श्रीमद्भगवतगीता - कुमाऊँनी भाषा में पन्दरूं अध्याय (श्लोक ११ - २०)

कुमाऊँनी भाषा में श्रीमद्भगवतगीता अर्थानुवाद्, interpretation of ShrimadBhagvatGita in Kumauni Language

कुमाऊँनी में श्रीमद्भगवतगीता अर्थानुवाद्

 पन्दरूं अध्याय - श्लोक (११ बटि  तक)

यतन्तो योगिनश्चैनं पश्यन्त्यात्मन्यवस्थितम्।
यतन्तोऽप्यकृतात्मानो नैनं पश्यत्त्यचेतसः।।११।।
यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम्
यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम्।।१२।।
गामाविश्चं च भूतानि धारयाम्यहमोजसा।
पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः।।१३।।

कुमाऊँनी:
योगी जो प्रयत्न करनीं ऊं अपंण हृदय में स्थित यौ आतमा कैं भलिभांति ज्याणनीं पर जनर् अन्तःकरण शुद्ध न्हां ऊं अगर योगी लै छन् तो यौ आतमा कैं नि ज्याणि सकन्। सूर्ज में जो तेज यौ सब्बै संसार कैं प्रकाशित करूं, और चन्द्रमा तथा अग्नि में लै जो तेज छू ऊ सब म्यरै छू यस् समजो। और मैं ई पृथ्वी में प्रवेश करिबेर् इन सब भूतन् कैं धारण करनूं और रस या अमृत स्वरूप चन्द्रमा बणि बेर् सब औषधियों कैं पुष्ट करनूं।

(अर्थात् योगी या ज्ञानी लोग जतन करंण पार् अपंण शरीर में स्थित यौ आतमा कैं ज्याणि ल्हिनी पर ऊं अज्ञानी भले ही योग करनीं पर अन्तःकरण शुद्ध न्हां त् यौ आतमा कैं नि ज्याणि सकन्। मल्लप यौ कि अन्तःकरणैकि शुद्धता भौत्तै जरूरी छू। सूर्ज में संसार भरि कैं प्रकाशित करंण वाल् जो तेज छू, चन्द्रमा और अग्नि में जो तेज छू ऊ सब म्यरै कारण छू, मैं ई चन्द्रमा क् रूप में अमृत रस बणि बेर जतुक् लै औषधीय पादप (बोट) छन् उनूकैं पुष्ट करनूं।
हमर् शास्त्र और विज्ञान बतूं कि जतुक् लै वृक्ष (बोट) छन् ऊं सब क्वे न क्वे प्रकारैकि औषधिल् (दवाई) भरपूर छन्। आब् हम नि पच्छाणन् त् ऊ अलग बात छू। यैक् ल्हिजी हमूकैं चैं कि जाग् जाग् में क्वे न क्वे बोटक् रोपण करी जाओ और उनर् पालन लै करी जाओ, किलैकि वनस्पति बिना प्राणवायु (ऑक्सीजन) नि मिलि सकनि, न बर्ख (बारिष) है सकनि और बर्ख और प्राणवायु कि कतुक आवश्यकता छू आज हम भलिभांति समजंण लै रयूं।)

हिन्दी= यत्न करनेवाले योगीजन भी अपने हृदय में स्थित इस आत्मा को भलीभांति जानते हैं, किन्तु जिन्होंने अपने अन्तःकरण को शुद्ध नहीं किया है वे यत्न करने पर भी इसे नहीं जान पाते। सूर्य में स्थित जो समस्त तेज सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करता है तथा जो तेज चन्द्रमा में है और जो अग्नि में है - उसको तू मेरा ही जान। और मैं ही पृथ्वी में प्रवेश करके अपनी शक्ति से सब भूतों को धारण करता हूँ और रस स्वरूप अर्थात अमृत स्वरूप चन्द्रमा होकर सम्पूर्ण औषधियों को पुष्ट करता हूँ ।

अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः।
प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम्।।१४।।
सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो
मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च।
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो
वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्।।१५।।
द्वाविमो पुरुषो लोके क्षरश्चाक्षर एव च।
क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते।।१६।।

कुमाऊँनी:
भगवान् ज्यु कुनई कि- मैं सब जीवोंक् शरीर में पाचन करणीं अग्नि छूं, और प्रत्येक श्वास-प्रश्वास में रै बेर् चार प्रकारक् भोजन (भक्ष्य, भोज्य, लेह्य तथा चोस्य)कैं पचानूं ।मैं प्रत्येक जीवक् हृदय में रूनूं, जीवैकि याददास्त, ज्ञान और भुलणैंकि आदत लै मैं ई छूं, मैं सब वेदों क् जानकार छूं । यौ संसार में द्वी प्रकारक् जीव हुंनी भौतिक जगताक् जीव च्युत यानि नाशवान और आध्यात्मिक जगताक् जीव अच्युत यानि नाशरहित कयी जानीं। (अर्थात् जो हमर् पाचन तंत्र छू और चार प्रकारक् भोजन १- भक्ष्य = जो चबै बेर् खायी जां र् वट, भात आदि २- भोज्य = जै कैं पी बेर् खायी जां दूध, छांछ आदि ३- लेह्य जो चाटी जां चटणि आदि ४- चोस्य = जो चूसी जां आम नारींग आदि हम करनूं वीकैं पाचन करणीं जो अग्नि छू भगवान् ज्यु कुनई कि ऊ मैं ई छू। मैं सब्बै वेदों क् ज्ञाता लै छू। भौतिक जगत् में प्रत्येक जीव नाशवान और आध्यात्मिक जगत् में जीव नाशरहित है जां।) हिन्दी= मैं समस्त शरीरों में पाचक-अग्नि (वैश्वानर) हूँ , और श्वास-प्रश्वास में रहकर चार प्रकार के अन्न को पचाता हूँ। मैं प्रत्येक जीव के हृदय में आसीन हूँ, मुझसे ही स्मृति, ज्ञान तथा विस्मृति होती है। मैं ही वेदों के द्वारा जानने योग्य हूँ। निःसन्देह मैं वेदान्त का संकलनकर्ता तथा वेदों को जाननेवाला हूँ । जीव दो प्रकार के हैं- च्युत तथा अच्युत। भौतिक जगत् में प्रत्येक जीव च्युत (क्षर) है और आध्यात्मिक जगत् में प्रत्येक जीव अच्युत (अक्षर)कहलाता है।

