नैनीताल जिले की अद्भुत छोटे कैलाश की यात्रा

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नैनीताल जिले की अद्भुत छोटे कैलाश की यात्रा

लेखक - सुनील भारती

नैनीताल जिले में स्थित भीमताल की खड़ी पहाड़ियों की ऊंचाइयों में देवों के देव कैलाश के वासी भगवान शिव का धाम छोटे कैलाश के नाम से विख्यात है। छोटा कैलाश जाने के लिए शिव भक्तों को हल्द्वानी से अमृतपुर भोर्षा होते हुए पिनरों गांव के रास्ते से 3-4 किलोमीटर दूर खड़ी चढ़ाई व कठिन मार्ग से होते हुए इस धाम तक पहुंचते हैं।

भीमताल ब्लॉक के ग्रामसभा पिनरों में स्थित छोटा कैलाश मंदिर शिव भक्तों के लिए आस्था और श्रद्धा का प्रतीक हैं यहां भगवान शिव के प्रति आस्था रखने वाले भक्त सावन माह में शिवलिंग में जलाभिषेक के साथ पूजा अर्चना कर भगवान शिव का आर्शीवाद लेने आते हैं। यहां हर साल शिवरात्रि पर लाखों की संख्या में भक्त मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं सावन माह में शिव भक्त छोटा कैलाश,मंदिर में भगवान शिव की पूजा अर्चना करने आते हैं।

किवदंती हैं कि पिनरों स्थित छोटा कैलाश को भगवान शिव का निवास कहा जाता है।  ऐसी मान्यता है कि सतयुग में भगवान शिव एक बार यहां आये थे, अपने हिमालय भ्रमण के दौरान भगवान शिव और माता पार्वती ने इस पहाड़ी पर विश्राम किया था। महादेव के यहां पर धूनी रमाने के कारण ही तभी से यहाँ अखण्ड धूनी जलायी जा रही है. मान्यता है कि यहाँ पहुंचकर शिवलिंग की पूजा करने से भक्तों की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालु यहां पर घंटी और चांदी का छत्र चढ़ाते हैं। जहां हर साल शिवरात्रि पर लाखों की संख्या में भक्त मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं। वहीं सावन माह में भी रोजाना सैंकडों भक्त पूजा के लिए यहां पहुंचते हैं।
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छोटा कैलाश तक पहुंचने का मार्ग बेहद मनमोहक और शांत है। रानी बाग में पुष्प भद्रा और गगरांचल नदी के संगम पर बने पुल को पार करते ही छोटे कैलाश का रास्ता शुरू हो जाता है। इसी मार्ग पर थोड़ा आगे जाने पर अमृतपुर जाने वाला रास्ता इस सड़क से दूर हो जाता है गार्गी नदी और सड़क कुछ दूर तक साथ साथ चलती है, अमृतपुर गांव के मध्य पहुंचने के बाद सीधे पिनरों तक जाया जाता है। अमृतपुर से जंगलिया गांव जाने वाला मार्ग बहुत ही खूबसूरत और प्राकृतिक सुंदरता से भरा हुआ है। जहां पर पंछियों के चहकने की आवाज शिव भक्तों के मन को शांति और सुख प्रदान करती है। मार्ग में अनेक ऐसे गांव पड़ते हैं जो पहाड़ी सांस्कृतिक परिवेश को दर्शाते हैं। यहां के लोग खेतों में सब्जी और अनाज को उगा कर अपना जीवन यापन करते हैं।

