ल्या धैं मेरी चेली

कुमाऊँनी कविता-असोज के महीने में अपनी बेटी जिसकी शादी हो गयी है को याद कर रही है एक मां। Kumaoni Poem remembering daughter who is is with her husband

🍕🍕ल्या धैं मेरी चेली🍕
रचनाकार: सुरेंद्र रावत

असोज के महीने में, काम करते करते।
अपनी बेटी को याद कर रही है एक मां।
अब जिसकी शादी हो गयी है। 
जरा गौर किजियेगा।

छापड़ी में लोहटू र्वट, हाथों में केतली।
मूं गढेरिक साग बणै बै, ल्या धैं मेरी चेली।। 
गिलास भरि बै छां, हां गिलास भरि बै छां। 
मनुवक र्वटम धरि बै दिदे, तीलै की चटणी।।

पाणी पिणक टैम निछ, लैगे चाहा'क अमल।
धारों ठन्डो पाणी ल्यै बे, को मकणी द्यल।। 
गिलास भरि बै चा, हां गिलास भरि बै चा।
मिसरी क कटक दशैं , दिजा तु मकणी।।

छापड़ी में लोहटू र्वट, हाथों में केतली। 
मूं गढेरिक साग बणै बै, ल्या धैं मेरी चेली।।
असोज मैहण लै रौ, धपरी को घाम।
मेरी पोथा तेरि आणै, मकैं भौतै फाम।। 

शब्दार्थ:
चा-चाय, छां-छांज
छापड़ी-छोटी टोकरी जिसमें रोटी रखते हैं। 
गढेरिक-अरबी की, मूं-मूली
मकणी-मुझे, चेली-बेटी
तीलै-तिल
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ॐसूरदा पहाड़ी, 25-09-2019
सुरेंद्र रावत, "सुरदा पहाड़ी"

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