गौं बै शहर -यांकौ अगासै दुसौर छु (भाग-१८)

कुमाऊँनी नाटक, गौं बै शहर - यांकौ अगासै दुसौर छु, Kumaoni Play written by Arun Prabha Pant, Kumaoni language Play by Arun Prabha Pant, Play in Kumaoni

-:गौं बै शहर -यांकौ अगासै दुसौर छु:-

कुमाऊँनी नाटक
(लेखिका: अरुण प्रभा पंत)

->गतांक भाग-१७ बै अघिल-->>

अंक ४१-

नरैण आपण साइकिल साफ करणौछी तबै पड़ौसौक वर्मा वीक तीर ऐ बेर कूण लागौ "सिंह साब अब तो प्रमोशन होगया अब तो कोई स्कूटर वगैरह खरीद ही लो।"
नरैण झट्ट उठौ - क्या आर्डर आ गये?
वर्मा - "और क्या, कल तुम्हारी टेबल पर होगा।
नरैण मनै मन हिसाब लगूंण लागौ कि डबलनौक फैद कतु होल?  उसी सौ रूपैं मंहगाई भत्त मिलै बेर के कम नि भाय, चेलियांनैक फीसै निकल गे।   आपण हाथ् में लागि ग्रीस मांट और मिट्टी तेल लगै निकालि फिर भितेर हाथ ध्वैण हुं गो और सिद्द द्याप्ताठै में लैट जगै हाथ जोड़न हुं पजौ तो पद्माल देखौ  कूण लागि - "के करणौ छा ऐल"

नरैण - भागी परमोसन है गो कुल सौ रुंपैं फैद होल।
पद्मा - चलौ ईसवरैक किर्प।

अंक ४२-

आज़ नरैणैक तरक्कीक खबर पुर कालोनी में डानौक धुंग जै पुज गे।  सब "भैनजी मुंह मीठा कराओ कै बेर ऐग्याय"
पद्माकं के समझै नि आय कैसी के खऊं तब तक तालै सुनीता पुज गे- "बाबू जब मिठाई लाएंगे तभी मुंह मीठा होगा और पहले मंदिर में चढ़ाएंगे फिर सबको देंगे आप लोग अभी चाय पीके जाओ।"

इतु समझदारी उत्तर पद्माक दिमाग में नि आय, वील संतोसैकि सांस ल्हे कि चलौ ऐल काम चल गो।  सबनाक जाणाक बाद वील सुनीता कं कौ - "चेली ऐल त्वील मेरि लाज धर दे म्योर दिमाग तौ घुम गोछि कि अब इतु सबन कं के खऊं घर में चिन लै सगि (खतम) रैछी।  उ तो कौ चोखि चिन मैल अलग धर राख छी परसाद बणूण हुं नंतर पत्ति (इज्जत) न्है जानि। 

अंक ४३-

अघिल दिन मंगल छी, सब मंदिर जै परसाद चढ़ै ऐयी फिर सबन कं लड्डू बांटि तो सब कूण लागि कि पद्मा बहनजी पार्टी होनी चाहिए इस बात पर।
सुनीता - हमारे सबके इम्तहान हैं अभी पार्टी कैसे देंगे?
सुमित्रा - "पद्मा तुम्हारी यह लड़की तो ----
सुनीता - मेरी मम्मी सीधी हैं तो मुझे जवाब देना पड़ता है।

क्रमशः अघिल भाग-१९->>  

मौलिक
अरुण प्रभा पंत 

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