
रुमझुमा चौमास
रचनाकार: भीम सिंह बिष्ट
धान दगड़ा खुशि है रयीं कहाणी महाणी
लैगो छ चौमास आब खूबै प्यूलो पांणी।
घ्वेड़ ककड़ा,चाड़ पोथिला बात लैरीं सब्ब
खाव पोखरा आब् हमारा, भरी जेंला डब्ब।
पिपौ, सिमौ, तुणि, दिबौ;करनी जिगर धार में
हौलकेँ अँगावहालुल, रुमझुमा चौमास में।
नौल धारा ज्वान हेंला,छिड़ बगिंला छैला
झिप लागलो बाट् घटा में,गाड़ चौड़ी जेंला।
खुण खुणां उबांण बाटा, हैजेंला चिफावा
छुण मुणियां द्यो लागलो, टुटि जेंला ढिकावा।
कनमुनां में बुणी गयीं, बणफूलों की बेला
क्वे लाल कोयी स्यालि, क्वे हेंला सुकिला।
हरीया भरीया हेंला, भिड़ कनावा स्यारी
तितिरी बासन सुणेली, बिन्दुलि गोरु ठाड़ी।
ट्याड़ा बांगा डुना कांणा बोट हर्षि जेंला
रूड़ी का तापिया आब् निझूत भिजिंला।
पलि ऐंला पात-पतेला रुमझुमा चौमास में
मिनुकै टिटाट न्यार सोंण भादो रात में।
बैराठे स्यारी में जब धान पौशी ऐंला
मडुवा झुंगरगें चड़ा, ठुंगीं-ठुंगीं खेंला।
भिजन्न-भिजनैं जब सब्बै पटै जेंला
इंद्रेणी की घेर देख्येली, बादो फटे जेंला।।
भीम सिंह बिष्ट, चौखुटिया, अल्मोड़ा, 28-06-2020
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