म्यर गव् सुखि रौ

कुमाऊँनी कविता, म्यर गव् सुखि रौ, Kumaoni Kavita regarding water scarcity, Kumaoni bhasha mein kavita, Kumaoni Kavya

*म्यर गव् सुखि रौ*

(मेरा गला  सूख रहा है)
रचनाकार: गीता बिष्ट
   
हाय रे पाणि पाणि,
यसि हाहाकार कभें लै नि जाणि।

   मणि बिसै बेर साँस
   सोची बैठूँ झिट घड़ि 
   सुखी गव् तर करूँ, पी बेर पाणि।
   नातिण कें अवाज लगै।
   अवाज ऐ , बुबु गगरि में न्हा पाणि।
   
एक नड़क् लगै, सबनकें सुणें 
   बुति-धाणि हुनै रौलि,
   पैलि भरि ल्यावो नौव बै पाणि।
   गव् सुखि रौ म्यर,
   धार.लै जाओ एक जाणि।
  आलौ.जब क्वे उणी-जाणी
   काँबै पिवाला पाणि।

  धार लै गईं, नौव् लै सबै जाणि,
  नौव में पाणि लिजी भीड़ छी
  जाणि बरात जस भानै.भान छी।
  नातिणिल् ऐ बेर बता बुब कें।
  सोची एक भान् धार् बै भर ल्यूँ।

  वाँ पाणिक् तुर तुर छी  
  भानन् कि लैन देखि बेर मिं डरन छी।
बिन पाणिक् घर गयूँ।
  सब बुबु मुख धें भैटी छी  
   बुब् भिमें बेसुध पड़ी छी।
   एक लोटी "पैंच" ल्यै बेर   
   बुब कें पिवा जस्सै पाणि,
  आब् बुब होश में ऐ बेर जोश में आइ।

   कभै   नि    जाणि    पाणि   अकाव  
   य   उमर   में   देखिनै   अणकसि   काव् 
   धरती   भितेरक् पाणि  लै  सब  सोसि  हमूंल     
   जदूँ  चें  उ   है  बेर   सगर   ढोइ   सबूँल।
   गाड़,गध्यार नौव्, धार अकूत भण्डार  
   पाणिक् सुखि ग्यईं।
   के विकासक् नामक् भैंट चढ़ि ग्यईं।
   
आब सबै मिलि बेर जंगव बचूनुँ 
   सगर बज्याणिक् बोट लगूनूँ।
   ज्यादे गम्भीर है बेर  
   सबै पाणिक् स्रोत बचूँनू 
  आघिल पीढियों लिजि ज्यून 
   हुंणक् सबूत धरि जाँनू 
   उनर नजरों में मणि आपण्  
    इज्ज़त धरि जानू।

....(गीता बिष्ट), २४-०३-२०२१

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