हमरि पछ्याण - कुमाऊँनी कविता

हमरि पछ्याण - कुमाऊँनी कविता,poem about pahadi culture, pahad ki sundarta aur prampara par kumaoni kavita, kumaoni bhasha ki kavita

हमरि पछ्याण

रचनाकार: हीरा बल्लभ पाठक

गोरू गोठ द्याप्तों थान
यौ ई हुंछी हमरि पछ्याण।
भबरी रौयूं परदेस में 
कसिक् हौल् हमर् कल्याण।

द्वी डबलूं खातिर गौं छोड़
इज-बाबू इकुलि परांण।
खेति-पाति को करूं 
को बदवनो कुड़ी भरांण।
भकार टटास लै रयीं 
डब्बन् में पिसू चांवो
हल्द मर्चैकि पुड़ी है रयीं 
को पूछों आब् नाइ- मांण।

चहा शराबक् जोर है रौ
तलि बाखइ मलि बाखइ
सैंणि मैंस बुड़ ज्वान द्यखो
सब्बै है रयीं तंण-तंण।
ओहो भै-बैंणियो होशम् आओ
शराबौक् व्यापार करि बेर् 
न करौ यौ मुलुक बदनाम
देवभूमि छु हमरि दुनी में पछ्याण।

आइ क्ये है रौ द्यखनै रया
भ्यारक् मैंस हमर् थड़म् ऐ ग्यान्
भोल् हैं न कुड़ि रौलि
न रौल् हमौर् द्यप्तौ थान।
🌿🌿🌿🌿🌿🌿

हीरावल्लभ पाठक (निर्मल), 27-07-2021
स्वर साधना संगीत विद्यालय लखनपुर,रामनगर
 
हीरा बल्लभ पाठक जी द्वारा फेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी पर पोस्ट

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