
-:इज और च्योल भाग-१:-
लेखिका: अरुण प्रभा पंत
गाय दिन दिनै तु थकनि न्हांतै इजा कभै तौ आपण मुख कं शुद्ध धरी कर। चल हिट मैं तुकों त्यार दिशांण में पड़ै द्युं,आ हिट,कै करणै छै ऐस बाबू आब उनेर नि भ्या तू खाल्लि परेशान हैं रै छै। मैं त्योर च्योल त्यार दगाड़ छुं बस यो बात सांचि छु। आ इजा पड़ जा भौत अबेर है गे रत्तै तू और मैं घुमण जूंल फिर मैं तुकं दूद जलेबि खऊंल ,तुकं दूदजलेबि भल लागें नै।
तारिक (तारा चंद्र) इज बिशनील (बिशनी देवी) हौं (हां) में मुनई हिलै। फिर दूद दूद कूनकुनै तारिल आपण बिमार इज कं उसीकै दिशांण (बिस्तर) में खोर हाथ खुट मिन बेर पड़ै दे जैसिक नानछना बिशनी तारि कं थपक थपक बेर पड़ै दिंछी। ऐल अगर तारि बिशनीक मनैक बिमारी कं नि समझन और वीक ध्यान नि धरन तो बिशनीक तौ कुकुरगत है जानि। पर पत्त नै जीवन भर दुःख दुर्दिन भोगणि बिशनी कं ताराचन्द्र जै औलाद मिली और ऐल तारि (ताराचन्द्र) एक पावणी शैंतणी इजाक न्यांथ आपण इजैक देखभाल करणौ।
असल में तारा चंद्र जो दुसार शहर में काम करछी और अज्यान होलिनाक छुट्टीन में घर ऐरौछी तबै लाकडाउन और शहरैक काम ठप्प हैगोयतो उकं घरै रूण पड़। वीक बाबू जो भौत पैल्ली घर छाड़ बेर न्है गोछीऔर बिशनील कम जमीन और कम साधन में ताराचन्द्र कं पढ़ा लेखा और दुसार शहर में उ नौकरी करण बैठ सब कुछ ठीक चल रौछी कि बिशनी कं एक होल्याराक मार्फत पत्त चलौ कि ताराचन्द्राक बाबू शहर में आपण दुसौर घर बसै बेर रुणयी तो बिशनी कं तब बटिक पागलपन जौ सवार है गो और हर बखत तौ गाय मुखाय करें सबंन थै झगौड़ करैं एक सिर्फ आपण च्योल तारि थैं भली कै बलैं और वीकी बात शुणै।
ऐल तौ तारि घर छु भोल जब उ आपण काम में जालौ तौ के होल? सब बात तारि समझूं पर आपण इज कं यो परेशानी में कैसी छाड़ि सकों। क्वे कूं झाड़-फूंक करा क्वे कूं जागर लगा क्वे कूं तौ बुढ़ी गे आब तौ कां हैं ठीक, तौ बुढ़िया खातिर आपण जीवन बर्बाद निकर।
जतु मैंस उतु फसक। पर ताराचंदद्रैल सोच राखौ लाकडाउन खुलते ही उ आपण इज कं डाक्टर कं दिखाल और फिर के हैजौ वीक पुर इलाज और देखभाल करौल ।"ऐल अगर मैं (ताराचन्द्र)बीमार हुन तो के वीक इज बिशनी उकं छाड़ि दिनि कभै नै।आंखीरी दम तक उ वीक देखभाल , इलाज करूनि अतः उ ले आपण इजाक लिजि के कसर कमी नि हुण द्योल।"
क्रमशः--(भाग-०२)
मौलिक
अरुण प्रभा पंत
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