जिम कार्बेट पार्काक् शेर......
रचनाकार: ज्ञान पंत
कभै तु मेरि ले सुँणि कर
तेरि बात त हुँनी रुनेर भै।
अन्यार् में ले उज्याव लुकि भै
कभै जैङिणी कैं ले देखी कर।
बखत 'क ले भरौस करी कर
दुन्नीं बेमान नि समझी कर।
बात 'कि - बात रै जां दुन्नी में
तु सोचि बेरै खाप खोली कर।
यसि - तसि मैयी रै गिया हमि
दुन्नी कां पुजि रै ले देखी कर।
पेट त कैको नि भर यां पन्
कभै भकार कैं ले चायी कर।
जाण् त सबन् कैं छ एक दिन
कभै भल् काम ले करी कर।
गुईया-गुई त सबन् भल् लागौं
तु कभै तिति पाति ले चाखी कर।
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बखत् न्है जाँछ्
पत्तै नि लागन्
चौमास'कि गाड़ जस्
बगनै रूँछ ....
लाख थामौ
थामीनै न्हाँ
कतुकै बादौ
मुच जाँछ् ....
कभै सोचौ ले त
गाँठ् पाड़ी जानीं
जिन्दगी अल्जी जाँछि
बखत'क फेर में
मनखी
अघिल् कै कम
पछिल् ज्यादे देखौं
बाँज् पड़ि खेतन् में
कि होल् कै सोचौं त
उकैं
कैका बाड़ुन
झुकि पड़ि रयी माल्टा
और नारिंङ ले देखींनी त
जिन्दगी
दाड़िम'क फूलै न्याँत
आजि हँसण् भै जैं ....
साँचि कूँण रयूँ
हमि यसी कै
यां जाँणै पुजि रयाँ।
जैंङिणी - जुगनू
खाप -- मुँह
भकार -- अनाज रखने का बड़ा बक्सा
गुईया - गुई .... मीठा- मीठा
तिति पाति .... तीता , चाखी -- चखना
मुच -- हाथ से निकलना
अल्जी -- उलझना
बाँज -- बंजर
बाड़ुन -- बगीचे में
झुकि -- लदा हुआ
Nov-Dec 2016, (फोटो चोरिक छ)

...... ज्ञान पंत
ज्ञान पंत जी द्वारा फ़ेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी से साभार
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