कस् हुंछी धैं?

कुमाऊँनी कविता-कस् हुंछी धैं? kumaoni bhasha mein kavita, kumaoni poem about lifestyle

🌷कस् हुंछी धैं ? (क्या होता?)🌻

रचनाकार: प्रकाश पाण्डेय
 
म्यारा बाखई का कुण मजी, 
    अमरूद नाशपाति लुति रौनी, 
गुणि बानरनैकि धांग ऐजां, 
    क्वे हका दीना तो कस् हुंछी धैं?
यों बुबुल रोपीं बाबुल सैतीं, 
  हमुल  फल  मस्त  है  खैईं,
फांचिन भरि बेर ल्ही जाना, 
    क्वे टोड़ि खाना तो कस् हुंछी धैं?१ *!!गुणि०!!*

स्यूंताका गुद बाँजाक लिखमाव, 
     किलमौड़ाक जाड़ तिमुलाक् डाव, 
द्वि चार बोट आम आखोड़ा का, 
      लागि जाना हो तो कस् हुंछी धैं?२!!गुणि०!!*

गोरू की बाछि भैंसकी थोरि, 
     बाकरैकि पाठि कुकुड़ाका प्वाथ, 
घ्यू - दूद तुम आफि है खाना, 
     बांटि दीना छाँ तो कस् हुंछी धैं?३!!गुणि०!!*

गौंनूं-गौनूं में  पुजिगे मोटर, 
      छैं बिजुलिका  पोल घर-घर में,
मोबाइल खल्तिन छैं सबूं  का,
      इनौर उठूना फैद तो कस् हुंछी धैं?४ *!! गुणि ०!!*

हमार पहाड़ाका पढ़ि लेखिया, 
छैं ठुल-ठुल सैप शासन मजि, 
कदिनै यों  साल-छै  मैहणै में, 
      यौंलै  घर ऊना  तो  कस् हुंछी धैं?५!!गुणि ०!!*

🙏प्रकाश पाण्डेय, कनखल, हरिद्वार, 06-05-2022🙏

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