U bhoot ni chhi: उ भूत नि छि

कुमाऊँनी कहानी-उ भूत नि छि, मनखी है क्वे ठुल भूत नि हुन। Kumaoni article about the mith of vanishing ghost by performing Jagar

खरी खरी-415 : उ भूत नि छी
('वह भूत नहीं था' सच्ची कहानी का कुमाउनी रूपांतर)
लेखक: पूरन चन्द्र काण्डपाल

वर्ष 1995 में म्यर पैलउपन्यास  ‘जागर’ हिंदी अकादमी दिल्ली क सौजन्य ल प्रकाशित हौछ जो बाद में ‘प्यारा उत्तराखंड’ अखबार में किस्तवार छपौ लै।  जैल लै य देखौ वील यकैं भल बता।  एक दिन महानगर दिल्ली में रत्ते पर उपन्यास क एक पाठक रेशम म्यार पास ऐ बेर बला, “कका आज दिन में तीन बजी हमार घर भूत कि जागर छ, म्येरि घरवाइ पर भूत नाचें रौ।  एक कम्रक मकान छ, बैठणक लिजी जागि न्हैति ये वजैल केवल आपूं कैं और एकाध सयाण झणी कैं बलूं रयूं।  डंगरि आल, दास नि अवा, डंगरि बिना ढोल- हुड़क कै हात–पात जोड़ि बेर नाचि जांछ।  आपूं जरूर अया, ”तीन वर्ष पैली रेशमक ब्या हौछ।  पांच लोगोंक य परिवार में इज- बौज्यू, एक भै, रेशम और वीकि घरवाइ छी। परिवार एक भौ लिजी लै तरसि रौछी।

मि ठीक तीन बजे वां पुजि गोय।  वां यूं पाँचोंक अलावा पड़ोसक द्वि जोड़ि दम्पति और डंगरिय मौजूद छी।  धूप-दीप जगै बेर, डंगरिय कैं दुलैंच में बैठा और रेशमक बौज्यू जोड़ी हाथों कैं मुनाव पर टेकि बेर गिड़गिड़ाने कौं राय, “हे ईश्वर- नरैण, य म्यार घर में कसि हलचल हैगे? को छ य जो म्येरि ब्वारि पर लैरौ।गलती हैगे छ त मिकैं डंड दे भगवन, यैक पिंड छोड़।” डंगरिय कापण फैगोय और ब्वारि लै हिचकौल–हिनौल खेलें फैगेइ।  ब्वारिक उज्यां चै बेर रेशमक बौज्यू जोरल बलाय, “हम सात हाथ लाचार छ्यूं, तू जो लै छै येकैं छोड़, मिकैं पकड़, मिकैं खा।” ऊँ डंगरियक उज्यां चानै बलाय, “तू देव छै, द्यखा आपणि करामात।” य बीच ब्वारि भैटी- भैटिये ख्वारक खोली बाव हलूनै डंगरियक तरफ सरकि गेइ।  डंगरियल जसै उकैं बभूत लगूण चा उ बेकाबू घोड़िक चार बिदकि गेइ, यस लागें रय कि उ डंगरिय पर झपट पड़लि।  डंगरिय डरनै बचाव मुद्रा में ऐ बेर म्ये उज्यां चां फै गोय।

य दृश्य देखि सब दंग रै गाय | रेशम म्येरि तरफ देखि बेर बलाय, “य त हद हैगे | यैक क्वे गुरु गोविन्द नि रय।  यस डंगरिय नि मिल जो ये पर साव सेर पड़ो।परिवार कि परेशानी देखि म्यार मन में एक विचार आ और मि उठि बेर भ्यार जाणी द्वारक नजीक भैटि गोय।  मील गंभीर मुखड़ बनूनै जोरल कौ, “बिना गुरुकि अन्यारि रात नि हुण चैनि ! बता तू कोछै? को गाड़- गध्यार बै ऐ रौछे? खोल आपण गिच।  आदि-आदि..” म्येरि भाव- भंगिमा और बोल सुणि बेर सबै समझें फैगाय कि मि उ डंगरिय है ठुल डंगरिय छ्यूं ।  म्यार उज्यां चै बेर रेशम क बौज्यू बलाय, “परमेसरा बाट बते दे, म्यर इष्ट –बदरनाथ बनि जा।” मील उनुकैं इशारल चुप करा।

