भगवान शंकर ने छोटा कैलाश से देखा था राम-रावण के बीच युद्ध

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भगवान शंकर ने छोटा कैलाश से देखा था राम-रावण के बीच युद्ध


भक्तों की अटूट आस्था का संगम भोलेनाथ की तपस्थली  - 

भीमताल। भीमताल से 30 किमी. दूर गौला नदी के उत्तर पूर्व में स्थित पिनरो गांव  की ऊंची चोटी पर भगवान भोले बाबा की तपस्थली छोटा कैलाश लोगों की आस्था का संगम है। यह स्थल अमीर गरीब के बीच की खाई को पाट देता है। अपने आराध्य भगवान के दर्शन के लिए महाशिवरात्रि को देश-विदेश के कोने-कोने से लोग मीलों दूर पैदल चलकर भोले बाबा के दर्शन को छोटा कैलाश पहुंचते हैं। इस बार महाशिवरात्रि को एक लाख से अधिक श्रद्धालुओं का जनसैलाब यहां पहुंचने कि अनुमान है।  मान्यता है महाशिवरात्रि पर्व पर यहां पूजा अर्चना कर जलाभिषेक का महत्व मानसरोवर तीर्थ यात्रा के समान है।

 देश के कोने-कोने से लोग यहा पूजा अर्चना का पहुंचते हैं।  लोगों में श्रद्धा, एकता, समन्वय का अटूट संगम दिखाई देता है। स्थानीय लोगों द्वारा पानी की जबरदस्त किल्लत केबावजूद भी यहां पहुंचने वाले हर एक श्रद्धालुओं को जलाभिषेक के लिए पानी उपलब्ध कराया जाता है। छोटा कैलाश तक सड़क मार्ग नहीं होने से सलूरा गांव के तोक भटेलिया से करीब 4-5 किमी खडी चढाई पार करके लोग अपने आराध्य देव की पूजा को पहुंचते हैं। बताते हैं कि त्रेता युग में भगवान शंकर ने इसी स्थान से राम और रावण का युद्ध देखा था। साथ ही उन्होंने यहां तपस्या भी की थी। द्वापर में वनवास के दौरान पांडों पुत्रों ने इस चोटी में भगवान शिव की पूजा की थी।

पांडवों ने यहां भगवान शिव के किये थे साक्षात दर्शन 

भीमताल। भीम सरोवर किनारे स्थित पौराणिक भीमेश्वर महादेव मंदिर में महाशिवरात्रि पर्व पर जलाभिषेक का बड़ा महत्व है। शिवलिंग में जलाभिषेक मात्र से ही लोगों के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। जिसके चलते शिवरात्रि पर्व पर मंदिर में दिनभर श्रद्धालओं का जलाभिषेक व पूजा-अर्चना को तांता लगा रहता है। बता दें भीमताल झील के छोर यानी डांठ पर पौराणिक भीमेश्वर महादेव का मंदिर है। मान्यता है कि पां इसी स्थान पर भगवान शिव की स्तुति कर उनके साक्षात दर्शन किए थे, तत्पश्चात भीम ने यहां शिवलिंग स्थापित की। बताते हैं कि जलाभिषेक करने के लिए उनके द्वारा जमीन में गदा मार कर पानी निकाला गया। इसके बाद वहां सरोवर बन गयी। तब से ही इस झील का नाम भीमेश्वर यानी भीम सरोवर पड़ा। यह भी बताया जा जाता है कि 10वीं सदी में चंदवंशी राजा कल्याण चन्द्र ने मंदिर का जीर्णोद्धार किया था। मंदिर में आज भी कई ऐसे अवशेष मौजूद हैं, इसके पौराणिक महत्ता को प्रदर्शित करते हैं।

दैनिक उत्तर उजाला, मार्च १, २०२२ से साभार

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