->गतांक भाग-१९ बै अघिल->>
अंक ४५--
"अरे दाज्यू भौत दिन मांथ, नमस्कार नरैण दा।" तबै नरैणैल पछिन कै चा?
नरैण - "ओहो भोइदा ,यां कब आछा?"
भोइदा - "यां आपण चेलिक वास्ते बर देखण हूं ऐरौछी।"
नरैण - "ऊं के मन जौ ऐरौय पै! कस छु?"
भोइदा - "उसी कुंछा तो मन कमै जौ ऐरौ पै, पर चेलिक ब्या तो टैम पर करणै भौय नै।"
नरैण - "नै, दाज्यू तल्लै तुमरि सोच गलत छु, 'ब्या करणै छु,' 'चेलीबेऊंणै' छु कै बे तो बर्बादी भै।"
भोइदा - "म्यार यार द्वि चेलियै भाय, उनौर लै टैम पर ब्या नि करि सक तौ मैस के कौल?"
नरैण - "मैसनैकि छाडो़ आपण संतानैकि सोचौ, भलाय केमै छु?, म्यार तौ तीन चेलि छन- ठुलि रीता यैं डाक्टरी पढ़नै, बीचैकि नीता बरु में पढा़य लै करणै और संगीत में विशारद लै करणै फिर निपुण लै करैलि और सबन है नानि सुनीता ऐल दस में छु वीक मन खेलन छु उकं पटियाला खेल ऐकैडेमी में भेजणौक विचार कर राखौ पै जे होल आब।"
भोइदा - "नरैणै त्वीलै आपण चेलिन कं ल्हिबेर बड़ ठुल ठुल सोचौ पर मैतो ब्या की तजवीज मै रै गेयूं। म्यार एक चेलि बी.ए. करिबेर घर बैठ रै, उहै नानि ग्यार में पढ़नै।
नरैण - "आय लै देर नि हैरै तुम उनन कं के कोर्स कराऔ उनन कं खुटन में ठाड़ करौ, ब्याकै चक्कर में पडि़ बेर गलत जाग अगर ब्या हैगोय तो फिर तो मुश्किल में पड़ जाला तुम। च्योल हो या चेलि पैल काम उनन कं खुटन में ठाड़ करण हुण चैं।"
क्रमशः अघिल भाग-२१->>
मौलिक
अरुण प्रभा पंत
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