फैसन - कुमाऊँनी कविता

कुमाऊँनी  कविता-फटी उधड़ि कें फ़ैसन बनै गछै, Kumaoni bhasha mein kavita fasion ke bare mein

फैसन

रचनाकार: रमेश हितैषी

(भौत दिनों बाद एक कविता)

बखता तू बलाई लिजाणी है गछै, 
           कसु छिये अब कसु है गछै।
आजकि पीड़िकि कें कति लिजा मछै, 
         सौ संस्कारुकि कसि कुगत कै गछै।

हमुकें चिरी कपड़ों में गरीब बतै गछै, 
          ननछना बै भन मजु बनै गछै।
आज फटी उधड़ि कें फ़ैसन बनै गछै, 
        साबुत सस्त अर चिरीयू कें मैहंग करि गछै।

बिन तेलक बाव बैठन नि छि, 
       मास्टरकि जाणि कतूक थप्पड़ खवै गछै।
आज बाव बाबिलकै बोट ठाड़ कै गछै, 
        हमुकें सुदै ढिबर जै मठवै गछै।

मन्हु झुग्वर हमरि मजबूरी बतै गछै, 
       आज उकणि भौत ठुलि दवाई बतै गछै।
वी अमरीका ब्रिटेन एक्सपोर्ट हमौ, 
      हमुकें काऊ र्वटा कारण दिन भरि भूकै टरकै गछै।

गूड़कि डईल च्यहा पिण में सरम लाग छि, 
        आज गुडकि  कटक लोगुक सौक बनै गछै।
तब मू पापड़क साग गंवारुक छि, 
        पर अब आलू गोबी में शुगर बतै गछै।

सर्वाधिकार@सुरक्षित, March 20, 2021
श्री रमेश हितैषी

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