
★कुमाउनी इंटरव्यू: श्री ज्ञान पंत ज्यू◆
हमार कुमाउनी रचनाकार【20】
मित्रो, कुमाउनी इंटरव्यू श्रृंखला कें आपुण भौत सारै प्यार मिलण लागि रौ। जैल म्यर लै हौसला अफजाई हुना और मैं लगातार आपूं सब लोगना सामणी समय-समय पर एक नयी कुमाउनी रचनाकार'क संक्षिप्त परिचय ल्हीबेर हाजिर हुनयूँ। तो यै क्रम में, आज मैं ल्हीबेर ऐरयूँ हमार कुमाउनी रचनाकार श्री ज्ञान पंत ज्यूक संक्षिप्त साक्षात्कार।
इनर जनम अगस्त 1958 हूँ हुसैनगंज लखनौव में ईजा-श्रीमती परमेश्वरी पंत व बौज्यू श्री केदारदत्त पंत ज्यू (जोकि रेवन्यू बोर्ड में सहायक रजिस्ट्रार पद बटी रिटैर भयी) वां भौ। इनून शिक्षा में विज्ञान और पुस्तकालय विज्ञान बटी स्नातक करौ। यौ वर्तमान में आपण परिवार दगाड़ इंदिरा नगर कॉलोनी लखनौव में रौनी। वैं बटी आपणि कुमाउनी लेखनी खुशबू फैलूण लाग रयी। पहाड़ में नाम मात्रौकै रूंण उबाद लै आपण मन और लेखन में पहाड़ कें बसै राखण कसिक संभव भै हुनेल यासै कई सवालौ'क जबाव जाणना लिजी आओ बढनू अघिल कै....सवाल जवाबाक माध्यम में...
सवाल01◆ महोदय सबसे पैली आपुण बा्र में बताओ धैं? शिक्षा काँ बै ल्हे नौकरी कि करै और आपुण घर परिवारा बार में?
जवाब● मैं लखनौ मैयी पैद भयूँ। ययीं एक प्राइमरी स्कूल "डी०पी० निगम स्कूल" में तीन पास करि बेरि चौथ क्लास आपण गौं गराऊँ 'क , "घुसी स्कूल" बटी पास करौ। पाँच में फिर परिवार सहित लखनौ ऐ गयाँ। इंटर तक लखनौ में "कान्य कुब्ज कालेज" में और स्नातक (विज्ञान, पुस्तकालय विज्ञान) लखनौ यूनीवर्सिटी बटी पास करौ। घरवाई नाम मंजू पाण्डे छी, अब पंत है ग्यो। उ लै लखनौ 'की ई छ। ल०वि०'क बीए बीएड टौपर छ ...... पर घरैकी नौकरी में मनीजर छ😀😀। घरवाई लखनौ मतलब प्रवासि पहाड़ि छ हाँ ..... कयीं लबमैरिज न समझिया। म्यार एक चेलि और जौंया च्याल् छन। चेलि और एक च्यालौ ब्या है ग्यो। चेलि दिल्ली टैगोर इंटरनेशनल स्कूल में टीचर छ। जवैं ओएनजीसी में एस०ई छ।
एक च्योल कंप्यूटर इंजीनियर, एचसीएल कं० में सीनियर डैवलपर और दुहौर, होटल मनैंजमेंट वा्ल आईटीसी हैदराबाद में सहायक प्रबंधक छ।
● मेरी नौकरी ..... स्टील फैक्ट्री अलवर में, फिर साराभाई ग्रुप में और घुमि फिर बेरि आवास-विकास 'कि पुरि नौकरी में केन्द्रीय प्रयोगशाला 'क इन्चार्ज रयूँ। रिटायर हैयीं द्वि बरस है गियीं। पेंशन कतु मिलैं, यो जन पुछिया 😀..... मगर जरुवत हैं ज्यादे मिलैं। लियो पैं, आ्ब है ग्योन्होल ...... बाव ले झड़ि गियीं। गंज है रयूँ, जतु बचि रयीं, उलै स्यात छन। डाई लगै बेरि के करण है रौ .... हमन जै जो देखण लागि रौ। .....
तुम अना्ड़-पिता्ड़ निकायि दिनाहा। यो इंटरव्यू छ या सी बी आई जाँच ! पैं जी रया।
सवाल02◆ रचना धर्मिता कब बटी और कसिक शुरू भै कुमाउनी लिखणैकि प्रेरणा कां बटी मिलै?