उत्तमः पुरुषस्त्वन्यः परमात्मेत्युदाहृतः।
यो लोकत्रयमाविश्य विभर्त्यव्यय ईश्वरः।।१७।।
यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि चोत्तमः।
अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथितः पुरुषोत्तमः।।१८।।

कुमाऊँनी:
इन द्वीनूंक् (क्षर और अक्षर) अतिरिक्त एक परमपुरुष परमात्मा लै छू जो साक्षात अविनाशी भगवान् छू और जो तीनैं लोकूं में प्रवेश करि बै उनर् पालन करूँ। चूँकि मैं इन द्वीनूं है परे (अलग) छूं और सर्वश्रेष्ठ लै छूं यैक् ल्हिजी यौ जगत् और वेदों में परमपुरुष क् नामेंल् विख्यात छूं।
(अर्थात् भगवान् ज्यु कुनई कि- यौ भौतिक संसार में जतुक् लै नष्ट हुंणी और नि हुंणी अर्थात बद्ध और मुक्त जीवात्मा छन् उनूंहैं लै अलग एक परम शक्ति और छू, जै कैं परमपुरुष परमात्मा या ईश्वर कूनीं, तो मैं यौ तीनैं लोकूं कैं पालन और व्यवस्थित करनूं यैक् ल्हिजी मैं सर्वोपरि और सर्वशक्तिमान परमेश्वर छूं। ये में क्वे शंका नि करण चैंनि।)

हिन्दी= इन दोनों के अतिरिक्त एक परमपुरुष परमात्मा है, जो साक्षात अविनाशी भगवान् है और जो तीनों लोकों में प्रवेश कर उनका पालन कर रहा है। चूँकि मैं क्षर और अक्षर दोनों से परे हूँ और चूँकि मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ अतएव मैं इस जगत् में तथा वेदों में परमपुरुष के रूप में विख्यात हूँ।

यो मामेवमसम्मूढो जानाति पुरुषोत्तमम्।
स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत ।।१९।।
इति गुह्यतमं शास्त्रमिदमुक्त मयानघ।
एतद्बुद्ध्वा बुद्धिमानस्यात्कृतकृत्यश्च भारत।।२०।।

कुमाऊँनी:
जो मिकैं संशयरसित हैबेर् पुरुषोत्तम भगवानक् रूप में ज्याणों, ऊ सब कुछ ज्याणों और यस् मनखि मेरि भक्ति में हमेशा-हमेशा लागी रूं।  यौ जो मिल् तुमूंकैं बता वैदिक शास्त्रों क् गुप्त मत छू।  जो ये कैं भलिकै समजों ऊ बुद्धिमान है जां और वीक् सब्बै प्रयास सफल हुंनी।
(अर्थात् जो यौ ज्याणि ल्यूं कि भगवान् ज्यु ई परम पुरुष छीं तब ऊ कैं और क्ये ज्याणणैकि जरवत् नि पड़नी, किलैकि यौ ई सब शास्त्रों क् निचोड़ छू। और भगवान् ज्यु अर्जुनाक् मार्फत हम सबन् कैं बतूणई।  आब जो बुद्धिमान हौल् ऊ ये कैं समजि जाल् और सद्कार्य/ सद्कर्म में अपंण जीवन लगे द्यौल् तब ऊ निश्चित रूपैल् भगवान् ज्यु कैं प्राप्त करौल्।)

हिन्दी= जो कोई भी मुझे संशयरसित होकर  पुरुषोत्तम भगवान् के रूप में जानता है, वह सब कुछ जाननेवाला है।  अतएव हे भरतश्रेष्ठ! वह व्यक्ति मेरी पूर्ण भक्ति में रत होता है। हे अनघ! यह वैदिक शास्त्रों का सर्वाधिकार गुप्त अंश है, जिसे मैने अब प्रकट किया है, जो कोई इसे समझता है, वह बुद्धिमान हो जायेगा और उसके प्रयास सफल होंगे।
🌹🙏🏼ये दगड़ आपूं सब्बै स्नेहीजनों क् सहयोगैल् श्रीमद्भगवद्गीता ज्यु क् यौ पन्दरूं अध्याय पुरी गो। जै श्रीकृष्ण 🙏🏼🌹

(सर्वाधिकार सुरक्षित @ हीराबल्लभ पाठक)
🌹🌿⚘🌺⚘🌹🌿

स्वर साधना संगीत विद्यालय लखनपुर, रामनगर
श्री हीरा बल्लभ पाठक जी की फेसबुक वॉल से साभार

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