





घिनौड़ि या गौरय्या(Sparrow)
२० मार्च को हर वर्ष मनाया जाता है विश्व गौरेया दिवस
(लेखक: दीप रजवाड़)
विकास की असीम महत्वाकांक्षाओं ने आज हमारे सामने पर्यावरण की विषम स्थिति पैदा कर दी हैं जिसका असर इंसानी जीवन के अलावा पशु-पक्षियों पर साफ दिखायी देता है। इंसान के बेहद करीब रहने वाली कई प्रजाति के पक्षी और चिड़िया आज हमारे बीच से गायब हैं और उसी में से एक है हाउस स्पैरो यानी नन्ही सी गौरैया।
गौरैया हमारी प्रकृति और उसकी सहचरी है. गौरैया की यादें आज भी हमारे जेहन में ताजा हैं जो कभी हमारे घर की एक सदस्य हुआ करती थी जो घर के आँगन और कमरों में शान से यहाँ से वहाँ फुदकती रहती तो कभी घर की दीवार पर लगे आइने पर अपनी हमशक्ल पर चोंच मारती तो की कभी उड़ की दरवाज़े पर बैठ जाती और अपनी चीं चीं से अपनी उपस्थिति बयां करती पर बदलते वक्त के साथ आज गौरैया विलुप्त सी हो गई है ख़ासकर शहरों से..
एक वक्त था जब बबूल के पेड़ पर सैकड़ों की संख्या में घोसले लटके होते थे पर वैसा मंजर अब दिखायी नहीं देता..
ये नन्ही सी चिड़ियाँ रानी आज विलुप्त होने के कगार पर है और इनकी घटती हुई आबादी को रोकने, इस पक्षी के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इसके संरक्षण के लिए हर साल २० मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है। पर्यावरण संतुलन में गौरैया महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. गौरैया अपने बच्चों को अल्फ़ा और कैटवॉर्म नामक कीड़े खिलाती है जो फसलों के लिए बेहद खतरनाक होते हैं और ये फसलों की पत्तियों को खाकर नष्ट कर देते हैं. इसके अलावा, गौरैया मानसून के मौसम में दिखाई देने वाले कीड़े भी खाती है।
बढ़ती आबादी के कारण जंगलों का सफाया हो रहा है गाँव वाले अपनी ज़मीन शहरी लोगों को बेच रहे हैं जो खेतों में सीमेंट के पक्के मकान बना रहे है इसके ग्रामीण और शहरी इलाकों में बाग-बगीचे खत्म हो रहे हैं. इसका सीधा असर इन पर दिख रहा है. गांवों में अब पक्के मकान बनाए जा रहे हैं. जिसका कारण है कि मकानों में गौरैया को अपना घोंसला बनाने के लिए सुरक्षित जगह नहीं मिल रही है. पहले गांवों में कच्चे मकान बनाए जाते थे. उसमें लकड़ी और दूसरी वस्तुओं का इस्तेमाल किया जाता था. कच्चे मकान गौरैया के लिए प्राकृतिक वारावरण और तापमान के लिहाज से अनुकूल वातावरण उपलब्ध करते थे. लेकिन आधुनिक मकानों में यह सुविधा अब उपलब्ध नहीं होती है।
बदलते दौर और नई सोच की पीढ़ी में पर्यावरण के प्रति उतनी रुचि नहीं दिखती है कि वे पर्यावरण संरक्षण में अपनी भूमिका ठीक ढंग से निभा पायें.ज़रूरी है कि समय समय पर स्कूलों में ऐसे कार्यक्रम आयोजित कराकर नयी पीढ़ी को पर्यावरण संरक्षण की मुख्य धारा में जोड़ा जाये. प्रकृति प्रेमियों को भी अभियान चलाकर लोगों को मानव जीवन में पशु-पक्षियों के योगदान की जानकारी देनी होगी इसके अलावा स्कूली पाठ्यक्रमों में हमें गैरैया और दूसरे पक्षियों को शामिल करना होगा आज से 20 साल पूर्व प्राथमिक स्कूलों के पाठ्यक्रम में गौरैया की उपस्थिति थी लेकिन अंग्रेजी संस्कृति हम पर इतनी हावी हो गयी की हम खुद अपनी प्राकृतिक विरासत से दूर होते जा रहे हैं इस पर हमें गंभीरता से विचार करना पड़ेगा।
खेती में केमिलयुक्त रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग से कीड़े मकोड़े भी विलुप्त हो चले हैं जिससे इनके लिये भोजन का भी संकट खड़ा हो गया है. उर्वरकों के अधिक प्रयोग के कारण मिट्टी में पैदा होने वाले कीड़े-मकोड़े समाप्त हो चले हैं जिससे गौरैयों को भोजन नहीं मिल पाता है. हमारे आसपास के हानिकारण कीटाणुओं को यह अपना भोजना बनाती थी जिससे मानव स्वस्थ्य और वातावरण साफ सुथरा रहता था।
गौरैया की मुख्य छह प्रजातियां पायी जाती है:-
हाउस स्पेरो अथवा घरेलू चिड़िया
स्पेनिश स्पेरो
सिंड स्पेरो
रसेट स्पेरो
डेड सी स्पेरो
ट्री स्पेरो।
गौरैया की औसत आयु 4 से 6 वर्ष होती है लेकिन अपवाद स्वरूप डेनमार्क में एक गौरैया की उम्र का वर्ल्ड रिकॉर्ड 19 वर्ष तक का है। इसके अतिरिक्त 23 वर्ष तक जीवित रहने का वर्ल्ड रिकॉर्ड भी है।

जानवरों के प्रति क्रूरता की पराकाष्ठा वाले देश चीन में 1950 के दशक में गौरैया के फसल के दाने खाने के कारण इन्हें मारने का आदेश दिया गया और इस कारण लाखों गौरैया को मार दिया गया, पर इसका नतीजा एकदम उल्टा हो गया, उल्टा वहां अन्य कीड़ों की संख्या इतनी बढ़ गयी कि गौरैया से कहीं ज्यादा जनसंख्या कीड़ों की हो गयी और वे गौरैया से कहीं ज्यादा फसल का नुकसान करने लगे। नतीजा ये हुआ कि चीन में ऐसा अनाज संकट आया कि लोग भोजन को तरसने लगे और एक अकाल की स्थिति उतपन्न हो गयी।
गर्मी का मौसम चल रहा है इसलिए घर की छत पर, पार्कों व बालकनी में बर्तन में दाना-पानी भरकर रखें. प्रजनन के समय उनके अंडों की सुरक्षा करें। घर के बाहर ऊंचाई व सुरक्षित जगह लकड़ी के घोंसले लटका सकते हैं। हम इनके बचाव को लेकर नहीं चेते तो निकट भविष्य में गौरैया का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। आने वाली पीढ़ियां केवल गौरैया को किताबों में पढ़ेगी। सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है कि गौरैया का गौरव लौटाएं, ताकि फिर आंगन व छत पर गौरैया फुदकती नजर आए।
दीप रजवाड़, 20-03-2021
दीप रजवाड़ जी के फेसबुक पेज DeepRajwar Wildlife Photographer से साभार
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