
-:ईजुलि:-
रचनाकार: रेखा उप्रेती
जब त्येरि दातुली को, छुणुक बाजं छी,
पूरब का डाना बटी, उज्याव फुटं छी।
छर्र-छर्र जब इजा, गोरु तू पेऊँ छी,
हिमाला बै गंग-जमुन धार बही ऊँ छी।
बौज्यू परदेस भया, तू भई एकली,
चुड़-चर्यो दगड़ी त्वीलै, उमर निकाली।
आँगु लै इंगुर जब, माथ में लगैं छी,
अकास में इजा कसी लालिमा छै जैं छी।
आँचोव का छोर बाँधि, च्यूड़-मिसीरी,
कमर में ज्ड़ौय, धरी ख्वार में कसेरी।
मोवा का डाला जब, गा’ड़ में सारैं छी,
सार्यों में मडुआ-धाना बालड़ा पाकैं छी।
गा’ड़-भिड़ा धुर-धार, गोठ-भितेर,
सब ठौर इजु तेरी, माया को पसार।
कानाँ बुड़ी खुटाँ लिबे, खित-खित हँसैं छी
पार डाना बुरूँशा का झ्वाक झुकि जैं छी।
चेलि हुणि सरास में, भिटौलि पूजूँ छी,
ढुंग धरि छाति, च्यला देस हूँ भेजं छी।
लागि जो बाटुई इजा, आँख भरी ल्यैं छी,
डान-काना बीच कस रौल फूटी जैं छी।
इजु छी पहाड़ म्यर, पहाड़ इजु छ,
छुट गो पहाड़ जसी इजु छुटि गे छ।
मनै-मन याद करि नराई फेड़नू,
पहाड़ कँ इजु दग हिय में धरनू।
रेखा उप्रेती,

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