
'ह्यौंन'
रचनाकार: मोहन चन्द्र जोशी
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फाँक जसा बादव दौड़णीं ह्ययौं उड़ड़ौ सारै हिडाँवनि।
पौंन अरड़ी छुङनैं हालणैं आपणी पट्ट अँङाँवनि।।
चट्ट- चट्ट झिट - झिट में बदोईयणैं छैल अरड़ौ खावनि।
मोती जास् बरमाव धरती का हरिया - भरिया चावनि।।
थुर -थुर काँमि गट-गट दाड़ि किटि बुज खितछ टुटिया म्वावनि।
ह्यौंन सबै क्वाठ - क्वाठ में फैटि जस हीङ हौं भुटियां दावनि।।
चाँदि - चाँदि डाँन् - काँन् हुलरि गे अहा रे एक्की उछ्यावनि।
अहा ह्यौंन की बात के कौं हैगे रात पुन्यूँ जसि उज्यावनि।।
ढुँङ में धरि जाड़ नाँ न् खिति खाँणी निमखण आपणाँ गावनि।
कुछ खत्यूड़ यबटै स्वैरि - स्वैरि कुछ टाँजि है भ्यैरा जावनि।।
बात औरै कुछ अलगै बात य मोहिली ह्यौंन कि हावनि।
'मोहना' त्वीलै गछ्यै हालि हैछ एक फूल फ़ाँमों का मावनि।।

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मोहन जोशी, गरुड़, बागेश्वर। 27-11-2019
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