ओ पुतई धान दे...
रचनाकार: डॉ. सुमन पान्डेय्
धन पुतई धान दे।
ध्यान दे धान दे।
उडबै आलि आँगण में।
झट पकडलून तुकै मैं।
ओ पुतई तेर पॉख टूट गईं।
अब के हौल सोचूं मैं।
बन्द मुट्ठी में धरो तूकै।
ओ पुतई तू जो गई।
अब कॉ हूँ जाऊं मैं।
भेर देखि आसमान में उड़ी।
तू कतू दूर बै आई।
फिर पुतई तू ध्यान दे।
द्यो उणी छ तू निकल ले।
नि निकललि पॉख भिगाली।
पॉख भिगाली फिर तू नि उड़ पालि।
जा पुतई जा अब जा।
कोई बिल में तू छुप जा।
रात में तू फिर से आली।
बल्ब में तू रिटाली।
ओ पुतई तू यादै ऊछी।
उ नानछना तूथै बात हूछि।
तूकै देखबेर बादल ऊछी।
तू तो द्यो लै लुछी।
ओ पुतई जा अब जा।
दूर अगास में तू उड़ जा।
तली आली चिड़िया खाली
फिर से तू पुतई मर जाली।
ये लिजि कूणयूं,तू उड़ जा।
दूर अगास में तू छै जा।
जा पुतई जा अब जा।
फिर से मेर बचपन लि आ।।
डॉ. सुमन पान्डेय्, 23-01-2022
असि.प्रो.भूगोल
स्वा.वि.रा.स्ना. महाविद्यालय लोहाघाट।
फेसबुक ग्रुप "कुमाऊँनी शब्द संपदा" से साभार
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