फरकि फरकि देखनहु

कुमाऊँनी कविता - ईजा मसारिया गाल्ला मसारनहु, चली गाड़ी फरकि फरकि देखनहु-Kumauni Kavita Farki Farki Dekhnahu

फरकि फरकि देखनहु
रचनाकार: राजू पाण्डेय

खुट्टा फरकि फरकि आया
छोड़नो देस, उबाल आगे माया
ईजा का लोबैग आया कुनै
आंखा छल्की छल्की आया।

मुड भारी जसै वजन लादी र
मन कुन्नो आफी रौलो यायी र
सब रोजी रोटी लगलाग भै
गौं घर छोड़ी देशो में माडी र।

आँखा में रिंगया होरी चार दिन
छुट्टी आछ्यु हसी बोलन खिन
चार दिन सुन्या न्याति फुर्र्र भया
गाड़ी हौरन लागुने झठ उने किन।

चली गाड़ी फरकि फरकि देखनहु
ईजा मसारिया गाल्ला मसारनहु
बाटा खन लै ईजाले खानो बाधी भै
"राजू" ईजा के पछेट पछेटे माननहु।

शब्दार्थ:
लोबैग - कुशल मंगल
मुड - सिर। 
यायी - यहीं। 
माडी - कुढ़ना
सुन्या - सपना। 
मसारिया - प्यार से सहलाये
पछेट पछेटे - साथ साथ में
~राजू पाण्डेय, 13-02-2020
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