
निरोजी राज
रचनाकार: रमेश हितैषी
बुबू पैलाग भलि छौ कुशव बात,
फिरि जुड़ि गे बल गौंमें भै भयात।
तलि मलि बाखइ रौनक हरै बल,
समाई है लोगोंल पुरखों जैजात।
जी रैया नाती कैकि कुसव न बात,
तिकणी बतानु अपण दिलकि बात।
फूलों चक्कर में भ्योव घूरि पडु मैं,
क्वे लै रनकर ल नि थामि दि हाथ।
बुबु तुमुल रुड़ि मे मनै दि शिबरात,
गंग नै हया ध्वे हया सब पाप।
उमर ताकत बिलकुल लै नि देखि,
दुनिया भपकरों में मारि हया हाथ।
न भै नतिया येसि निछ क्वे बात,
बुढ़ बुबु ऐछि सालों बै म्यर गात।
जै जिया जै गुरु हौव पनै है गेछि,
ऐगे झट्ट उनु कें कुभ पर्वकि याद।
तुम लै बुबु जाणि कसि करछा बात,
कै दिन तुमर लै मजबूत छि हाथ।
न फूलोंल भरमाय न हाथिल दौड़ाय,
बस सुकिलि टोपुलि खटि खटि बात।
न भै नतिया अब कति रै उ बात,
आज़ बुसि गो पहाड़ को सुणु बात।
डरि मार हैरे आज़ बाखइ कि बात,
अंतर को खांछि यौ सड़ि चाँओउ भात।
सुणौ बुबु कस हरें गौं में ब्यौ बर्यात,
अब नि हुन आपस क्वे दंग फस्याद।
मानण भैगीं बल दान सयणुकि बात,
देव हेरें मै बाप भक्त हैरै बल औलाद।
को छै रे नतिया तू भलि कें छै बात,
जाणि म्यर मन कें बौखा मछै आज।
खालि हैरै खलेति इनरि खालि हैरौ हाथ,
अंतर किलै नि ऐ म्येरि वर्षों बै याद।
मैं छौं बुबु तुमर तलि बाखई प्रभात,
सुणि मौ भौत कुड़ि बाड़ि हैगीं आबाद।
नकि भलि, खटि मिठि क्वेलै छौ बुबु,
पर लौटित आ परिवार चै वर्षो बाद।
क्ये निछ भर्वसु के नि कुन झुटि आस,
मतलब निकाई यौं सब झड़कै दिल हाथ।
फिरि सुंगर, बानर अर गुण्यु कु किकाट,
क्वे ग्वाउ न गुसें येति निरोजी राज।
सर्वाधिकार@सुरक्षित, May 26, 2021

श्री रमेश हितैषी
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