उत्तराखण्डै की भूमि

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"उत्तराखण्डै की भूमि"

कुमाऊँनी कविता
रचनाकार: मोहन चन्द्र जोशी
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य उत्तराखण्ड कि धरती में कभैं बेमान नि रौंछी।
याँ इमान छु ऊँचो और मर्ज्यात छू ऊँची।।
पैंल पहर में नौबत देवी का थाँन में बाजनीं।
चरच में प्रार्थना का सुर हमारा कान में गाजनीं।।
गुरुवाणी क् दगाड़ा मस्जिदों में उठैंछ अजाँन।
घनाघन घंटिया गज्यै दिणीं जाँ मोहिलि रत्तै ब्याँण।।

य ऊँचा डाँन् डफारा मा करद्द पाँडवोंल् वास।
शिवजी की बर्यात बाट् बाटै जाँ छोड़ि गेछ सुवास।।
भगीरथ ज्यु क् तप तपणौंछ बणि ठुल गंग शिवालौं बटि।
अमीरत जस परॉणों में भिजौंणौं पाँणि हिवालों बटि।।
जाँ मुक्ति-द्वार छू हरिद्वार पंच बदरी और पंच केदार।
कोटि कोटि द्याप्तौं क् दगाड़ा मनखि क् संसार।।

नाँनूँ भाऊ की मुस्कान बुराँशी गुफावौं मा।
सुन्याली स्वैंण छन बादिया बासन्ती रूमाओं मा।।
याँ बार-बार  बार साल मेँ जनम ल्हिछ खाड़ू।
हैं नन्दाजात में शामिल सारी गढ़वाल और कुमूँ।।
जाँ अंगीरा ऋषि क् छू मुनी कौशिक क् छू तप ध्यान।
न्यायी देवता गोलु ज्यु मामू नृसिंह भगवान।।

याँ ड्योटी ओट में नथ पैरि बेर जब जूँन हिटैंछ।
झमाँझम झाँवरों का बाज् बजौंनैं दौंन मिटैंछ।।
पसिण में नाई ज्वान जोरैलै जब हव कैं च्यापौं।
जामनीं तोर जब मलि हैं अहा रे के भल लागौं।।
माधोसिंह मलेथा ज्यु ल् आपण निज स्वार्थ कैं छोड़ी।
य भूमि में आपणाँ यकल च्यल बलिदान करि देछी।।

तुमरी धन्य हो पुरुखो हमरी शान छा तुम सब ।
रमोला सिदुवा बिदुवा इज्जत ईमान नि बेची।।
कुली बेगार का डंगार कैं सरयू बगै ल्हिगे।
य सारै देश का हिय में आजादी स्वैंण जगै गे।।
जाँ का देशभक्तौं ल् दे ज्यान देश की खातिर।
छू संकल्प य हमरो गुलामी कभैं नि द्यखौं फिर।।

पहाड़ौं मजि जो जंगल छैं सारी दुनीं हैं मंगल छैं।
य तपती धरती का कारण मनम का डॉन् जो खंगल छैं।।
याँ गौरादेवी जास् बैंणीं याँ बोटौं परि चिपकि जानीं।
जब जब लै जरूरत है जवानों लै छाती ताँणी।।
कदुगै रंग में फव फूल चाड़ और नाँज आहाहा।
आहा रे के भली वाणी रसीली छीप वाह वाह वाह।।

सारै गढ़वाल घुमि आओ फेरो सारी कुमाऊँ मा।
तुलसी थाँन छन थापिया आँङणां का मुआवों मा।।
देवों गढ़ य गढ़वाल कुमूँ में देवों का ङ्यार छैं।
कदुग सुन्दर यौं द्वि मंडल यौं भारत देश का म्यार छैं।।
हौं है़णीं क्वे बताल कैं गैतिर्बी क्वे बताल कैं।
जो उत्तराखण्ड में रंगत छू उ सारि दुनीं में रंगत न्हैं।।

नमन जनमभूमीं हे जप तप साधना स्थली।
जै जै जगत की वेदी जै उत्तराखण्ड की भूमि।
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मोहन जोशी, गरुड़, बागेश्वर। 02-02-2016

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