
जिम कार्बेट पार्काक् शेर......
रचनाकार: ज्ञान पंत
के न के त
लाग्यै रुँण चैंछ
नती
को पुछौल
ते कैं
और मैं कैं ले।
.............
त्यार दिगा
दिल 'क ले
के रिस्त छ बल ....
यो बात
म्यार समझ
आजि ले नि ऐ।
..............
मनिखिन देखाँ
अच्छयान
गोरु - बल्द ले
अतैरि जानीं .....
सोचूँ !
सबै एकनस्सै है गियीं।
..............
बखता ~
नि खै जालै तु हाँ .....
कुकुरन जै जो पुछौं
शहरन में .....
मनखी ले
" हड़की " रयीं बल।
.............
वीलि
जी०एस०टी पूछौ
मैलि
" थैंक यू " के दे।
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बखत जाँण में
देर जि लागें ....
बाछ् छियूँ
बहौड़ भयूँ ....
फिर बल्द और
आब्
बुड़ बल्द है गियूँ
रन्कारै .....
"मैंस" कब होलै?
...............
यो माया को
अलज्याट समझ तु लै
नन्तरि ......
को पुछँण लागि रौछी
ते कैं .....
और मैं कैं ले।
...............
मनखी बणैं बेरि
परमेश्वर कैं ले
मनसुप
लागि रयीं .....
आब् के न के
जरुर हुनेर छ!
............
भागी !
तु स्वैणां ले ऐयी कर
रात ले .....
"पुन्यूँ " जसी लागैं फिर।
...........
यसो रयो त
द्याप्त ले
" पत्ती " धरनेर
न्हाँतिन .....
तबै
कुदरत ले टेड़ी रै।
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"भतेर" में ले
कोप् बैठी छ बल....
कभै अंताज करि बेरि
देखिया धैं।
.................
बात 'कि बात
रै जैं .......
दुुन्नी
कत्थप पुजि जनेर भै।
..............
फल ....
कि चाँण है रयीं
म्योर मतलब त
बोट लगूँण दिगा भै।
.................
बे - लगाम बखत कैं
को थामि सकौ
आज जाँणै मनखी त
बस "राम - नाम " कूनै रौ।
...............
बखत पर
सब भल लागों
अन्यार में जैंङिणीं
सबन् कैं नि मिलन।
..................
तु
भोल 'की चिन्ता में मरै
कभै
आज 'कि ले सोची कर।
...........
बा - बा हो!
अब पत्त लागौ........
कि , मनखी हुँण में
कतु टैम लागौ।
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शब्दार्थ:
चैंछ -चाहिए,
नती - वरना / नहीं तो,
हड़की - बौराये /बौखलाना,
नि खै जालै - यहाँ उलाहना से है।
कोप् - कोई,
देखिया धैं - देखना तो सही,
कत्थप - सोच से भी दूर,
कूनै रौ - कहता रहा,
थामि - पकड़ना / रोकना,
जैंङिणी - जुगनूँ,
भोल' की -आने वाले कल की ही
Sep 25, Oct 04 2017

...... ज्ञान पंत
ज्ञान पंत जी द्वारा फ़ेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी से साभार
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