मी वेदव्यास छयू

कुमाऊँनी व्यंग्य-वेदब्यास ज्यू लि कौय ठीक छ.., पर यो दिव्यदृष्टि एकै दिन काम आलि।  Kumaoni satire Divya Drishti by Ved Vyas in lock down

मी वेदव्यास छयू....
(लेखक: विनोद पन्त 'खन्तोली')

बेलि रात घनघोर नीन आई भै।  अचानक एक बाबा ज्यू प्रकट हैग्याय, मूख लै मास्क लगाई भै . मास्क बटी दाडि तलिके निकली भै।  मैल कौय - प्रणाम गुरुदेव, को छा, कां बटी आछा, कि रूपी आछा, ऐल इदुक अधरात में . और यो लौकडाउन में क्यामैं आछा।  बाबाजी कूण लाग - मी वेदव्यास छयू .. लौकडाउन पीरियड में तेर द्वारा करी घरेलू कार्य बटी प्रसन्न हैबेर त्वेकें बर दीणैते ऐरयू।  मैलि कौय - महाराज बर तो मी छनै छयू, ब्योलि दिना कन्

व्यास ज्यू क्रोधित हैग्याय. .. तू भौते बेशरम हैगोछे, तदुक भलि दुल्हैणि मिलि रै, रनकारा होश कर।  नतर फचैक खै राखलै म्यार हात.. चुपचाप वर माग।  मैलि कौय - पैं दिव्य दृष्टि दी दिओ।  वेदब्यास ज्यू लि .. कौय ठीक छ.. पर यो दिव्यदृष्टि एकै दिन काम आलि. यो समझ एक जीबी डेटा मिलौल।  भोल रात बार बाजि तक खर्च कर लिये , ब्याल कै सात बाजी तक बिलकुल साफ साफ देखियल फिर स्पीड कम हैजालि और फिर देखीण कम हैजाल

मैलि कौ - तदुक बहुत भै, आब ब्यास ज्यू अन्तर्ध्यान हैग्याय।  मैलि आपुणि दिव्यदृष्टि चैक करण लगाई तो अधरात हुणा वीलि अधिकांश लोग पडी भाय घनघोर नींन में।  बस एक रिस्की पाठक लागि भै घरवालिक खुट च्यापण में,  आब भै ब्वारी राठ भाय मीलि ज्यादे नै चै बेर सितण कि कोशिश करि, सोच कि भोल रत्तै और जाग देखुल।  आब दुसार दिन रत्ति ब्याण नौ बाजि उठ्यू।  मैं सीद दिल्ली वाल जेठबौज्यू क यां आपुण दृष्टि केन्द्रित करि, तब तक सवा नौ बाजि गे।  जेठबौज्यू बिस्तरै में सीति भै, ताईजी घचबचूण लाग तो जेठबौज्यू लि बाकि जै नखार लगा दी

ताईजी लि कौय उठना कन तो जेठबौज्यू कूण लाग- यार डिस्टर्ब नि कर, जरा चहा पिला तब उठुल।  ताईजी लि कूण लाग - पैली नांण ध्बैण करो, आज ग्रहण छ।  चहा पाणि ब्याल कै तीन बाजि बाद मिलौल।  जेठबौज्यू कूण लाग, यार तौ नाण क नाम नि ल्हि, पांच दिन पैलियै तो नै राखौ।  उसके ले आजकल कोरोना वीलि कती उण जांण नि भै तो नाणकि के जरवत हैरै

ताईजी आब जरा क्रोधित हैग्याय,  कूण लाग .. तास कि हुनेला तुम, बामण छा क्याप ..।  आब जेठबौज्यू गम्भीर हैग्याय . .. यार यस छ हम उपराडा क पन्त भयां।  हमन कैं ग्रहण कालक क स्नान माफ छ, हम उसीके शुद्ध भयां, चार राठ पन्तन में सबसे ठुल  ताईजी कूण लागि - तस तो मैलि नि सुण कि उपराडा क पन्तन कैं नांण माफ छ।  जेठबौज्यू कूण लाग - अरे तू कां बटी सुणली, पुरखि बुबू (पुरुख पन्त) क जमानै बात भै।  जब हनैलि उपराड क गौं कें जीतौ तब बटी यो बरदान मिलि भै