जवाब● रचनाधर्मिता ले के खास जसि नि भै। 1980 में जब हुसैनगंज मोहल्ल बटी इन्दिरा नगर आयां त नई कालोनी हुंणा वीलि सुनसानी छी। न मैंस, न घर ..... जां देखछां लेबरै - लेबर जबकि मोहल्ल में तिल धरणें जा्ग ले नि हुनेर भै। इन दिनांनै तीन गौं नै जमीन, भरीं पुरीं घर बार सब छाड़ि बेरि आ्म ले पहाड़ बटी ऐ गेछी.... कालोनी एकांकीपन, आम'क उदेख, शहर में रुणैं मजबूरी, लेबरनौ शोषण, सामाजिक विसंगीता, सम्बन्धनै यसि-तसि, के नि कर सकणें'कि म्येरि मजबूरी, पढ़ाई-लेखाई है विचलन आदि और ले न बतूँण जा्स कई कारण छन, जनैलि लेखणां लिजी प्रेरित करौ। मैं कैं ले लागौ कि आपण बात कूणों सबन हैं भल योई तरीक छ। शुरुआत हिन्दी कहानि बटी भै। स्थानीय प्रतिष्ठित अखबार'न, मैगजीन में खूब छपीं। सारिका पत्रिका'कि अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में दस हजार कहानि'न में पुरस्कार लिजी मेरि कहानि ले स्वीकृत भै। नाम "रेवती काखी" छी ...... फिर छाड़ि दे। बाद में जागरण, हिन्दुस्तान समाचार में लेख लेखीं ..... फिर यो ले छुटि ग्यो। यसी कै अव्यवस्थित रचनाधर्म और जीवन ले समझौ। हमा्र पुर खानदान में यो परम्परा कैं नि छी। हाँ, म्यार मा्म ज्यू पचास'क दशक में कहानि लेखी छी।
कुमाउनी सिखणों और लेखणों'क ले गजब किस्स छ ....... 1982-83 बात छ। मेरि हिन्दी कहानि'न पढ़ि बेरि आकाशवाणी वा्ल बंशीधर पाठक जिज्ञासु ज्यूलि कैका मार्फत मैं कैं बुला और पुछौ ..... कुमाउनी बोलना जानते हो ? मैलि कौ, बोल नहीं पाता, समझता हूँ ...... क्या यार कैसे पहाड़ी आदमी हो। बहुत सरल है, मैंने भी यहाँ आकर सीखी......जिज्ञासु जी, कुमाउनी'क गैल जानकार हुँणां बावजूद ले कुमाउनी नि बलांछी। फिर उनैलि एक कांट्रेक्ट में साईन करा और कुमाउनी में कहानि लिखण तैं कौ। शीर्षक छी "स्वैंण बिलै गियीं" ..... तीन दिन बाद जब लेखि बेरि ल्हिगयूँ त उनैलि खोर् पकड़ ल्हे और कूँण ला्ग... शीर्षक का मतलब समझते हो? मैलि कौ ..... हाँ , "पत्नी खुश हो गई" । ..... अरे नहीं यार, स्वैंण का मतलब होता है सपना और बिलै गियीं यानी सपने चूर हो गये...... फिर, उनले समझा, व्याकरण ले बता। यै बावत 1983 में 75 रूपैं मिलीं......यसी कै हौस लागी और थ्वाड़ भौत सिकौ। उत्तरायण कार्यक्रम'क ले योगदान भये। यैका वीलि लखनौ, देहरादून, अलमा्ड़ ले कवि गोष्ठी / वार्ता'न ले गयूँ और जांण, पच्छयाँण बढ़ी।
सवाल03◆ उ तीन मनखीनों नाम बताओ जनरी जीवनी और कार्य आपूं कें हमेशा प्रेरणा दिनी?
जवाब● म्योर गैल अध्ययन न्हाँ। हिन्दी, कुमाउनी'क सबै महत्वपूर्ण लेखक, कवि थ्वाड़-थ्वाड़ सबै देखी, सुँणी, पढ़ी भ्या। तीन नाम कौला त मैं बंशीधर पाठक जिज्ञासु ज्यू और नवीन जोशी हिन्दुस्तान समाचार वा्ल'नौ नाम ल्हियूँन जनन थैं मैलि लेखणों "सहूर" सिकौ। एक जगदीश ज्योशि ज्यू मास्टर सैप छन ..... उनन पढ़ि बेरि ले मैलि कुमाउनी गद्य और कवितानों अतांज लगा। अंताज, यै वीलि कि मैं पहाड़ रयी नि भयूँ और समझनेर ले नि भयूँ ....। गिर्दा त मेरि चेतना समझौ.......खालि झुठि के बलां कि मैलि पंत, प्रसाद , निराला सब घोटि राखीं।
सवाल04◆ आपुण खास शौक के-के छन?
