
चनरदाकि ले सुणो
(लेखक-पूरन चन्द्र काण्डपाल)

यू चनरदा को छी हो? समाज में अंधविश्वास और भ्रष्टाचार के विरोध में गिच खोलण कि हिम्मत करणी हरेक कर्म-पुजारि 'चनरदा'छ। चनरदा भ्रष्टाचार और अंधविश्वास क विरोध हर जागि करनी पर उनके समाज क उतू सहयोग नि मिलन जतू उनके उम्मीद हिंछ। लोग भ्रष्टों देखि डरनी पर गिच खोलणक बजाय मसमसाते रौनी। घूस ल्हीण, बिना काम करिए तनखा ल्हीण, आपण कर्तव्य के भुलि जाण, यू सब भ्रष्टाचार के रूप छी। सरकारि कर्मचारियों कि छवि हमार देश में ठीक न्हैति। उन्हें कुछ लोगों द्वारा 'सरकारि सांड' या 'सरकारि जवै' कैते हुए सुणी जांछ। कर्म करि बेर तनखा लिहणिया और भ्रष्टों क दगड़ नि करणियों के य बदनाम भौत चुभौं। पुलिस में भाल लोग लै छी पर कुछ पुलिसियाँ ल पुर महकमें पर दाग लगै रौछ।
कुछ दिन पैली बदेलि है बेर आई चनरदा के आपण नई दफ्तर भल नि लाग। वां हरामखोरी त छी पर कएक किस्म के भ्रष्टाचार लै फैली हुई छी। एक दिन डूटी क टैम क बाद चनरदा आपण बौस हुणि मिलि बेर कोण लाग, "सैब म्यार लिजी या काम करण भौत मुश्किल छ। खुलेआम सब कुछ हूं रौ या, हाम लै बदनाम है गोयूं। पुर विभाग कलंकित हैगो। आपूं के पत्त छ या न्हैति? चनरदा कि पुरि बात सुणण बाद बौस ल जबाब दे". देख भइ चनर मीकै या ज्ये लै ह्रौ सब पत्त छ और माथ वलां के लै सब पत्त छ। य लाइलाज बीमारी आजकल सब जागि छुतिय रोग कि चार फैलिगे। आपण काम कर और टैम पास कर, टैनसन नि लै। “चनरदा बलाय", सैब, य सब म्यार कैल बरदास्त नि हूं रय। लोग सबू हैं चोर, नमक हराम और पत्त न क्ये क्ये गाई दी जानी। म्यर दम घुटें रौ यां।
य दफ्तर के बौस भ्रष्ट नि छी पर भ्रष्टों के रोकण में वील हात ठाड़ करि हैछी। जब भौत समझूण पर लै चनरदा नि मान तो बौस बलाय, "देख भइ चनर, अब तू नि मानै रयै तो त्यार सामणि तीन आप्सन (विकल्प) छीं। पैल-तू इनू दगै खुशी-खुशी मिलि जा, दुसर- इनुके देखिय क अणदेखी करि बेर पुठ फेरि लै और तिसर-तू या बै आपणि बदेलि को लै जमें मैं त्येरि मदद करण कि कोशिश करुल, ल्ही-दी बेर सब काम है जांछ। बर्ना न दुखी हो और न दुखी कर। अच्याल सब जागि यसै चलि रौ। “भौत देर है गेछी। बौस के यकले छोडि बेर चनरदा आपण मूड ऑफ करि बेर घर हुणि निकलि गो।"
दुसार दिन रने रोज कि चार चनरदा टैम पर दफ्तर पुजि गोय। बौस ल आते ही चनरदा हुणि सीध सवाल करौं, "हाँ भइ चनर, बता पै को औप्सन पर टिक करौ त्वील? मूड त ठीक छ त्यर? रात भली नीन ऐछ नि आइ? खुश रई कर यार, य यसिके चलते रौल। कयेकों ल यैकै रोकण क वैद करी और कोशिश लै करी पर उई ढाक के तीन पतेल।" चनरदा ल जेब बै एक कागज निकालनै बौस उज्यां बढ़ा, "सैब, एक चौथू औप्सन लै छ। लेखि बेर दी रयूं आपूं के य कागज में।"
बौस ल कागज पढ़ि बेर एक लामि सांस खैचण क बाद भृकुटी ताण की, “य क्ये छ रै चनरिया? तू त चीफ हुणि दफ्तर कि पुरि बिरखांत लेखें रौछे। यास में त हमार दफ्तर कि इन्क्वारी बैठि जालि। मी त मरुल, तू लै सबू क अखां में ऐ जालै।" "सैब, घुटन में ज्यौंन रोण है अखां में औण भल। देखि ल्युल ज्ये हवल," चनरदा ल विनम्रता के साथ को। बौस सानी-सानि बलाय, "मीकै एक मौक दै। मी यूं निगुरी क ढाटों के समझूल। य कागज आपण पास धर। जरवत पड़ण पर त्यहू बै ल्ही बेर चीफ हुणि भेजि द्युल।"
चनरदा क यौ हिम्मत ल दफ्तर में भौत कुछ बदलि गो। य कहानि सांचि छ, काल्पनिक बिलकुल न्हैति। आखिर में सबू है कौण चानूं कि चनरदा बनो, मसमसाण ल जरूर घुटन हिंछ और घुटन ल बी पी बिगड़ि जांछ जो घातक ले सकू। आपूं के डरौ ना बल्कि ललकारो पर यैक लिजी ईमानदार बनण पड़ल। इतिहास साक्षी छ, कुछ ईमानदारी क पहरुओं ल यसब करि बेर उदाहरण पेश करि रौछ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल,

पूरन चन्द्र काण्डपाल जी द्वारा उत्तराखंडी कुमाऊँनी मासिक पत्रिका: आदलि कुशलि, जुलाई २०१९ से साभार
फोटो सोर्स: गूगल
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