आब ताईजी ले भीतर बटी बेलण लिबेर ऐग्याय, कूण लाग-बन्द करो तौ बरदान सरदान कि बात।  तुम उपराडा'क पन्त छा तो मी ले पुखरि कि ज्वेशि नैकि चेलि छ्यू।  फटाफट नांण जाओ .. नतर .... हद्द हैरै यो जेठ बैसाख से नाण में तदुक पाज्यू ..।  (मरता क्या न करता जेठबौज्यू बाथरूम में घुस गे . मैलि ले सोचि जब तक जेठबौज्यू नांण क काम करनी मी लखनऊ चै ऊं दाज्यू नाक यां)

आब साढे दस बाजी भै, दाज्यू बिस्तरै में लमलेट हई भै . बीच बीच में फेसबुक में ले अपडेट करणाय।  बोज्यू आय तो उनैलि कौय, उठो ग्रहण ले छ, योग दिवस ले उठो धें, दोफरी हैगे।  उठणक नाम सुणते ही दाज्यू चद्दर ढकी बेर मुख लुकैबेर नीना क नखार लगूण बैठ ग्याय।  बोज्यू न कैं गुस्स ऐ गोय, कूण लाग उठछा या पाणि तौड्यू तुमार ख्वारन, उठो फटाफट योग करो

आब दाज्यू कूण लाग - यार योग तो करनयू ..।  बोज्यू कूण लाग - हाय बिस्तर में कस योग हैरौ??  दाज्यू लि हल्क मुस्कराहट क साथ कौय- शवासन .. ,और यैक बाद निद्रासन करुल ..।  बोज्यूनलि कपाव लै हाथ मार खुट पटकनै रिस्याउन न्है ग्याय ... बडबणान बैठ - जी बज्यूछा हाई ..।  आब दाज्यू कें टन्न कैबेर दुसरि नीन ऐगे . उनर घुराट सामणि पार्क तक सुणीणय

आब मैलि सोचि बिरादरनाक हाल तो यासै छन .. जजमान कें देखी जाओ दिव्य दृष्टि लि ..।  दिल्ली एन सी आर वाल ठाकुर सैप उज्याणि दृष्टि दमै।  ठाकुर सैप नै ध्वे बेर .. कागज पत्री धरिबेर लेखण में लागि भाय।  एक कागज में द्वि हजार आट् प्रत्यय वाल कुमाउनी शब्द लेखणाय।  दुसार में पहाडि क बोट डावनाक नाम, तीसार में लगभग सात सौ चाड प्वाथनाक नाम ..

ठकुराणि ज्यू लि घात लगै .. सुणनछा ..??  ठाकुर सैप कूण लाग - सुणनछा कैं अलमाड, बागसेर, राणीखेत, पिठौरगढ में के कूनी बता धें रे ...।  ठकुराणि ज्यू लि सुणयकि नि सुणी कर दी.. ठाकुर सैप आब यो सब लेॆखी फेसबुक में पोस्ट करण लागि गे।  
(मैलि आब आपुण दृष्टि वापस आपुण घर में केन्द्रित करी .. तो एक घोर आश्चर्य देख . घरवालि प्रसन्न मुद्रा में मेर पास बैठी भै . मेछे कूण लागि .. वाह .. भौते भल .. ग्रहण काल आँख बुजि बेर भगवान क ध्यान करण देखिबेर भल लागौ मेकें ... मैं प्रसन्न छयू . आज तुमरि दोपहरकि भनपान माफ)

मैल सोचि चलो दिव्य दृष्टि क चक्कर में के त फैद भो .. पर अचानक याद आ . बज्जर .. अ ...। आज तो ग्रहण छ .. दिन में खाणै नि पाक तो भनपान क्याकि .... मल्लब फकोटक ऐहसान क बोज पीठि लागि गे ...।

विनोद पन्त' खन्तोली ' (हरिद्वार )
M-9411371839
विनोद पंत 'खन्तोली' जी के  फ़ेसबुक वॉल से साभार
फोटो सोर्स: गूगल

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