आज शांताकच्योल घनुऔक (घनश्याम) ब्या छु। वीक सौत्योल मधुसूदन आपण अंग्रेज घरवालि सिल्विया और एक पांच बरसैकि चेलि शकुंतला दगै चार दिन पैल्लिए पुज रौ। सब वीकै पछिन पगलि रैयीं। घनश्याम और शांता कं यो बात मनैमन चुभणैंछी, असल में जो लै भ्याराक देश बै हमार बीच उनी, उनन कं अत्ती मुख लगूणैकि चाव, हमन कं भौत फ्यार अणकस्सै बणैं दीं।
घरवाइक मरि बाद चंद्र दत्तज्यूल आपण दुसौर ब्या करणैकि अनइच्छी जतै पर गौं में आपण भौ कं धरणैकि उनैरि मंशा नि छी। गौं में रै बेर उनौर मन वांक माख(मक्खियां) और आए दिन दस्त लागि में नान नानतिनैकि अकाल मृत्यु, दवाय पुड़ियौक अभावाक कारणैलि वां आपण भौं कं धरणाक पक्ष में न्हैछी। उनूल आपण इज थैं दगाड़ हिटणाक लिजि दबाव डालौ पर होलिनाक बाद इज वां रूण हुं तंग्यारै नि भै तब बैशाख में झटपट शांता दगै ब्या करि इतु दूर हैदराबाद ऐग्याय। यांक "सरदार वल्लभ भाई पटेल पुलिसऔफिसर प्रशिक्षण एकेडमी में सेवारत भाय जां हर प्रकारैकि सुविधा भै और बदयिक(ट्रांसफर) लै क्वे विकल्प नि भौय।
शांता थैं पैलै दिन उनूल बतै दे कि भौकं क्वे तकलीफ नि हुण चैंन, क्वे "सौत्ती मौस्सी" भेदभाव देखण में नि ऊंण चैं। शांताल लै मधुसूदनकं शैंतण में क्वे कसर नि धरि, एक समय बाद तो मधु शांता बिना रैयी नि सकनेर भै, य आपण बाब दगै लै नि जानेर भौय। ऐसिकै जब मधुसूदन दस बर्सौक पु है गोय तब शांताक एकच्योल घनश्याम पैद भौ। फिर जै चंद्रदत्तज्यूकं फिकर हुण लागि कि कैं शांता अब तौ द्वि हाथ (भेदभाव) नि कर न्हैल कैं! अक्सर टैम बे टैम ऐ बेर चुपचाप द्वाब लाग बेर शांताक व्योहार चांण चितूनै रुनेर भाय।
पढ़न में पैल नंबर मधुसूदन भौत आत्माभिमुखी शांत, शर्मिल लौंड भौय और उकं पत्तै नि भौय कि शांता वीक आपण शांक इज न्हां। पास पड़ोस में जनन कं चंद्रदत्तज्यूक दुबारा ब्याक बात पत्त छी उन सब आब क्वे न्है छी वां और शांताल लै कभै यो बात कैथैयीं नि कै। जब इंटराक बाद मधुसूदन जर्मनी पढ़न हुं न्है गोय तो घनश्याम भौत्तै उदास है गोय ऐल उ कक्षा तीन में पढ़नेर अबोध बालक भौय।
शांता कं अब नानतिन शैंतण समझ ऐगोय पै।थ्वाड़भौत आपण दुल्हौ और पड़ौसौक सहयोग लै उकं मिलै पै। आब वील यांक बोलि, खाणपिण लै अपणै हाल कुंछा। हाईस्कूल पास शांता कं सिखणैकि लौ भै झट्ट टिपणैक आदत भै जे बात एक बार देखि उकं उसै सिख ल्हिनेर भै। चंद्रदत्तज्यूकं आय लै आपण पैल घरवालि पुष्पाक अंधेर नरै लागनेर भै, कभै कभै उं शांता कं 'पुष्पी' कै बेर धाल लगुनेर भाय जो शांता कं गट लागनेर भै। परबस और मनैमन आपण बात कं धरनेर वालि शांता के नि कुनेर भै।
एक दफा जब चंद्र भौत बीमार भाय तो उनूल शांता कं आपणपैल घरवाइक कुछ जेवर दिबेर कौय कि "यो सब जब मधुसूदनौक ब्या होल वीक दुल्हैणिक भाय हां।" यो सब शुण बेर शांताक मन दुखी हैं गोय कि वीक दुल्हौक मन में जरूर वीक वास्ते मैल हुन्यौल तबै उनूल ऐस कौ। यो बीच द्वितीन बेर मधुसूदन भारत आय और जब पैल्ली आपण इज और भाय दगै पिरेम धरछी उस जौ नि चिताय शांताल, जरा ठंग ठंग जौ व्योहार लागौ।
जेलै छु पै उनै छि पै पछा पछा वीक भारत यात्रा कम होते ग्याय। आपण बाबुक मरियाक बाद तो वीक कभै कभै फोन उनै छी। बाबुक मरी में आपण इजाक मुखतिर आ और उनन कं एक घर में हैदराबाद में बसै बेर वापस जानै रौ। खैर शांताक च्योल लै पढ़ाय में भलै छि पै पर उकं आपण गौंक रुझान जियादे भौय वील पंतनगर बै कृषि क्षेत्र में पढ़ाय करी और फिर कुछ साल ब्यार नौकरी करिबेर वापस आपण घरै ऐपुजौ। वील आपण गौं में बसणैकि बात आपण इज थैं करि और फिर वी जाग शांता घनश्याम दगै पुज गे जां उ ब्याकरि बेर ऐछी।
समयौक चक्र लै भौतै बलशाली हुं। आज घनुऐक ब्याक धूम छु। पु पुराण ढंगैल गौकै मैसन दगै मिलबैठ बेर पारगौक भुवनेश्वरी शांताक दुसरी ब्वारि बण बेर उणें। मधुवैकि घरवाय सिल्विया और चेलि शकुंतला ओरी मेसी बेर ब्यामें भिसमांती बेर आनंद उठूणयीं। उनार लिजि तो गजबैकि बात भै। देवर घनश्याम कं हल्दी, काजल लगूण ,पान खऊण सबै में गोरी चिट्टी मेम रंग्वालिक पिछौड़ बैंदा और नथ्थ में छाजि रै। पिठ्या लगूणैकि रस्म लै सिल्विया करणैं।
शांता सोचणै मैल तो कभै आपण नानतिनन में भेद नि कर पर अंत तक वीक दुल्हौ उकं सौत्ति इज आपण पुष्पा समझ वीक कल्ज दुखाते रौ। बर्यात जांण बखत शांताल आपण सौत पुष्पाक गहणपात सिल्वियाक हाथन धरी और बता कि यौं सब वीक असली सासुक छन जनन में वीकैं हक्क छु यो शुण बेर मधुसूदन हक्क रै गो। यो मेरि इज न्हें छी पर मकं कभै पत्तै नि चल।--
मौलिक, अरुण प्रभा पंत
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