
-:पुलम वालि आम्:-
(रचनाकार: अरुण प्रभा पंत)
पुछौ मैथैं भाउल यो केछु?
'पुलम' पोथा, यकं पुलम कुनी
लाल रंगौक जकं हम खांछियां
बोटाक तावन घुरी रूंछी रंग्वालिजौ
भौ कं बोत्या द्वि बिलैंत मिठ्ठैल चंण्या
एस करन करनै पुज्यूं मैं आपण गौ में
म्यार फाम में देखिगे मकं पुलम आम्
हमरि आम् हमरि बाखयिक सयाणि
रत्तै रंग्वालिक पिछौड़ जा पुलम, अल्बखर,
बदामि खुबानि बिछी रुनेर भायबोटाक जाड़न थैं
हम खै खै बेरअघयी ह्याल करछियां
आम् सबनकं डाल में धर बेर ध्वेबेर
आपण धोति में हालि सुखै बेर धरछी
आज सबनैक फाम कर निस्वासि मैं
याद उणै उ पुलम वालि मेरि आम्
पलायन के छु! आपणै जड़ काटण
हमूल आपण गौं छाड़ बोलि छाड़
छाड़ हालीं रीत रिवाज बस रै गेयीं
उनरि फाम उनर निस्वास उनरि नरै
मौलिक
अरुण प्रभा पंत
अगर आप कुमाउँनी भाषा के प्रेमी हैं तो अरुण प्रभा पंत के यु-ट्यूब चैनल को सब्सक्राईब करें
0 टिप्पणियाँ