
🍕द्यप्त पुजणूं 🍕
रचनाकार: सुरेंद्र रावत
म्यर ईजू ले मिहंती कीय, च्यला यती आधैं।
द्यप्त पूजणीं अलघता, के करूं बता धैं।।
द्वी बोकी तो घर में छन, द्वी तु खोजि आधैं।
द्यप्त पुजणीं अलघता, के करूं बता धैं।।
जाधैं च्यला जाधे कती, खोजि बै तु आ धैं।
चाहे राजु पान्डे ज्यु कैं, दगड़े लिजा धैं।
पन्त ज्यु हैं एक बार, पैलिक पुछी लिया।
कैरा ज्यु के कैंला जब तो, ऊ लै सुणी लिया।
पर जाधै च्यला जा , बोकी खोजि बै ल्या धैं।
द्यप्त पुजणीं अलघता, के करूं बता धैं।।
ईजा की यस बात सुणी, मैंले गोय बाटा।
बोकी चान, चाने ने गोय, मैं तो दोराहाटा।।
कैरा ज्यु दगड़ी दाज्यु, मेरी है गे भेट।
गफसफ खुब मार, भौते है गोय लेट।।
माफ करिया कैरा ज्यु, यों खालि फसक छन।
बस लिखहैं हैरौ मन, तुम नौक मानिया झन।।
जनर बोकी बेचो छ तो, मकी बताओ।
दुसर कविता में, पहुँच जूल में तो उनर ध्याव।।
म्यर ईजू लै मिहंती कोय, च्यला यती आधैं।
द्यप्त पुजणीं अलघता, के करूं बता धैं।।

शब्दार्थ:
ईज/मां
च्यला/बेटा
खोजि/खोजना
ल्या धैं/लाना
ज्यु/आदर सूचक शब्द
द्यप्त/देवता
बोकी/बकरा
सुरेंद्र रावत, "सुरदा पहाड़ी", 03-10-2019

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