-:दांतौक घुन आंखौक फुल:-
लेखिका: अरुण प्रभा पंत
हमर उत्तराखंडा'क अधिकतर मैंसना'क दांतन में घुंत और आंखन में फुल पड़ मिलौल। जैक क्वे ग्वालगुसैं भयो तौ इलाज है गोय नंतर नान बै ठुल जांलैं यो तकलीफ में आजाक जमान में लै पार नि पान। हर गौक हर बाखय या यकलकट्टू कुड़न में यो देखीं। उसी कै हींग, लौंग तमाक(तमांकू) दांतों में लगै बिचार, आपण और संघर्ष में डुबी आपण जीवन दर्द में गुजार दिनी।
'आंखन में फुल'छु कै बेर आंखैक के और बिमारी छु, के उननकं तकलीफ छु क्वे नि जाणन। उसै तकलीफ में रत्तै बै ल्हिबेर ब्याखुलि जांलैआपण बुति धाणि में लागि पुर जीवन बितूणी हमार असल 'घर पहरु' हमर पहाड़ा'क रखवाल व्यथा में हमर रीत रिवाज हमर संस्कृति कं जीवंत करि हमर पहाड़ कं पौहरै राखणयीं।
क्वे छु उनौर? के बिल्कुल निगावगुसैं छन उं। मलिबै बाघ सूंगर बानरनौक प्रकोप।नानतिन परदेशन। मुणि गोर बाछनौक सहार, मुणी पैंशन और राशनौक नाज उनन कं ज्यून तो धरणौ, पर नानतिनौक परदेश प्रवास, साधन हीन तंत्र, मनखी विहीन डान-कान के कालपाणि है कम सजा भयी।
हर चुनाव में भलभल फसक लोकलुभावन बात सबै भौय पर आज जांलै क्वे लै समस्या सही ढ़गैल उपचारित नि कर सक क्वे। हर बेर नय धुन में दम्मू नांगार ढोल ढोलुक बाजणौं पर सब नानतिननौक झुनझुना जौ है जां या कौ इंद्रैणी जौ फल। हमार घर पहरूनाक दांतौक घुन और आंखौक फुल उस्सै ,जसौक तस।
विचार करण पर समझ आओ शायद।
मौलिक
अरुण प्रभा पंत
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