
-:म्योर दिदिक दुल्हौ:-
लेखिका: अरुण प्रभा पंत
कहानिक नाम अणकस्सै जौ चितैइणौ नै।
ठीकै कुणयू दिदिक दुल्हौ हो तुमूल ठीक शुणौ। मैं हिमांशु आपण ठुल दिद है पंद्र बर्स नान छु। म्योर एक दाद छु जो मेर हैबेर पांच बर्स ठुल छू। जब मैं तीन में पढ़न छियूं तब मेरि दिदिक ब्या भौं। मेरि दिद मेरि दिद, दगड़ू, मासटरांणि, मेरि दगाड़ रात में म्योर अर्त करणी, मंक काथ कहानि, आंण, शुणूणी मेरि हर नकभल इच्छी पुर करणी मेरि कामधेनु भै। दिदिक कारण क्वे मथैं के नि कै सकनेर भै। दिद दगै मैं सितनेर भयूं। कत्तु ह्यूनांक अराड़ रातन में नानछिना मुतभरि जानेर भयूं पर दिदिल कभैलै मकं नि डांठ।
दिद मेरि परमेसर भै महुं। जब ऐस मेरि दिद कं जो मैस लिजाल तो मकं कस लागौल तुम अंताज लगै सकछा। के करूं जदिन दिद बिदा भै केबतूं म्योर कल्ज भ्यार ऐगोय हो, फुराड़ि गयूं। मैल दिदिक दुल्हौक खुटन कं नंगैल खरोड़ दे जब सबनैल कौ कि "जा आपण भिंज्यू कं नमस्कार कौ।" आब मकं भौत्तै अकल ऐगे पर उभत मकं लागौ कि तौ भान कुन लिजान बोरी बिस्तर, पलंग दैज वैज लिजान पर मेरि दिद कं कै लिजाणौन्होल तौ।
कस चै रौछी मेरि दिदिक उज्याण एकटक। पंडितज्यू पुज करूणाय वीक पुज में धियानै नि भौय,दिदिक उज्याणि चैयी भौय ,जे मन आन्होल तौ मैंस म्यार इज बाबून कं ।सब कुणाय भौत्तै भल घर वर मिलौ हो तुमैरि धीरा कं। कैलै ऐस नि कौय कि तौ दुल्हौ कं मेरि जै दिद मिल रै। दिद सबन कं रोऐ बेर न्हैंगे आपण सौरास ।मुणी दिन भौत्तै निस्वास लागौ उसी दिद तो म्यार पराण में भैठी है,पर इज बाब,दाद पढ़ै लेखै सबै करणै भौय।
दिदिल मैथै कै राखौ कि मैं भल नानतिन कौयकराकौक बढ़ बेर यूं और सब काम आपण आफि करुंल और जे पाकौल ते खूंल भ्यार भितेर सबन दगै मेसि बेर रूंल,दिदिल आपण ख्वार में म्योर हाथ धर बेर आपण कसम दि राखी कि मैं भली कै रूंल उछ्याति नि करुल।
ऐल मैं इल्लै बैठ रैयूं पर म्यार मनाकर भितेर मेरि दिद छु। म्योर दाद अमर मैथैं कूं कि सबनाकै ब्या हुनी हमार दिदिक लै ब्या है गो वील आपण घर जाणै भौय। उ पार मालघरैक बसंती दिदि लै तो आपण सौरास न्है गे। एक दिन मैं और तुलै तो ब्या करुंलै सही हम लै तो कैकी दिद या बैण कं बैवै ल्यूंल। असल में म्योर ठुल दाद अमर आठ में पढ़ूं अघिल साल उ बाबू दगै लखनौ जै बेर पढ़ाय करनेर छु उकं भौत्तै अकल भै।
दस बरस माथ लै मकं म्यार दिद धीरा भौत याद ऐं वीक नानतिन मकं माम कुनन। दादैक तो कत्थप बंगलौर पन नौकरी लाग गे। इज बाबू आब लखनौ दगड़ै रुनन। मैं यां कानपुर हैलेट में डाक्टरी पढ़न लागि रैयू। बेलि भिंज्यू दगै दिद मैथैं भेट करण हुं ऐं रैछी तो भिंज्यू आपण खुटाक तरफ इशार करबेर हंसणौछी जब मैल उनार खुटन हाथ लगैबेर नमस्कार कौ। भिंज्यू आय लै मकं गिजूनी कि उनार ब्या बखत मैल कतु नानतिन्यो करी तो दिद म्यार धाड़ लागबेर कैं हमौर हिम्मू (हिमांशु) नानै तो छी और सबन है ज्यादे म्योर लाड़िल और ऐस कै बेर धीरा दिद मकं अंग्वाव हालि प्यार करेंऔर मैं औरै अफुलि जानूं।
अरुण प्रभा पंत जी की यह रचना सुनें उनके ही स्वर में:
मौलिक
अरुण प्रभा पंत, नासिक, 29-10-2020
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