
बसंत
(रचनाकार: दिनेश भट्ट)
छाई रौ बसन्त आज
बौलि रौ बसन्त आज
कोयल कि कूक सुण्
न्योलि को बासन आज
हरि-भरि धर्ति ले ओड़ि रङवालि लाल
ब्योलि बनि, कैहिन् करयो गजब सिंगार आज
बुड़ा-बुड़ा पेड़न में आइ गै ज्वानि आज
जङ लाग्या साजन् में, कसो यो झंकार आज
तन-मन में बाजन् लाग्या कसा-कसा साज-बाज
छाई रौ बसन्त आज
बौलि रौ बसन्त आज
हाङ -फाङ हर्यालि, कलि-कलि हॅसछि आज
फूलन कि बर्खा भइ, झरि ग्यो केसर-पराग
बचि सकौ त बचो यारो, कसिकै बचला आज
छाई रौ बसन्त आज
हाइ रे बसन्त आज।
दिनेश भट्ट, सोर पिथौरागढ़

दिनेश भट्ट जी द्वारा उत्तराखंडी द्विमासिक पत्रिका "कुमगढ़" मई-जून-२०२० से साभार
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