मि रेशमकि घरावाइक उज्यां चै बेर बलायूं, “तू बलाण क्यलै नि रयै? नि बलालै मि बुलवे बेर छोडुल।  मसाण- भूतक इलाज छ म्यार पास।” उ नि बलाइ, मील रेशम उज्यां चै बेर जोरल कौ, “धुणि हाजिर कर दे सौंकार।”  रेशम-  “परमेसरा यां धुणि कां बै ल्यूं?”  मि - “धुणि न्हैति तो स्टोव हाजिर कर दे।” रेशम तुरंत रस्या बै स्टोव, पिन और माचिस ल्ही बेर आ।  म्यार इशार पर वील स्टोव जला।  मि - “चिमट हाजिर कर दे सौंकार।” उ भाजि बेर गो और रस्या बै चिमट ल्ही आ।  सबै समझें रौछी कि म्ये में द्याप्त औंतरी गो पर य बात निछी।  डरल म्येरि हाव साफ़ है रैछी।  मील ठान रैछी, अगर रेशम कि घरवाइ म्ये पर झपटली तो मि द्वार खोलि बेर भ्यार कुतिकि जूल।

मील स्टोवक लपटों में चिमट लाल करनै रेशम कि घरवाइ उज्यां चै बेर कौ, “जो लै भूत, प्रेत, पिसाच, मसाण, छल, झपट तू य पार लै रौछे, अगर त्ये में हिम्मत छ तो पकड़ य लाल चिमट कैं, नतर मि खुद य चिमट कैं त्यार गिच में टेकि द्युल।” मी उकैं डरूणक लिजी कौं रौछी।  लाल चिमट देखि रेशम कि घरवाइक हिलण बंद है गोय और उ ख्वार में साड़ी पल्लू धरनै सानी कै उतै बै पिछाड़ि खसिकि गेइ।  आब मी बेडर है बेर जोरल बलाय, “जो लै तू य पर लै रौछिये आज त्वील य धुणि –चिमटक सामणि येक पिंड छोड़ि है।  आज बै येक रुमन- झुमन, रुण –चिल्लाण, चित्त-परेशानी, शारीरिक- मानसिक क्लेश, रोग -व्यथा सब दूर हुण चैनी।” यतू कै बेर मील स्टोव कि हाव निकाल दी।

जागर ख़तम है गेछी।  उ डंगरियल मिकैं आपू है ठुल डंगरी समझि मुनव झुकै बेर म्यार उज्यां चानै हात जोड़नै कौ, “धन्य हो महाराज।” रेशम आपणि घरवाइ कैं अघिल ल्या और मिहूं बै उकैं बभूत लगवा।  बभूत लगूनै मील उहैं कौ, “आज बै तू निरोग छै, निश्चिंत छै और बेडर छै।  खुशि रौ, आपू कैं व्यस्त धर, कुछ पढ़ –लिख, खालि नि रौ और एक परमात्मा में विश्वास धर।  भूत एक भैम छ,  कल्पना छ।  खालि भैटि बेर बेकाराक, उल-जलूल विचार मन में पनपनी।  येकै वजैल खालि दिमाग भूतक घर कई जांछ।  जिन्दगीक एक मन्त्र छ कि कर्म करते रौ, व्यस्त रौ और भगवान में विश्वास धरो।  यतू कै बेर मि चड़क उठूं और नसि आयूं।

य क्वे सोची समझी योजना नि छी | सबकुछ अचानक हौछ।  कएक लोग मिकैं भूत साधक समझण फै गाय  भूत हय नै, साधुल कैकैं? य एक भैम -रोग छ जो यौन वर्जना, डर, फिकर, आक्रामक इच्छाओं कि पुर नि हुणल  कुंठाग्रस्त बनै द्युछ और दबाव देखूण पर भावावेश में य रूप प्रकट है जांछ।  मनखी है क्वे ठुल भूत नि हुन।  आज क्वे यसि जागि न्हैति जां मनखी नि पुजि रय।  रेशम कि कहानि हमूकैं य बतै छ कि वीकि घरवाइ पर क्वे भूत नि छी।  अंधविश्वास कि सुणी- सुणाई बातोंक घ्यर में उ कुंठित है गेछी | अघिल साल उनार घर एक भौ जन्म है गोछी।  हमुकैं फल कि इच्छा नि करण चैनि और कर्म रूपी पुज में व्यस्त रौण चैंछ।  अंधविश्वासक अन्यार कर्मयोगक उज्यावक सामणि कभै लै नि टिकि सकन।

(य सांचि कहानि म्येरि किताब ‘उत्तराखंड एक दर्पण -2007’ क आधार पर उधृत।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल, 16.04.2019
पूरन चन्द्र काण्डपाल

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