
हमरि पछ्याण
रचनाकार: हीरा बल्लभ पाठक
गोरू गोठ द्याप्तों थान
यौ ई हुंछी हमरि पछ्याण।
भबरी रौयूं परदेस में
कसिक् हौल् हमर् कल्याण।
द्वी डबलूं खातिर गौं छोड़
इज-बाबू इकुलि परांण।
खेति-पाति को करूं
को बदवनो कुड़ी भरांण।
भकार टटास लै रयीं
डब्बन् में पिसू चांवो
हल्द मर्चैकि पुड़ी है रयीं
को पूछों आब् नाइ- मांण।
चहा शराबक् जोर है रौ
तलि बाखइ मलि बाखइ
सैंणि मैंस बुड़ ज्वान द्यखो
सब्बै है रयीं तंण-तंण।
ओहो भै-बैंणियो होशम् आओ
शराबौक् व्यापार करि बेर्
न करौ यौ मुलुक बदनाम
देवभूमि छु हमरि दुनी में पछ्याण।
आइ क्ये है रौ द्यखनै रया
भ्यारक् मैंस हमर् थड़म् ऐ ग्यान्
भोल् हैं न कुड़ि रौलि
न रौल् हमौर् द्यप्तौ थान।
हीरावल्लभ पाठक (निर्मल), 27-07-2021
स्वर साधना संगीत विद्यालय लखनपुर,रामनगर

हीरा बल्लभ पाठक जी द्वारा फेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी पर पोस्ट
0 टिप्पणियाँ