
चिथौड़
(रचनाकार: उमेश चंद्र त्रिपाठी "काका गुमनाम")
सुप्रभात दगड़ियो।
लॉकडौन बढ़िगो तीन मई जांलै,
फिर चौबीसौं घंट घर रौल म्यर मैंस।
दिनमान हड़ी रौल घर पन खै खै बेर,
पड़ियै रौल जस हूँ बाखड़ भैंस।
"पड़ियै रौल जस हूँ बाखड़ भैंस,
खाने खानै लै यकू कमैं नि पड़न दाहा।
हाथ हिलूंण में यैक हाथ टुटि जानि,
हर आदू घंट में चैं यकू गरम चाहा।
काम करने करनै दिन काँ हूँ जै न्है जाँ,
म्यार बदनाक निकल जानि लुतौड़।
चौबिशों घंट यकू देखनै देखनै घिन हगे हो,
कोई मास्कै जाग यैक मुख मुनई में
बाँध दियो धैं एक ठुल्लौ चिथौड़।


उमेश चंद्र त्रिपाठी "काका गुमनाम" 19-04-2020
श्री उमेश चंद्र त्रिपाठी "काका गुमनाम" जी की पोस्ट फेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी से साभार
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