जवाब● मैं पहाड़-डोयूँण भल लागों और योई नि है सक ! बाकि, मैंस छूँ त सामान्य ऐब ले भै।
सवाल05◆ आपुण लोकप्रिय मनखी को छन? क्वे एक' नाम बताओ।
जवाब● भा्ल मैंस सबै प्रिय भ्या। मैं बुराई देखन्यूँ नै त सबै भल लागनीं। एक छाँटण मुस्किलै छ यार।
सवाल06◆ आपुण हिंदी और कुमाउनी में प्रकाशित किताबों नाम कि -कि छ?
जवाब● हिन्दी में त हिम्मत न पड़ि मगर ऐल साल एक कविता संग्रह जरुर आल। इथकै-उथकै पुराँणि फाम ले लेखी छन। मौक लागलो, उ ले छापी जा्ल। होय कुमाऊँनी में कविता संग्रह कणिंक और बाटुइ छपै राखीं । सब ठीक रयै त "फसक" ले छापण छन। देखौ कब ऊँनीं पैं .....।
सवाल07◆ आपुण जिंदगी एक यादगार किस्स बताओ जो सबन दगड़ी साझा करण चाँछा?
जवाब● राजेन्द्र ज्यू , यादगार जस के बतूँ ..... सबै यादगार छन। तुम ले यादगारै भया......यो ले एक संयोग छ कि 'कणिंक'क विमोचन में जाँ वरिष्ठ साहित्यकार छी। गिर्दा, जिज्ञासु ज्यू , राजीव लोचन साह ज्यू , महेश पाण्डे ज्यू , गोविन्द पंत 'राजू ', बी मोहन नेगी ज्यू , अरुण कुकसाल ज्यू और कुलदीप नैयर ज्यूनै उपस्थिति एक यादगार छ। विमोचन, उमेश डोभाल स्मृति समारोह में भौछ वांई 'बाटुइ'क विमोचन में हमैरि युवा पीढ़ी'क कवि, एक्टिविस्ट व साहित्यकार ऐयीं। यो ले यादगार छ ..... पार साल, डोई पाण्डे ब्या में पहाड़ बटी विनोद पंत खान्तोली, रुद्रपुर वा्ल हेम पंत, शंकर दत्त जोशी "कुमाउनी कवि", रिस्की पाठक, नितेश पंत, उमेश पुजारी और भास्कर जोशी लखनौ ऐ रैछी। भेंट घाट करणें लिजी घर ऐयी त बाटुइ 'क विमोचन ले कर गियीं ...।
सवाल08◆ लेखन कार्य करते हुए आपूं कें आज तक के-के सम्मान और पुरस्कार मिलि रयी
जवाब● यो ले एक सम्मान समझौ कि साक्षात्कार ल्हिणोंछा। सम्मानै लिजी के सोचै नैं ! उसी गोपाल उपाध्याय साहित्य सम्मान और सर्वभाषा ट्रस्ट दिल्ली, सम्मान मिलि रयीं जैक मैंकें पत्तै नि चल। बाद में सोशलमीडिया बटी पत्त लागौ कि दिल्ली मुख्य अखबारन में नाम ऐ रौ कै। पहरु ' ल ले सम्मानित करि राखौ। शाल, मा्व, प्रशस्ति पत्र, कइएक संस्थानों सम्मान के बतूँण है रौ। सब स्वान्तः सुखाय भये त यैकि जरुवत न हुँनि। सम्मान'न में ले एक राजनीति हूँछि ..... यो विषय अलग है जा्ल।
सवाल09◆ आपूंल पहाड़ में कतू समय बिता क्वे पहाड़ै याद जो मन कें प्रफुल्लित करैं?
जवाब● मैं पहाड़ एक्कै साल कक्षा चार में रयी छूँ और वांक ढुँङ, पाथर, गाड़, गध्यार, रौड़, बोट-डाव, जंगल, घर, खेत, हिसालु, काफल, पुलम ...... के के बतूँ , यो सब मन खुशि करनीं। पहाड़ म्यार खून में ले दौड़ौं .....।
सवाल10◆ आपुण हिंदी और कुमाउनी क प्रिय लेखक को-को छन एक-एक नाम बताओ?
जवाब● एक लेखक'क नाम बतूँण मुस्किल लागों ..... पहाड़ 'क सबै भा्ल लागनीं।
सवाल11◆ पहाड़ी खाणु में आपण मन पसन्द खाणु के छ?
