आओ रे दगड़ियों पहाड़ क सजनु
रचनाकार: पुष्पा
आओ रे दगड़ियों पहाड़ क सजनु
पहाड़े की माटी'ल अब सुन उगानु।
तू छे मेर मन बसी मेर पहाड़
त्यूल जनम दे और पावो सेतो
त्यर खव में नानछिना खेलो कूदो
मातृ भूमि' पितृ भूमि देब भूमि हमरी
आओ रे जतु है सकूँ गुण गान करनु
आओ रे दगड़ियों पहाड़ क फिर सजनु
पहाड़े की माटी'ल अब सुन उगानु।
पहाड़ त्यूल सब कुछ दी
आम दी, बूब दी, ईज दी बाबू दी
खव की भीड़ दी हरी भरी सार दी
गाड़ दी, गधर दी, सिद साद मैस दी
आओ रे अब प्रेम'ल सबुकें भेटनु
आओ रे दगड़ियों पहाड़ क फिर सजनु
पहाड़े की माटी'ल अब सुन उगानु।
हर मेहण त्यार त्यार भय
देहि द्वार लिपण ऐपड'ल दिण भ'य
नान तीनां'क मिजाट'ल लग भ'य
गौरु गौग्रास, बल्द थुंन अलग भ'य
आओ रे मिल बेर बिल पैण बाटनु
आओ रे दगड़ियों पहाड़ क फिर सजनु
पहाड़े की माटी'ल अब सुन उगानु।
स्विकिल शांक जस हिंयु को डान भ'य
वल पल पहाड़ म गंव ले बसी भ'य
धान झुंवर मडु कोणी क फसल भ'य
रंगील चन्गिल पुतई जस सैणी भ'य
आओ रे अब खुशी खुशी खेती करनु
आओ रे दगड़ियों पहाड़ के फिर सजनु
पहाड़े की माटी'ल अब सुन उगानु।
डान कान'म बटी देवताओं आशीष छू
गोलू देवता की असीम कृपा छू
स्याही देवी, नंदा देवी क कौतिक छू
गंगा यमुना बद्री केदार चार धाम छू
आओ रे मिल बेर जय जयकार करनु
आओ रे दगड़ियों पहाड़ क फिर सजनु
पहाड़े की माटी'ल अब सुन उगानु।
धन्यवाद
पुष्पा, 24-06-2020
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