छोटा कैलाश जाने के लिए पिनरों से आगे यह मार्ग बनाना गांव होते हुए जंगलिया गांव के लिए जाता है। छोटी पगडंडियों के साथ तीखी चढ़ाई छोटे कैलाश की यात्रा को बहुत कठिन बना देती है, लेकिन मन में शिव धाम जाने प्रबल इच्छा इस कठिन मार्ग को आसान बना देती है यात्रा के दौरान रास्ते में पड़ने वाले गांव जो मिट्टी व लकड़ी बने दरवाजे, खिड़कियां जिनमे पहाड़ी वास्तुकला की छाप दिखती है ।गांव में मौजूद यहां की इकलौती दुकान से आप अपने खाने पीने का सामान ले जा सकते हैं। खड़ी चढ़ाई के साथ यात्रा के दौरान पानी के लिए कुछ एक जगह है जहां पीने का पानी मिलता है। क्षेत्र वासियों के द्वारा शिवरात्रि के समय पर काफी दूर से पानी लाकर मंदिर परिसर में संग्रहित किया जाता है, जिससे श्रद्धालुओं के लिए पीने के पानी की अच्छी व्यवस्था हो सके।

छोटा कैलाश मंदिर ऊंची पहाड़ियों की चोटियों पर बना है, जहां से पूरी पर्वत श्रंखला का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है कैलसा और गार्गी नदी की खूबसूरत घटिया श्रद्धालुओं की थकान को मिटा देती है छोटा कैलाश के बारे में यह कहा जाता है कि सतयुग में भगवान शिव एक बार यहां आए थे हिमालय भ्रमण के दौरान भगवान शिव और माता पार्वती ने इसी पहाड़ी में आकर यहां विश्राम किया था और इसी स्थान में भगवान शिव ने धूनी रमाई थी। इसलिए इस स्थान पर अखंड धूनी जलाई जाती है।
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मान्यताओं के अनुसार, इस स्थान पर जो भी श्रद्धालु आकर शिव की आराधना करता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। मनोकामना पूरी होने के बाद अपनी श्रद्धा अनुसार भक्त चांदी का छत्र वह घंटी चढ़ाते हैं। छोटे कैलाश में कई सालों से मंदिर में तपस्या कर रहे कैलाशी बाबा कहते हैं, जब भगवान शिव यहां पर आए तो उन्होंने यहां पर एक कुंड का निर्माण किया, जिसे आज पार्वती कुंड के नाम से जाना जाता है लगातार श्रद्धालुओं के आने व कुंड की सही देखरेख नहीं होने से यह कुंड सूख गया है पार्वती कुंड का निर्माण वह उसे फिर से पुनर्जीवित करने का प्रयास क्षेत्रवासियों द्वारा किया गया है, जिसके दर्शन मात्र से ही भक्तों को शुख प्राप्त हो जाता है।

कैलाशी बाबा बताते हैं कि सावन और माघ के महीने में यहां श्रद्धालुओं की आवाजाही बहुत बढ़ जाती है, महाशिवरात्रि के दिन दूर-दूर से यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ जाता है, जो यहां पर आकर पूजा अर्चना करते हैं महाशिवरात्रि के दिन हजारों भक्त यहां पर रुक कर अनुष्ठान करते हैं अलग-अलग जगह से कई दल हर साल यहां आते हैं और रात भर एक पाँव में खड़े होकर शिव की आराधना करते हैं इस तरह तपस्या के समय मंदिर प्रशासन के लोग उन सभी श्रद्धालुओं का पूरी रात ध्यान रखते हैं तपस्या के समय अगर किसी श्रद्धालु को कोई परेशानी होती है तो उसका पूरा ख्याल रखा जाता है।

मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालु दोबारा यहां आते हैं और भेंट स्वरूप अपनी इच्छा अनुसार घंटी आदि चढ़ाते हैं आज भी मंदिर का स्वरूप वैसा ही है जैसा 20 वर्ष पुराना हुआ करता था। यहां पर देवों का देव महाकाल का शिवलिंग खुले आसमान के नीचे विराजमान है मंदिर के पुजारी विशेष अवसरों पर यहां आते हैं, बाकी समय कैलाशी बाबा यहां पर हमेशा रहते हैं और मंदिर की देखरेख व रखरखाव का ध्यान रखते हैं।
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(लेख-सुनील भारती, शोधार्थी पत्रकारिता विभाग, डीएसबी कैंपस नैनीताल)
दैनिक अमृत विचार, हल्द्वानी, मार्च ११, २०२१ से साभार

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