जवाब● मैं भटै-दाव, डुबुक और पाँणिं में जौल ...... सबन है ज्यादे प्रिय भै। मडुवौ फा्न खैयी लागों पचास बरस है ज्यादे है गयीं।
सवाल12◆ नवोदित लेखक व रचनाकारों हूं कि कूंण चाला?
जवाब● मैं लेखक कां भयूँ जो के बतै सकूँ मगर कुमाउनी लेखनेरन थैं योई कूँण चां कि लेखण है पैंली कुमाउनी में सोचण ले सिखौ तबै मौलिकता आलि और पच्छयाँण ले बणैंलि। बांकि पठन-पाठन त जरुरी भये।
सवाल13◆ आपण जिंदगी'क सबन हैं खुशीक एक मौक बताओ?
जवाब● म्यार लिजी खुशी या दुख सब बरोबर भै। यै वीलि के खास मौक के बतूँ ...... योई समझौ कि "सुख देखै नै त दुख के बतूँ"। सब बढ़ी भै ...।
सवाल14◆ क्वे यस काम जो आपूं समजंछा अगर यौ है जांछियो तो भौत भल हुंछी?
जवाब● इष्ट देव और भगवाननै किरपालि सबै काम हुँण लागि रयीं त के बतूँ ! पहाड़ 'क गौन में रुणें भौत इच्छा छ। देखौ धैं, पुरि हुँछी या क्वाठनै रूँछि। म्यार लिजी पहाड़ जै बेरि, होटल 'न में रूँण ..... नरक है पर-पर समझौ।
सवाल15◆ जसकि आपूं पहाड़ में भौत कम समय रौछा उ बाद लै आपुण मन और रचना में पुर पहाड़ बसौं, यौ सब कसिक संभव भौ?
जवाब● यो सवालौ उत्तर म्यार पास ले न्हाँ ! भौत सोचूँ कि यो पहाड़, "दगड़लग्गू" कसिक है पड़ौ पर के समझ नि ऊँन। समझ आलो त तुमन ले बतै दियूँन। न जा्ंणनेर, सच नि माननी मगर यो साँचि छ कि मैं एक्कै साल चार में रयी छूँ। यां मम्मी कुमाउनी बलैनेर भै त हम उत्तर हिन्दी में दिछयां। घर में माहौल त पहाड़ी भये। ऊँण जानेर ले ज्यादे पहाड़ी भै। उन दिनांन सबनां घर ऊँण जांण ले जरुरी हुँछी ...... । बस, यसी कै थ्वाड़ भौत सिकी ग्यो। बलांणा लिजि प्रोत्साहित करण छाड़ौ, मध्यवर्गीय सामान्य परिवार 'न में हतोत्साहित करी जांछी कि "टोन" खराब है जालि कै ! यै वीलि भलिकै नि बलै सकन्यूँ पर कोशिश करते रूँ! राजेन्द्र ज्यू .... असल बात छ कि कै दिगा ले प्रेम करौ त उ आफि है मेसी जा्ंछ। पहाड़ दिगा म्यार ले क्याप यसो छ।
सवाल16◆ आपण जिंदगी क मूल मंत्र कि छ?
जवाब● जिन्दगी में प्रेम करौ, सबनां लिजी भल सोचौ त फिर भलिकै चलते रूँछ ...... मैं यसी कै साटि पार पुज रयूँ।
सवाल17◆ आपूं कें टीवी में देखण के भल लागों?
जवाब● ना यार टीवी ज्यादे शौक नि भै। के देखूँ हाका-हाक .... शेर 'दा कविता सटीक बैठें।
सवाल18◆ लोकभाषा बचूण किलै जरूड़ी छन?
जवाब● यै बावत खूब लेखी जै रौ मगर हालात आजि ले उसै छन। बात तिति लागैलि मगर मैं भाषा कैं लोक और संस्कृति'क थिका्व (आवरण) समझूँ। यै वीलि भाषा नि होली त समाज कैं बिन-थिकावनौ मैंस जसो समझौ फिर ....... ! हमैरि पचछ्याण ले भाषा ल्हीबेरै छ। पहाड़ में द्वि करोड़ है ज्यादे रूँनी। यो सबै पहाड़ि जि भै ..... भाषा कैं दुदबोलि ले कयीं जां किलैकि यो हमन दुध 'का दगा्ड़ मिलैं। संस्कार ले भाषा वगैर खालि समझौ ...... । भाषा महत्व बाद में पत्त चलौं जब मनखी घर है भ्यार जांछ। प्रगति करणों यो मतलब कतई नि भै कि हम आपणि बोलि भा्ष सब छाड़ि दियों, आपणन कैं भुलि जाओं ..... मगर आज तसो है रौ ! नान्तिन ले आ्ब सवाल करण बैगियीं ...... और हम निरुत्तर छां ! पलायन करनेर 'न कैं दोष दि बेरि आ्ब के हुनेर न्हाँ। भोल यो ले पुछि जा्ल कि जो पहाड़ै रयीं-उनैलि के करौ !
