अगासौक तार भिमैं

कुमाऊँनी कविता- मैलैं जीवंती छुं सबनकं जीवंत धरूंल Kumauni Kavita courage of a lone lady

-अगासौ'क तार भिमैं-

लेखिका: अरुण प्रभा पंत

आज तौ विद्याधर घर ऊंणौ
हे द्याप्तौ तुमुल हो शुण है मेरि
रोज योयी आस में ज्यून छी मैं
ऐल यों हून धैं ज्यून फुराड़ि भाय
रोज रोज कुनाल पातड़ चाते रुंछी
दाश चान चानै न्हैं ग्याय हम यैं रै ग्याय
आय च्योल तीन दिन मांथ मैं यां यकलै
कैसी छोड़ छी गोर-बाछ, देई यो माव
ऐसिकै बादि रैयूं इतु बर्स यां क्वेन्हैं
बगलाक स्वार बिरादर लै जानै रैंयीं
मैंल धरि हिम्मत सबै कारबार जमाय
बानर सूंगर भजाय, कुकुर पायीं द्वि-द्वि
धान बेचिं स्यो बेचिं लगा भुस मशरूम
लागी रैयू मांठू माठ ठुल शैप थैं मिल्यूं
जो बचि रौछी यां सबन कं दे हिम्मत
कतु लौंड मौंड करनी म्योर काम यां
आब बिजुलि पाणि लै यां ऐयी गो पै
और कत्तु कत्तु मंसूब कर राखिं पैमैल
विद्याधर लै यैं रै जान धैं म्यार तीर
चलौ आपण मुख दिखूणौं योई भौत
धौं म्योर कारोबार आलौ उकं रास
आब नि जूंल कैं सबन कं यैं थामुंल
मैलैं जीवंती छुं सबनकं जीवंत धरूंल

मौलिक
अरुण प्रभा पंत 

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