
लेखक: दुर्गा दत्त जोशी
।कुमाऊंनी हास्य कथा।
आलिबेर फागुणाक् म्हांण अल्माड आपण गों बरेति न्यौत् गईं वां जसि झरफर हई भै पें तुमोंकें के बतों अणकसी हई भै। जसै में ब्या कुड़ि ढीक् में पुजीं तौ घराक् वलि धार में द्वि ज्यैंणि लाम् हई भै। उनार गिजन बटिक् राव टपकि भै। हतार लै अस्त बैस्त जास् हई भै। मैंनि समझि एननकें के फूडपोइजनिंग हैरै स्यात्। मैंनि उति बटिक धात् लगै, " हला ओ धनीया यां आए देख धें यार् एनन कि हैगो? " धनि हसंण फैगै, " न ज्याठबाज्यू एननि पैंनि अत्तर पे फिरि भौत् तीन तीन गिलास कच्ची पी दे ऊई लागि रौ ब्यालैं जांनेक ठीक है जाल्। यां यसै भै शहर जै कि भै? यांहीं रोज्जै यसै भै।"
फिरि कौंछा धनिया कै दगड़ ब्या कुलि पुजींत पाराक् पुनियेलि मैं हीं इशार करि बेर पाल् कमर् में बुला ले। कमर् में यक् नानि मेज चार कुसीं पड़ि भै। तली दरि लै भै। नमस्कार कुलबात् भईत् पुनि झट्ट उठत् यक् ह्विस्की बोतव लि ऐगै।" दाज्यू य बोतव तमरि धें धरि रखै जदुक पिछा"? ऊ के पत्ते न भै मैं त आगहांण शराब पिनेरै न भईं । पुनि मैंधें शराब पि ल्हिया कैबेर ऊ भ्यारैं न्हैगे। आब् मैं नरि कें चांण फेटीं ज्याक् च्यालक् ब्या में मैं आई भईं।
नरिकें चार जांणिनि पकडि बेर घेरि भै। वीक् हाथ् में बोतव् भै जननि घेरि भै ऊं कौंण लागि भै यक् में कान न चलल् यक् हौर ला। बाड़ मुस्किल लि उनन् धें बटिक् बचि बेर पुनि म्यार पास ऐ। बड़ खुशि हैगै पुनि। कौंण लाग् '' भल करौ दाज्यू तमजै आई गोछा। बोजिकें लै न लाया। नान्तिन लै औंन्।" कयो बात् चीत् भै उदिन स्वाल पथाई गणेश पुज् आबदेब पूर्वांक भै। ब्यालैं खाणे ख्याबेर सबन धें कई गै," रतहिं सब जल्दी आया बरात् नौ बाजि बाट् लागि जालि जो आलत् ठीक भै नतरि हम कैके एंतजार न करौं।"
को छोड्छ्यू निमखुंणि शराब, रतै राति ब्यांण सबै काम में लागि गै। थ्वाड़ चाखण बणि गै।सबनि जिद करि बेर बराक् बाप, बर, बामण सबैन कें धौके पिवै द्यू। पी बेर बराक् मुखडि़ में न्यारी रौनका ऐगे। नौ बाजण जाने सबै बरेतिन कैं धांक् मुक् लागण् फैगै।ढोलि छूलैति बाजवालनि सबैन कें खूब पिवै बेर बरात् बाट लागि।
मैं कें डर लागि भै बरलि हौर बामण द्विऐंनि लै आदुक आदुक बोतव पी भै। बरक् बाप लै पी बेर पगलीणीं भै। बरात् ब्योलिक घर जालितौ वां एननकें देखिबेर झिकड़ न है जाव्। म्यार क्वाठौंन कै हीं थौर पडि भै। बांकि सबै क्वै उल्टी करण लागि भै क्वे बाट् में भै बेर पैग बणौंण मैं लागि भै। घिनटान घिनटान कैबेर बाड़ शानन् में बरात् ब्योलिकुडि पुजि।
वां जै बेर देखिछ्यो ब्योलिक बाप पी बेर बेहोश हई भै धुलिर्घाक् लिजि ब्योलिक बुब कें बुलाई गै। ऊं पुराण जमानाक् भै जै जमान में क्वे शराबक् नाम् लै न जांण छि। हमार तरपक् बामण मंत्रनाक् बीच् में हुच्की ल्हीनेर भै। उतरपक् बामणेलि पुछ सबै पी आ रछा या थ्वाड बचै बेर लै रौछा। थ्वाड़् में कें लै चखाया। "चिंता झन करा य् धुलिर्घ निपटावा जदुक कौला तमन के लै पिवै द्यूंन बराक् बामणैलि कै" धो धनिकै ब्या भै। बरात् घरैं ऐ मैं द्यारादूंण।


आज ले जदिन ऊ बरेतिक याद ऊं। ओ हो जैकें देखछीं ऊई पी बेर मगन् हई भै। यकैं मैं हौर यक् ब्योलिक बुब द्वि जांणि भयां जनन कें य् तमाश् देखिबेर डर लागि भै। क्या थ्वाडा़ मैंन लै पि ल्ह्यूंण छ्यू आब् कसिकै पैं।
दुर्गा दत्त जोशी

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