चंदकालीन कुमाऊँ - छखाता परगना 1

कुमाऊँ का इतिहास-चंद वंश के समय में कुमाऊँ के छखाता परगना -History of Kumaun-Chhakhata Pargana in Chand dynasty, Kumaon ka Itihas, History of Kumaun

कुमाऊँ के चंदकालीन परगने- छखाता (भाग-०१)

(कुमाऊँ के परगने- चंद राजाओं के शासन काल में)
"कुमाऊँ का इतिहास" लेखक-बद्रीदत्त पाण्डे के अनुसार
 

छखाता

यह परगना कालीकुमाऊँ, महरूड़ी, धनियांकोट, कोटा और तराई के बीच में है । दो. विभागों में यह परगना विभाजित है।  मल्लाछखाता को पहाड़ छखाता तथा तल्लाछखाता को भावर छखाता कहते हैं।  यहाँ सबसे बड़ा पहाड़ गागर है।

सबसे बड़ी नदी गौला है। छोटी नदियाँ सूकी, कलिया की वोग, पथराई, चकरघटा, नरा, धीमरी, खैर और तलिया वगैरह हैं।

देवता- भीमेश्वर, चित्रेश्वर, कोटकेश्वर, गर्गेश्वर और कैलास महादेव हैं।  कात्यायनी, शीतला और नारायणी देवी हैं।  कर्कोटक नाग देवता हैं।  यह ऊंचे टीले पर हैं।  जहाँ तक इनकी दृष्टि पड़ती है, कहते हैं साँप के काटे का जहर मनुष्य को नहीं लगता।  भीमेश्वर महादेव को धर्मराज के छोटे भाई भीमसेन का स्थापित किया हुआ बताते हैं।  ताल भी उन्हीं के नाम से भीमताल कहलाया।  भीमेश्वर भीमताल के किनारे है।  चित्रेश्वर महादेव गोला-नदी के किनारे विश्वकर्मा का बनाया है।  चित्रशिला के ऊपर पर्वत की चोटी पर पश्चिम की ओर मार्कंडेय ऋषि का आश्रम था।  इसका उल्लेख श्रीमदभागवत के द्वादशस्कंध व अध्याय में है:-
तेवै तदाश्रमं जग्मुहिमाद्रेः पार्श्व उत्तरे।
पुष्पभद्रा नदी यत्र चित्राख्या च शिला विभौ॥१७॥
कुमाऊँ का इतिहास-चंद वंश के समय में कुमाऊँ के छखाता परगना -History of Kumaun-Chhakhata Pargana in Chand dynasty, Kumaon ka Itihas, History of Kumaun

इस परगने में ६० तालाब होने कहे जाते हैं, जिससे परगने का नाम षष्टिखाता उर्फ छखाता पड़ा।

इन ६० तालों में से कितने ताल मट्टी से दबकर सूख गए, कहा नहीं जा सकता।  इस समय जो ताल विद्यमान हैं, उनके नाम ये हैं- मलुवाताल, नौकुचियाताल, सप्तऋषियों के सातताल, नैनीताल, खुरपाताल, कुहड़ियाताल, सूखाताल, सड़ियाताल और नल-दमयंतीताल।  इनमें नेनीताल, भीमताल और नौकुचियाताल बड़े तथा प्रसिद्ध हैं।

नल-दमयंतीताल के बारे में एक किंवदंती इस प्रकार है कि जब राजा नल जुऐ में सारी सम्पत्ति और अपना राज्य हारकर जंगल में भटकने लगे, तो यहाँ भी आये।  यहाँ खाने को कुछ न पाया।   राजा नल ने तालाब से मछलियाँ पकड़ीं।  रानी दमयंती ने उनको नमक, हल्दी, मिरच-मसाला  लगाकर कढ़ाई में पकाना चाहा, तो रानी के हाथ में अमृत होने से सब मछलियाँ, उनका हाथ लगते ही जी उठीं और कूद-कूदकर तालाब में चली गई।

जब भाग्य फिरता है, तो ऐसा ही होता है। राजा नल की, मारी और कटाई मछलियाँ भी ताल में कूद गई।  ये मछलियाँ और मछलियों से रंग-रूप में कुछ लाल, दुम व मुह की तरफ चौड़ी हैं, इसी कारण इनको कटे टुकड़ों से बनी मछली बताते हैं।  तभी से इस तालाब का नाम नल-दमयन्तीताल पड़ा।  यहाँ कुछ मूर्तियाँ भी हाल में निकली हैं।
कुमाऊँ का इतिहास-चंद वंश के समय में कुमाऊँ के छखाता परगना -History of Kumaun-Chhakhata Pargana in Chand dynasty, Kumaon ka Itihas, History of Kumaun

गागर पर्वत पर गर्ग ऋषि ने तपस्या की थी।  इसी इसी कारण पुराणों में इसका नाम गर्गचल, गर्गगिरि, गर्गाद्रि आदि पड़ा। अब भाषा गागर कहते हैं।

