
कुटकी (Hellebore)
लेखक: शम्भू नौटियाल
कुटकी वानस्पतिक नाम पिक्रोराइजा कुरोआ (Picrorhiza kurroa Royle ex Benth., Syn-Picrorhiza lindleyana Steud.) यह वानस्पतिक कुल स्क्रोफूलेरिएसी (Scrophulariaceae) से संबंधित है। संस्कृत में इसे शतपर्वा, कट्वी, कटुका, तिक्ता, कृष्णभेदा, कटुम्भरा, चक्राङ्गी, शकुलादनी, मत्स्यपित्ता, काण्डरुहा, रोहिणी तथा अग्रेंजी में Picrorhiza root (पिक्रोराइजा रूट) हेल्लेबोर (Hellebore) कहते हैं।
कुटकी दुर्लभ औषधीय वनस्पति है जो हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में समुद्रतल से 2700-4500 मीटर की ऊँचाई पर प्राप्त होती है। कुटकी का स्वाद कड़वा और तीखा होता है। इसलिए इसे कटुम्भरा भी कहा जाता है। प्राचीन काल से ही कुटकी का इस्तेमाल एक शक्तिशाली आयुर्वेदिक जड़ी बूटी के रूप में पीलिया ज्वर, गठिया, त्वचा विकार, मधुमेह, बदन दर्द, जोड़ों के दर्द को दूर करने में किया जाता है। आकार में यह वनस्पति छोटी होती है।

इस के फूल ज्यादातर सफेद या नीले रंग में होते हैं। इस जड़ी बूटी की पत्तियां 5 से 15 सेंटीमीटर लंबी होती है। इस जड़ी बूटी की जड़ 15 से 25 सेंटीमीटर लंबी होती है। इस जड़ी बूटी के फल लगभग 1.3 सेंटीमीटर लंबे होते हैं। कुटकी में ‘कुटकिन’ या ‘पिक्रोलिव’ एंजाइम होता है, जो यकृत के कार्यों को बढ़ावा देता है और पित्त के विकारों को कम करता है। लिवर की क्रियाशीलता को बढाने के साथ-साथ फेफड़ों को डिटॉक्स करने के लिए भी कुटकी का सेवन किया जाता है।
कटुकी में प्राकृतिक रूप से एंटी इंफ्लामेटरी गुण होते हैं, जो नाक के रास्ते को खोलते हैं और किसी भी प्रदूषक या बैक्टीरिया के प्रभाव को खत्म करते हैं। अस्थमा रोगियों के लिए, यह अत्यधिक फायदेमंद है क्योंकि यह उनके शरीर में हिस्टामाइन को सीमित करता है, जो स्थिति को खराब कर सकता है।

*कुटकी की उपयोगी जानकारियाँ:
*कुटकी के 2 ग्राम चूर्ण में चीनी में मिलाकर गुनगुने जल के साथ खाने से पीलिया में लाभ होता है।
*इस जड़ी-बूटी के अद्भुत एंटीपायरेटिक गुण शरीर के तापमान में अचानक परिवर्तन यानि बुखार से राहत के लिए सूजन से लड़ते हैं। इसलिए आहार में कुटकी की जड़ का पीसकर पाउडर को शामिल किया जाता है। कुटकी पाउडर शरीर की प्रतिरक्षा को बढ़ाता है और इसका सेवन करने से मौसमी बीमारियों के से भी दूर रहने में भी मदद मिलती है। बुखार से पीड़ित रोगी को कुटकी का चूर्ण 3-4 ग्राम शहद के साथ देने से बुखार ठीक होता है। इससे सेवन से शीत ज्वर भी ठीक होता है।
*कब्ज के लिए यह शहद के साथ मिलाकर दिन में लगभग 6 बार ली जाती है। इसके अलावा यह अपच के इलाज के लिए कुटकी बहुत मददगार होती है। यह गैस्ट्रिक रस का स्राव बढ़ाती है। यह भूख में सुधार करती है। यह पेट को मजबूत करके अपच के विभिन्न कार्यों को बढ़ावा देने में मदद करती है।
*गठिया के रोग में कुटकी बहुत ही अधिक लाभकारी होती है। कुटकी के साथ 480 से 960 मिलीग्राम शहद सुबह-शाम लेने से गठिया रोग ठीक हो जाता है। इससे रोगी का बुखार भी खत्म हो जाता है।
*इसके मुख्य गुणधर्म पाचन स्राव को उत्तेजित करते हैं जो बदले में अग्नाशयी इंसुलिन स्राव को उत्तेजित करते हैं। यह ग्लाइकोजन के रूप में रक्त शर्करा के संचय में लीवर की सहायता करती है, जो मधुमेह प्रबंधन में महत्वपूर्ण है।

*कुटकी पावडर का उपयोग किसी भी वजन कम करने के कार्यक्रम के लिए एक मुख्य हर्बल घटक के रूप में उपयोग किया जा सकता है। क्योंकि यह कड़वा एजेंट पाचन अग्नि, स्वस्थ उन्मूलन और चयापचय को बढ़ावा देने के लिए बहुत ही अच्छा है। कुटकी, चित्रक और त्रिकटु के पाउडर को समान मात्रा में मिलाकर व मिक्स करने के बाद इस मिश्रण को लगभग आधा चम्मच गर्म पानी के साथ लें। इस मिश्रण को एक बार मुँह में घुमा कर फिर निगलना चाहिए। अधिक वजन वाले व्यक्तियों को दिन में एक बार और अगर अधिक मोटापे वाले व्यक्ति को दिन में दो बार इसका सेवन करना चाहिए।
*सुबह-शाम कुटकी चूर्ण की 3 से 4 ग्राम तक की मात्रा लेने से पेट साफ होता है।
*10 ग्राम कुटकी पाउडर को 240 मिलग्राम शहद में मिलाकर सुबह-शाम बच्चे को सेवन कराने से बच्चों के रोग ठीक हो जाते हैं। कुटकी को पानी में पीसकर बच्चों के शरीर पर लेप लगाने से बच्चों का बुखार समाप्त हो जाता है। इसके अलावा कुटकी पाउडर में मिश्री और शहद मिलाकर चटाने से भी बच्चों का बुखार समाप्त होता है।
*कुटकी कन्द के चूर्ण की 1 ग्राम मात्रा पानी के साथ लेने से पेट का दर्द दूर होता है।
*कुटकी की जड़ के चूर्ण की 1 से 3 ग्राम मात्रा पानी के साथ दिन में 2 बार लेने से सभी प्रकार के त्वचा रोग का दूर होते हैं।

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