
प्रीति करे सब कोय
(नानि कुमाऊँनी काथ)
लेखक: केशर सिंह डंग्सेरा
जस्सै नर नारीक प्रेमक भौत काथ छै उस्सै नाग, यक्ष गंधर्व, द्याप्त, असुर, पशु-पक्षीक लै छै। पशु-पक्षी में नाग नागिन, हिरण-हिरणी, स्याव-स्वावणि, गिद्ध-गिद्धणि, घुगुत-घुगुति, बाज-बाजणि आदि जस भौत काथ छ।।
यस्सै एक घुगुति आपण ज्वड़ घुघुत दगड़ भौत प्यार करछी। द्वीय दगडै चार करहणि जाँछी त एक झण खतराक संकेत दिणक लिजी पहरू रौंछी ताकि निझरक चार खै सकीं। मायाजाल में पड़ि बेर घुगुति आपण द्वी अंडू कणि सेकणक तें बाइस दिनक लिजी घोल में बैठिगे। जब कभतै घुगुति नाम मात्रक चार करछी त घुगुत घोलक ग्वाव रूँछी।
एक दिन घुगुत चार चुगहणि जाँण लागो त घुगुतिल कोछ स्वामी गैली पातलक स्यर में जिमदारूंल तीलकि फसल काटि हैछ जाँ खेतूं में तील झड़ि रई, वाँ जाओ। वाँ क्वे शिकारि पछि आली त झपट मारण में तीलक खुमाल छेड़ी, जाल किलैकी तुम भीतै लापरवाह छा। घुगुतल घुगतिक कौंय मानौ, रोज-रोज, वे तीलक खेतूं में चार चुगहीण जाँण लागौ। वाँई वी सार में एक बाज और एक बाजणि लै रैछी। बाजणि एक विषैल छिपाड़ खैबेर बीमार है पड़ी। बाजल द्वी तीन दिन तक इन्तजार करौ, वाजणि ठिक नि है। बाज कणि भुकल कलवलाट पड़ण लागौ त बाज कौंछ:-
बाज -
आज बाजणी मै जानू पातला का सेरा
त्यहँणी ल्योंला घुगुत मारिबेरा।।
बाजणि -
झन जाया स्वामी, तीलूँ का खेघूमा।
तीलू का खेलूँमा, घुगुती चुगी छौ
रूख-सुख खै तलै, गुजारा करूला
तुमुक के स्लौ, कसिक रहोला
तील काटया का, तीर जसा खुमा
झपट क बेग में क छेड़िला तुमा
झन जाया स्वामी, तीलूँका खेतूंमा।।
हौछ लै बस्सै। घुगुतल त आपणि घुगुतिक कौया माने, रोज-रोज तीलुकै खेतूं में चार चुगहणि जाण लागौ, बाजल आपणि याजणिक काय नि मान। पातलक स्यर में घुगुत तीलचुगण लै रछी, बाजल शिकार पर झपट मारीत घुगुत जरा खस्स खसिकि गो। बाज तीलँक खुमाल छेड़ी बेर दो छेड़ हैगो और लहूलुहान है बेर फड़फड़नै उत्ती कें मरिगो। जब बाज साँस पड़ी तक आपण रैन बसेरा में नि पुजौ त बाजणि कें भौत फिकर हैगे। बाजणि रातभरि शोरूँ शोरूँ मजीऽ पड़ी है। दुसर दिन रात्ती फजल बीमार बाजणि जसिक-तसिक बाज कणि ढुनहणि बाट लागी त के देखींछ कि बाज तीलक खेत में कड़कड़ हैरौ, तब बाजणि भौत विलाप करीछ और कैंछ:-
बाजणि -
तुमुलै निमानी,स्वामी मेरी बात
कसी का, दिन,कसी बितों रात
बिना संग-ज्वड़,टुटिजाँ सहारा
जिन्दगी निसिरी,जानी रें बहारा।।
केशरसिंह डंग्सेरा बिष्ट, तकुल्टी, द्वाराहाट
(केशरसिंह डंगसेरा बिष्ट जमीन से जुड़े जन्मजात कवि हैं। उनकी लेखन शैली और वाक्य विन्यास उन्हें एक शीर्षस्थ साहित्यकार की श्रेणी में स्थापित करते हैं। ‘हरूहीत मालू’ खण्ड काव्य उनकी काव्य प्रतिभा का एक श्रेष्ठ उदाहरण हैं) -सम्पादक कुमगढ़
उत्तराखण्डी मासिक: कुमगढ़ 05 वर्ष 02 अंक 5-6 सितम्बर-अक्टूबर 2015
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