
-:अज्यान और पैल्ली:-
लेखिका: अरुण प्रभा पंत
अणकस्सै अंधेर,अनाधुन अटपट
आफत जै भै हो तो फोटू खैंचण
मुख ट्यौड़ म्यौड़कर थोलन कं एकबटै
जे करन्हाल 'पाउट' कुनन बल
हमन कं हंसि ऐयी हम खित्त कर छिंया
यां चुप्प भिमै चै बेर हंसण भौय।
स्वानि काक दगड़ुअन दीदी बोज्यु
हम धुर जंगल में हंसन हंसन बौयी
पेटन, भांटन पीड़ हूण जांलै हंस छिंयां
बुड़बाड़िनाक सामुणि चुप्प मावलगै
हम बण जां छियां औलि न्यूलि जा।
मैं आपण चेलि ब्वारिन कं हंसण देख
मन में सोचूं कतु पल हमूल हांलीं ख्याड़
सबनौक लिहाज पर हंसण लै भयै
चार दिन भाय फिर खाणि के खाणि के
कैल देखौ अघिल अघिल होल के भाऊ
मौलिक
अरुण प्रभा पंत
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