स्मृति 590 - मथुरादत्त मठपाल, कुमाउनी भाषाक एक समर्पित लेखक छी

कुमाऊँनी संस्मरण, मथुरादत्त मठपाल, कुमाउनी भाषाक एक समर्पित लेखक छी, Kumaoni Memoir about Kumaoni writer Mathura Datt Mathpal

 स्मृति - 590 : मथुरादत्त मठपाल

कुमाउनी भाषाक एक समर्पित लेखक छी
(लेखक-पूरन‌ ‌चन्द्र‌ ‌काण्डपाल‌)

मथुरादत्त मठपाल ज्यू दगै हालों में म्येरि भेट 18 बटि 20 अक्टूबर 2018 तक लगातार तीन दिन हैछ जब य दौरान रामनगर जिला नैनताल में तीन दिनी कुमाउनी - गढ़वाली भाषा सम्मेलन हौछ । य सम्मेलन में कुमाउनी और गढ़वालीक कएक रचनाकारोंल हमरि भाषा सम्बन्धी कएक मुद्दों पर चर्चा करी । य सम्मेलनक मुख्य विचार बिंदु छी भाषाक मानकीकरण, व्यवहारीकरण और प्रसार । सबै वक्ताओंल यूं मुद्दों पर विस्तृत वार्ता करी और आपणि भाषा कुमाउनी -गढ़वालि कैं इस्कूलों में पढूण, यकैं रोजगार दगै जोड़ण, पाठ्क्रम बनूंण और साहित्य लेखण पर जोर दे । 
य तीन दिनी भाषा सम्मेलन में कुमाउनी और गढ़वालीक कएक साहित्यकारोंल आपण विचार धरीं जनूं मुख्य छी 'दुदबोलिक' संपादक श्री मथुरादत्त मठपाल ( रामनगर), जगदीश चन्द्र जोशी (हलद्वाणी), पूरन चन्द्र काण्डपाल (दिल्ली), कैलाश चन्द्र लोहनी, प्रोफेसर शेखर पाठक ('पहाड़' नैनताल), डॉ योगम्बर सिंह बर्त्वाल, डॉ नागेंद्र ध्यानी (देहरादून), दामोदर जोशी 'देवांशु' ('कुमगढ़' क संपादक कठगोदाम ), डॉ प्रयागदत्त जोशी (हलद्वाणी), कृपाल सिंह शीला (भिकियासैंण बासोट )।

मूल रूपल नौला गौं (भिकियासैंण) रौणी, तीन बार एम.ए. और बी.टीं.शिक्षित मथुरा दत्त मठपाल ज्यूक जन्म 29 जून 1941 हुणि हौछ। मठपालज्यू दगाड़ म्येरि भेट पैली लै कतू ता है । अल्माड़ राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन में मील उनर हमरि भाषा क बार में व्याख्यान लै सुणौ । देहरादून और अल्माड़ में लै उनू दगै भेट है । एक ता अल्माड़ बै हलद्वाणि तक हाम टैक्सी में दगडै आयूँ । य दौरान मील मठपालज्यू कैं भौत नजदीक बै देखौ औऱ सुणौ । कमजोर शरीर होते हुए 80 वर्षकि उमर में लै उं रात-दिन कुमाउनी साहित्य सृजन में लागि रौंछी ।  मठपाल ज्यू 33 वर्ष तक नौकरी करण बाद 1997 विनायक इंटर कालेज बै एक वरिष्ठ अध्यापक बतौर सेवानिवृत हईं । उनार कएक किताब छपणक लिजी तैयार लै छीं जो आर्थिक तंगींक वजैल छपि नि राय। 

मठपाल ज्यूक लेखन संसार भौत ठुल छ । उनूल 'आङ्ग-आङ्ग चिलैल हैगो', 'पै मैं क्यापक क्याप कै भैटुनू', 'मनख-सतसई', 'फिर प्योलि हँसैं' (अनेक किस्मसक छंद-2006) , 'रामनाम भौत ठुल', 'था मेरा घर भी यहीं कहीं' ( हिमवंत कवि चन्द्रकुँवर बर्त्वाल ज्यूकि अस्सी हिंदी कविताओंक कुमाउनी अनवार -2013), 'अनपढ़ी' ( शेरदा 'अनपढ़' कि एक दर्जन कुमाउनी कविताओंक हिंदी शब्दानुबाद- 1986 ), 'हम पीर लुकाते रहे' (सुप्रसिद्ध कवि और गायक हीरा सिंह राणा कि सत्तर (17) कविताओंक हिंदी गद्यानुवाद - 1989 ) और 'इन प्राणों में पीड़ा जागी' ( कवि-पत्रकार-समाजवादी विचारक- श्रम विधि विशेषज्ञ- स्वतंत्रता सेनानी- द्वि ता विधायक रई महान समाजसेवी 'फक्कड़' विधायक नामल चर्चित युगपुरुष स्व.रामदत्त जोशी ( 1929-2002 ) कि संक्षिप्त जीवन गाथा -2016 )। 

मठपाल ज्यूक उक्त किताब लेखण है अलावा एक अद्भुत कर्म छ 'दुदबोलि' (कुमाउनी चिनाण - पछ्याण कैं रेखांकित करनेर वार्षिक उपक्रम ) पत्रिकाक सम्पादन । 'दुदबोलि' क' वर्ष 2013 तली आठ अंक प्रकाशित हैगीं, इनुमें 4 अंक (2007, 2011, 2012 और 2013 ) म्यर पास मौजूद छीं।

पिछाड़ि साल 2020 में उनर कुमाउनीकि अस्सी सालों कि कथा जात्रा' कौ सुआ काथ कौ ' प्रकाशित हौछ जमें 100 साहित्यकारोंक लेखी कहानि संग्रहित छीं। सामाजिक कार्यकर्ता श्री सुरेन्द्र सिंह हाल्सी ज्यूक माध्यमल य किताब म्यार पास पुजी । वर्ष 2016 में उनुकैं साहित्य अकादमी भाषा सम्मानल सुशोभित करिगो । बिस्तर में बीमारीकि हालत में लै मरि मरि तराण लगै बेर कलम पकणि आंखरों कि माव बनूणी मठपाल ज्यूल 9 मई 2021 हुणि आपण निवास पंपापुर, रामनगर (उत्तराखंड) में रत्तै पर आंखिरी सांस ली । दिलाक गैराइयों बै य संत कलमकार कैं विनम्र श्रद्धांजलि। 

पूरन चन्द्र कांडपाल, 10.05.2021

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