हमौर बचपन

कुमाऊँनी कविता - नानछिनाक उ पढ़ाय, उ मार उ प्यार, नींव बणी मजबूत नि भुल सकन उकं -Kumauni Kavita Hamar Bachpan, remembering the childhood

-:हमौर बचपन:-
लेखिका: अरुण प्रभा पंत

हम जब छिंया नानतिन
उठन उठनै आंख मिनन मिन्नै
पैल्ली चां छिंया इज और आम्
चुप्प-चाप लाकौड़ौक क्वैलैल मांजि दांत
रिश्याक अटाय है दूरठाड़
इजैल दि दूद रोट झट्ट खाय पी
निकल गयां आंगण पन
जस्सै खेलण लागां ऐग्याय बड़बाजू
द्वि बगलाक, तीन उ कुणाक घराक
सब बैठां भिमै दरि में शुरू हैगे पढ़ाय
श्लोक, गिनती आंखर, कविता पाठ
आफ़त उनेर भै जब कान पकड़ हम
खानेर भयां जांठ पर फिर आंखीर में
मिलनेर भै हमनकं मिशिर, बिलैं मिठ्ठै
आंगणाक कुण थैं आम् बैठी हमरि 
हर मार में दांताक ताव जिबौड़ धर
कर अफसोस और कलि कलि में
रै जानेर भै पर बड़बाज्यूक डरैल चुप्प
हम लै छिंया हठी रोज मार फिर प्यार
नानछिनाक उ पढ़ाय, उ मार उ प्यार 
नींव बणी मजबूत नि भुल सकन उकं 
उ पाठ उ दुलार मकं फाम उ आंगण
खेलणहुं गिडु, क्वे ठांग या जांठ
कम साधन पर पिरेम भौत छी
आब साधन ज्यादे जगमगाट भौत
कुछ देखा-देखी कुछ होशिक रैगो
जो रस छी बिचौक उ कथप न्हैगो

कविता सुनिए अरुण प्रभा पंत जी के स्वर में 

मौलिक
अरुण प्रभा पंत 

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