
खाल्ली फसक - पहाड़ जाण्
लेखक - ज्ञान पंत
पैलीं पहाड़ जाण् आफत छी और जनन् मोटर लाग्छी, उनार् लिजी त नरक भै हो नरक मगर के करछा! बाबूनैकि मजबूरी छी कि आम् पहाड़ मैयी रुनेर भै और बुड्याकावौ शरीर, जब तब के न के लाग्यै रूँछीं, जब ले घर बटी जवाब आय् या चिट्ठी पुजी, हम लोग बोरा बिस्तर बादि बेरि घर हुँ लांगा बाट्। हमन् जनरल बोगी में सामान सहित ठोसणैं जिम्मेदारी जगथयी प्रयाग दत्त भट ज्यूनैकि भै किलैकि अर्जेन्ट रिजर्वेशन कां मिलनेर भै! प्रयाग 'दा द्वि घण्ट पैलीं जै बेरि जाग् घेरि ल्हीनेर भै। उ बाबूनांक् दफ्तर मैयी काम करछीं। लखनौ बटी नैनताल ऐक्सप्रेस में हल्द्वाणि और वी बाद फिर अघिल'क यात्रा।
घर जाँणै बात ले यां पन् खुशबू न्याँत फैल जनेर भै और वी बाद बिरादर लोगना 'क पुन्तुरि (पार्सल ) और सवाल-जवाब ले! कै न बतावौ त मुसीबत और बतै बेरि ले आफत। द्वि पैकेट रियूड़ि एक कपड़ा थैल में सिंणि बेरि नाम लेखि गे कि तल्ला गराऊँ के हरी किशन शास्त्री, कैले पौ भरि तमाख् कैं चार पन्नी और फिर थैल में लपेटि बेर लेख् कि सिमागाड़् के कुतना दाज्यू। कैले धोति भेजि त कैले कुर्त पैजाम्, यासै पाँच-सातेक पुन्तुरि नौव छै, रामबाड़ि और बजेरि वाल्नाक् पैलिए तैयार है जांछी और ल्हि जांण् ले पंणछी।
उन् दिनान पहाड़ जांण् में एक ठुल्लो सन्दूक, होल्डा , एक-द्वि थैल मामूली बात भै। योयी बात घर बै लखनौ ऊँण में ले हुँछी। क्लेशक्वायर गोबिन्दा इज भट , गौहत , भांग कुल मिलै बेरि चार किलो पुन्तुरि बँणै दिनेर भै । तारि दत्त ज्यू आठ दसेक चूका दांण् लूनेर भै। च्याला तु ले खै ल्हिए और गोबिंद कैं भिजै दिए, चार्रै ओखण छन्, केदारी, तु जग्गुवा ड्यार पुजै दिए। क्वे चार पिंगाव् ककाड़न् लि आल, केदारी ऐल साल ककाड़् लागै न्हांतिन्। कयीं लागि ले त यो नौव छैं शेक्खू नि रुँण दिनेर भ्यो। अधरात मैयी रानौ चोरि ल्हीनेर भ्यो - बाड़् मुश्किलैलि यो लुकै राखीं कि तु आलै त रेब्बू ले मिल् जाल्। फिर कान् लै खूरु-खुर कौल "द्वि त्यार ले छन् हाँ, अरे के बात न होल्डाल में सिरान मुणिं धरि ल्हियै यार।" बाबूनैलि कभै ना नि कौय्, हमैरि आम् सिरौव, मड्डुवौ पिस्यूँ, भांग्, भट, गौहत, मिसिर मणीं-मणी सब बादि दिनेर भै।
लखनौ ऐ बेरि इन पुन्तुरिन और सामान कैं बीरनगर, नजरबाग, सदर , नहर कालोनी, राजा बजार पुजुणैं ड्यूटि मेरि भै। द्वि एक बखत ककाड़ और नारिंग थेची ले ग्या लियूँण में मगर कभै कैले नक् नि मान्। अहा ! पुन्तुरिन् में कस् प्रेम हुन्यौल्! तबै त कैं कै ले लूँण में या ल्हि जांण् में कभै क्वे परेशानी नि हुनेर भै। बाद-बाद में त हमारै गौं लोग कूँण बैगेछी, चचा, मूँ वाया बरेलि जूँन, आब् पत्त न कतु रुकण् पणौं। नब्बू कुनेर भै "जेड़्जा, हल्द्वाणिं में सिकेट्टी शाल् ऐ रौ बल् । वीलि ऐन बखत मीटिंग लगै दे .. आब् घर बटी खालि हाथ जून नन्तरि मैं केदार'का लिजी त्यार सिरौव जरुर लिझै दिन्यूँ।"
दिगौ! बखता दगाड़् कतु चीज बदयी जानीं जो जरुरी ले छ। अगर बदलाव नि होलौ त फिर तरक्की कसिक् होलि? मैं विकास विरोधी न्हाँत्यूँ और नयी विचारनौ्क स्वागत करुँ मगर हमैरि प्रगति में मानवीय संवेदना और "पहाड़" अचानक हरै पड़ौ, योयी मैं गट् लागौ। नान्तिनैलि स्थायी पत्त में मकान नं० और फ्लैट नं० कब लिखण् शुरु करि दे, मैं पत्त नि लाग् हो। आब् पुन्तुरि ले चिट्ठी की न्याँत हरै गियीं ! पार्सल आन लाईन में कोरियर उनेर भै मगर उ में " उ " बात त कभै नि ऐ सकनेर भै .... !