भीमताल के ऊपर, उत्तर की तरफ़, पहाड़ के सिरे पर, कर्कोटक नाम नाग यानी साँप देवता हैं।  कहते हैं, मल्ला छखाता में साँप बहुत जहरीले होते थे।  इनमें बेतिया साँप बड़ा भयंकर होता था।  इसका काटा मनुष्य कदापि न बचता था।  किसी समय एक फ़क़ीर उस रास्ते आया और उसका चेला भी साथ में था।  उस चेले को बेतिया साँप ने काटा।  तब गुरु ने अपने मंत्र बल से उसे बचाया। पश्चात् एक नकारा मँगाया।  फिर घंटा और भंडा हाथ में लेकर उसने मंत्र पढे और नक्कारा बजाया।  कहा, जहाँ तक इस डंके की चोट सुनाई देगी, साँप का ज़हर न चढ़ेगा।  अब तक लोग ऐसा ही मानते हैं।  यह मंत्र उस साधु ने पत्थर में भी लिखा था।

पट्टी छब्बीसदुमोला वर्तमान पूर्वी छखाता के बल्याड़ गाँव सम्मल ज़मींदारों से राजा विमलचंद का युद्ध हुआ था।  पीरासम्मल प्रधान पैक यानी मुख्य योद्धा था। पीरासम्मल और उसके बागी साथी जहाँ चंद-राजा द्वारा मारे गए, वह जगह अभी तक वीरान पड़ी है, आबाद नहीं की जाती।  एक गर्भवती स्त्री को छोड़कर सब सम्मल मारे गए।  उससे फिर वंश चला।  पीरासम्मल जिस पत्थर पर बैठकर राजकाज करता था।  वह अभी तक प्रसिद्ध है । इनकी ज़मींदारी कई गाँवों में है।

गौला पार खेड़ागाँव के पास पहाड़ी चोटी पर विजयपुर (बीजेपुर) ग्राम है। राजा विजयचंद की यहाँ गढ़ी थी इसके करीब ही कालीचौड़ का मैदान है । कालीदेवी की खंडित मूर्तियाँ यहा मिलती हैं।  संभव है, मुग़लों और रोहिलों ने उन्हें खंडित किया हो।

रानीबाग़ में में कत्यूरी राजा धामदेव और ब्रह्मदेव की माता जियारानी का बाग़ था।  कहते हैं, यहाँ गुफा में जियारानी ने तपस्या भी की थी। कत्यूरियों का यह पवित्र तीर्थ है। उत्तरायणी को सैकड़ों मनुष्य यहाँ आते हैं।  रात्रि-भर जागरण करते हैं।  जय+जिया या 'जै जिया' कहकर जियारानी की जय बोलते हैं।
कुमाऊँ का इतिहास-चंद वंश के समय में कुमाऊँ के छखाता परगना -History of Kumaun-Chhakhata Pargana in Chand dynasty, Kumaon ka Itihas, History of Kumaun

काठगोदाम के ऊपर, गुलाबघाटी के पश्चिम में, शीतलादेवी का स्थान है।  यहाँ पर चंद-राज्य के समय शीतलाहाट-नामक बाज़ार भी था।  बीच में नदी है। नदी के उस पार ‘बटोखरी' की प्रसिद्ध गढी थी, जिसे अब 'बाड़ख्याड़' कहते हैं।  यह गोरखा-काल में नष्ट हो गई।  कहते हैं, यहाँ से कोटापर्यंत ग्रामवासियों की घनी बस्ती थी।  यह लोकोक्ति प्रसिद्ध है-"हाट कि नालि काटा, काट कि नालि हाट।” अर्थात् हाथोंहाथ नाली हाट से कोटा और कोटा से हाट तक घूमती थी। उजड़े हुए घर, पत्थर में खुदे हुए ऊखल और बस्ती के चिह्न पहाड़ की तलहटी में मिलते हैं।

शीतलादेवी को बदायूँ के वैश्य लोग देश से लाये थे।  ये होर के साह लोग छखाते के साह हैं।  ढुंगसिला ग्राम में रहते हैं।  रानीबाग़, चौघाणापाटा ग्राम भी इन वैश्यों के हैं।  बल्यूटी के चकुड़ायत भी शीतलाहाट के चकुड़ायत हैं।

भीमताल ढंगसिला गाँव में राजा भीष्मचंद का स्थान है। अब यह 'भूमियाँ' याने भूमि का रक्षक माना जाता है।
पर्वतीय इलाके में वर्णन योग्य तीन नगर हैं-(१) नैनीताल, (२) भवाली और (३) भीमताल।

श्रोत: "कुमाऊँ का इतिहास" लेखक-बद्रीदत्त पाण्डे, 
अल्मोड़ा बुक डिपो, अल्मोड़ा, 
ईमेल - almorabookdepot@gmail.com
वेबसाइट - www.almorabookdepot.com

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