपण विनू बल्दक गरदन कि झालर के कन्यूँणयूँ। विनू यकायक मैंसन वालि बोलि में मैं थें कूण लागौं, तु म्यर नान भाउ छै। मैंल और त्वील एक्कै ईजक दूध पी राखौ। आज मैं भौत उदास छु।  मैल घाम में तुमार गाड़ जोती. उमें रेखाड़ पांडी, तुमार हलियै स्यैणिल उन रेखाइन में म्यूंक खिती फिर हमै वी गाड़ में मौय लगा. बीजन के माटिल ढकौ।  फिर ग्यूं जामी, ठुल भई बलाड़ लागी, उनन में म्यूक दाण पाकी और आज हमैल उनके आपण खुर नैल बालन बटि भैर गाड़ौ।  'अहा ! कसि सुबास ऊँणैछी। मैल द्विदाण म्यूंक चाखण हुं आपणि मुनइ तलि कर छी तबै त्यार बौज्यूल म्यार मुख में म्वाव बादि दे। हमरि सारि मेहनतक यो इनाम दे। एक गास मैं लै चाखि ल्हिन्यू तो के जै घाट है जान?

भुला! मल्लि बटि भगवान सब देखणई।  एक दिन तुम सब जाणिना मुख में म्वाब निवादिलो तब कया।

भैरव, यो कैरोना दुनि भरि बल्दनक सराप लागि रौ रे।  बिनु बल्दै कि बाणि आज सांचि हूणे।

शेखर जोशी, लखनऊ
उत्तराखण्डी मासिक: कुमगढ़ 5 वर्ष 07 अंक 9-10 जनवरी-फरवरी 2021

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