हल्द्वाणि जांणै त ठीक मगर अघिल 'कि यात्रा कि भै यातना समझौ! पुराणिं बात है गे, उन दिनान् न त सड़क ठीक-ठाक छी और न ततु गाड़ि भ्या। टैक्सी ले भ्या मगर सबनैकि बसै बात ले नि भै कि टैक्सी में जावौ। आम पहाड़ि त "केएमओ" यानी कुमाऊँ मोटर्स ओनर्स यूनियन वाल्नैकि गाड़ि में जांछी। गाड़ि'क डिजाइन ने अजीब छी, आम् कुनेर भै " केमो ढोट् "। भ्यार कै चावौ त लाग्छी जांणि अल्लै भ्याव छुटां! यमै ले ड्राइवरै तरफ मूँख कर बेर बैठणीं पाँच सीट "अपर" कयी जांछी जो पैलियै भरि जांछी। वी बाद गाड़ी समानांतर द्वि लम्ब फट्याव् जास् सीट जमै आमुणिं- सामुणिं मूँख करि बेर लोग-बाग बैठछीं और बीच में सामान भरी रुनेर भै, "लोअर" सीट कयी जांछी। मिडिल सीट ले हुँछी या नि हुँछी, मैं याद न्हाँ।
उ में ले आदु सवारी लिजी सीट नि भै त नान्तिन कैका ले काखियूँन बैठ जनेर भ्या। हम तीन भै-बैणीं और इज मिलै बेरी चारन् कैं बस लाग्छी। इज त लाल कूँ बटी पहाड़ देखते वाक्क-वाक्क करनेर भै। एक बाबू छी जनन् बस नि लाग्नेर भै। एक तरफ ड्राइवर सैपले गाड़ि स्टार्ट करी, भुूर्र भुर्र, हौंहौंऔंऔं, इष्ट देवन् हाथ जोड़्, आपण कानन् द्विय्यै हाथ लगैयी और लाग् बाट्। रिंङन्-रिंङनै ज्योली कोट, भवाली बाद गरम पाँणिं में गाड़ि "लंच" करनेर भै। वां पकौड़ि, रैत और पय्यो,-भात, जनन् मोटर नि लाग्छी, उ खूब पचकूनेर भ्या मगर ईजै लिजी राम भजो। एक घूट चहा जबरदस्ती पियो ले त अघिल जांण् है पैली पल्टी जनेर भै। हम लोगन् बाबू के न के खवै दिनेर भ्या। इज कै त यो ले पत्त निहुनेर भै कि को कां बैठ रौ। एक बाबुनां काखियून और द्वि लोग मिलेटरी वाल्ना दगाड़ बैठ रुछियां।
उन् दिनन् ले मिलेटरी वाल्नौ भौत भरौस भ्यो। जो गाड़ि में द्वि-चार आर्मी वाल् भये त समझौ उनैरि यात्रा सपैड़ि गे, गाड़ि खराब है जावौ, बाट् पन् के अवरोध आवौ या क्वे बीमार है जावौ, सब आर्मी वाल् ठीक करि दिनेर भ्या। गाड़ि में बैठण बटी उतरण जाणै सबनाक् मददगार भ्या। हम नान्तिन् उनार् थिकावन् गंद करि दिनेर भयाँ मगर कभै कैले नक् नि मान्। गरम पाँणि बाद अल्माड़ रूकनेर भै, वां लोग बाग बाल मिट्ठै खरीदनेर भ्या। वी बाद रुकन-रुकनै गरुड़, कोशि होते गाड़ि ब्याव-ब्यावा टैम में बाग्शेर पुज्छी।
सबनाक् बुर हाल है जनेर भ्या जाँणि गाड़ि में है नै, बोरिन् है भ्यार निकायि राखीं। इज त एक घण्ट बाद होश मे उनेर भै। होटल में सामान धरि बेरि सब लोग नांण-ध्वैंण सरयू मैयी करनेर भ्या। हमन् ले एक रात बाग्शेर रुकण् पणछीं किलैकि दिन में द्वि बाजी बाद बेड़नाग-गंगोलिहाट उज्यांण गाड़ि नि जांछी। दुहार् रत्तै आठ बाजियै गाड़ि में हम बीनाग हूँ जांछ्या। उन दिनान् बाग्शेर में खटमल भौतै लाग्नेर भ्या हो!
ज्ञान पंत, 22-09-2015
बी-1392 इन्दिरा नगर लखनऊ

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