हैगे ब्याउ

कुमाऊँनी कविता-कतुकै रातियकि हैगे ब्याउ, थोकदार अब बुसी गई, पधान बनी गई कतुक डुट्याव। Kumaoni Poem about the situation of society in Kumaon villages

हैगे ब्याउ
रचनाकार: रमेश हितैषी

कतुकै रातियकि हैगे ब्याउ,
मंनखिक जगम रैगी स्याव।
थोकदार अब बुसी गई,
पधान बनी गई कतुक डुट्याव।।

सरकारी ईस्कूलु परी लागि गि ताव,
अंग्रेजील दिखै रै सरग पताव।
मास्टर जप में घर कणि माव,
गरीबुक ननुक लागि रौ भविष्य दाव।।

हमूकें नि दि कैल न भाव,
कैक गिच हन खण्ये रै दाव.
बारि बारी बै पधान बन मेँ,
जनता ज्यौनै घालि डि खाव.

हमुल आजी लै ओड़ी रौ चाव,
क्वे त कौलु यकु छाव न्याव।
कैकी मौ मौकी नहै ग्ये,
कैकि नि भरी कागजुक ताव।।

18 सालक जिया जंजाव,
10 पधानुकि बुन्णी मकड़ी जाव।
क्वे क्वे 22 साल बै एक जग डटि रें,
कैन परि फ़्यड़ों बड़पनी उमाव।।

क्वे बदलो पाला क्वे नि पुछो हाल,
आपण करै दी आपुल माल माल।
हम आजी लै उनुकें जागिए रहै गु,
दिनी नि दिन या अजी खेलनी चाल।।

तुमुलत खोली सुदै पन्याव,
जग जागु देखो टपका में लाव।
कतुके कच्यवों कतुक लठ्यवों,
कैकै नि गाड़ि रौ गिचकु जाव।।

हमत नहै गु अब मौजम खाओ,
ढूंगा डई सब पचै जाओ।
घड़ियाली आँसू बिलकुल न बगाओ,
उजड़ी पहाड़ कें लै लुटि लुटि बै खाओ।।

सर्वाधिकार@सुरक्षित, September 21, 2018
श्री रमेश हितैषी

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