मनमाँ उदेख ओ मेरि बैंणा।

कुमाऊँनी विरह गीत - बरखा झुली रै सोंण का म्हैंणा, मनमाँ उदेख ओ मेरि बैंणा। मनमाँ।  Kumauni Geet

मनमाँ उदेख ओ मेरि बैंणा
रचनाकार: हीरा बल्लभ पाठक
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बरखा झुली रै सोंण का म्हैंणा
मनमाँ उदेख ओ मेरि बैंणा। मनमाँ

स्वामि छन् परदेश इकुली परांणी
कसिक् कट्यिछ यौ ऋतु रैंणा। मनमाँ

रिमझिम रिमझिम बरखा लै रैछ
पारक् भिड़ा छै रै इन्द्रैणा। मनमाँ

ओ मेरि दीदी ओ मेरि भूली
स्वामि ज्यु म्यरा नि ऊन स्वैंणा। मनमाँ

ह्यून में ओंल् कै चिट्ठि ऐ रैंछ
तब्बै जै हौली भगवती दैंणा । मनमाँ
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हीरावल्लभ पाठक (निर्मल), 14-07-2020
स्वर साधना संगीत विद्यालय लखनपुर,रामनगर
 
हीरा बल्लभ पाठक जी द्वारा फेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी पर पोस्ट

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