सवाल19◆ आपूं जबकि आब रिटायर हैगहा त आपुणि दिनचर्या कसी बितैं के-के करछा आपूं और आपूं आजकल के रचनौछा?
जवाब● रिटायरमेंट बाद मौज छ यार ...... तड़िन में आजि फूक छनै। अखबार, किताब, समाज सेवा, पर्वतीय संगठनों में भागीदारी और पहाड़'क चक्कर ...... जिन्दगी भली चलि रै। लालच नि भै त सब जरुवत है ज्यादे मिलि रौ कै सोचूँ। फिरव टैम मिलो त फेबु (फेसबुक) छापूँ 😀। एक बात बतूँण भुलि गयूँ ...... जून 2014 में नान्तिनैलि मेरि फेबु बणें। तुम देखिया सबन है ज्यादे कुमाउनी आलेख, कविता और कुमाउनी में कमेंट ले मैंले लेखि राखीं ....... कुमाउनी में कमेंट'नै शुरुआत करण में शैद म्योर पैल नम्बर हुन्योल। खैर ...../
सवाल20◆ अच्छा महोदय आपुणि नानि-नानि रचना कणिक और जिम कॉर्बेट पार्काक् शेर जबरदस्त हुनी एक द्वी सुणूंना'कन?
जवाब● सुणों पैं....
पहाड़न में
जिन्दगी छ
शहरन् में
जिन्दगी पहाड़ छ।
......................
घुघूती
बासण, छाड़ि दे पोथी
तेरि घू घू सुणनेर
गौंन में क्वे न्हाँ।
......................
गों में
गयूँ
होटल में
रयूँ।
................
आपणें
गों में
पोंण
भयूँ।
●एक आई...
खाल्ली मारा - मारी भै
द्वि गज जमीन 'क लिजी
मैं सोचूँ
अगाश त आजि ले खाली छ।
.........................
बखत 'कि मार में
च्याँ ले नि हुँनि
बदौल तारणेंकि
"वी" योई आदत छ।
सवाल21◆ आपण उत्तराखंडी समाज हूँ के संदेश छ?
जवाब● संदेश दिंण लैक त न्हाँत्यू पर यो जरुर कूँन कि जो लोग पहाड़ मैईं नौकरी करण लागि रयीं उनन घर-बार मेनटेन राखण चैंछ, किलैकि अघिल दस साल में लोग गौं उज्याँणि उनेर छन। यो पहाड़ मैंई नै सबै ठौर होल् ......। दुसौर नान्तिनन कैं हिन्दी, अंग्रेजी दिगा आपणि भाषा ले समझण, बला्ँण चैं। पलायन और प्रगति द्विनै को गर्भनाल सम्बन्ध भै। यै वीलि पलायन नि रोकि सकनां। पर मजबूत आधार ल्हीबेरि भ्यार आला त सबन भल लागौल। खाल्ली द्वि र्'वाटना लिजी त घरै ठीक भै ...... बस, जी रया-जागि रया।
सवाल22◆ क्वे यसि बात जो मैंन पुछि न और आपूं सब लोगन दगड़ी साझा करण चाँछा?
जवाब● तुम यो ले पुछ सकछा कि ततु पहाड़ प्रेम या फिकर छै त घर किलै नि जाना ? ..
... त, म्योर उत्तर होल् कि राजेन्द्र ज्यू , भौत देर है चुकि गे ! आ्ब के नि है सकन ....... फिर ले, सोचण में के लागों। को जांणों गौं पन रुणों के जुगाड़ बंणि जाऔ। मैं आजि ले चक्कर में छूँ कि कसी कै खन्योर है रयी कुड़ सुदारी जानो धैं कस हुँछी ! बखत कैलि देखि राखौ ....... आज करोना-करोना है रै और भोल, "आओना - आओना" है जौ। धन्यवाद राजेन्द्र ज्यू , जी रया, जो हम जासनां ले साक्षात्कार करण लागि रौछा।
भौत धन्यवाद महोदय भौत भल लागौ आपूं दगै बात करिबेर और भौत कुछ सिखण हूं लै मिलौ।।
पैलाग सादर।।
प्रस्तुति~राजेंद्र ढैला काठगोदाम।
आपसे अनुरोध है कि राजेंद्र ढैला जी के बारे में जानने के लिए
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