घुप्प अन्यार में भुरभुर उज्याव लैछू
कैंलै पुज जूं मेरि बोलि मेरदगाड़ै छु
आपण काम आपणैं हुं
आपण बोलि पराय नैं
देख बेर भैर कै हूं
नि जांणलै भितेर कै
गृहणी हो या डाक्टर
इंजीनियर या अफसर
बिन आपण बोलि भाषा
नि जै सकना हो बागसर
भाष-बोलि तो सिखणै भै आपण
नंतर धान खाय ग्युं खाय बर्स गंवाय
स्यूंताक ठिठ हौ चाहे हिंसालु बाड़
म्योर पहाड़ मेरि बोलि लाजवाब
आगौक चिंणुक छिलुकौक उज्याव
कम झन समझिया म्यार नानतिनो
जो सिखूंणयूं सिख लियो फटाफट
नक नि मानौ कामै आल हर बखत
कर ल्यूंन हो जल्दी के छु, नै नै नि कौ
आब कर ही लियौ,सिखी लि यौ हो
देर में अंधेर हुनेरै भौय समझ लियो
'न 'तक पुज गेयूं' ज्ञ' लै आलै सही मकं
के कूणै चानू यो समझ लै आलै सही
बस कमर कसणैक छु जर्वत आब
के हैयी जाल भलो भल अत्ती भल
जाग गोयूं हो उठ गोयूं हो बाट लागैयूं
आब मैं आपण भाषा सिखणयुं हो
जतु जांणला उतु पाला उतु समझला
नाम नै काम चा,हाथ दगैअकल लगा
म्योर काम नाम है ज्यादे यो भू बोलि
आब उंणै मकं हो फाम उ घर उ गोठ
यांक त्यार यांक कौतिक भेंटुं बारबार
क्वे है सकूं म्योर यो उत्तराखंड जौस
हिटुं पै करुं कुछ ऐस काम ऐस नाम
सब गाऔ म्योर देश म्योर भूमिक नाम।
शुभाशीष
मौलिक
अरुण प्रभा पंत
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